शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014


इन नजरों को मालिक दे ऐसी नजर...
हर नजर में तेरी नजर को जो देख ले।
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बलराम के भीतर रहमान को जो देख ले,
पुराण के भीतर कुरआन को जो देख ले,
इन नजरों को मालिक दे ऐसी नजर
नमन के भीतर सलाम को जो देख ले।
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सूखते पत्तों की प्यास को जो देख ले,
बुझते दीपों की आस को जो देख ले,
इन नजरों को मालिक दे ऐसी नजर,
इंसानियत की टूटती सांस को जो देख ले।
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मजदूर के माथे के कर्ज को जो देख ले,
दरकती सलवार के दर्द को जो देख ले,
इन नजरों को मालिक दे ऐसी नजर,
'दास" के भीतर के मर्ज को जो देख ले।
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-ललित दास मानिकपुरी

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