सोमवार, 22 दिसंबर 2014

(पेशावर की एक मां की आखिरी लोरी...)

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जा मेरे राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...
मेरे दिल के टुकड़े जा, जा मेरी आंख के तारे।
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जा एक ऐसी दुनिया में, जहां तू और तेरे सपने हों,
न मजहब हो, न सरहद हो, न मतलब हो, न झगड़े हों।
बादलों की बस्ती में जा, जहां रहते चांद-सितारे...
जा मेरे राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...।
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फूल बनकर आया था, इस दुनिया को महकाने को,
लेकिन यह न भाया उन नापाक दहशतगर्दों को।
ये चमन तेरा अब उजड़ गयाए, सुमन सभी मन मारे...
जा मेरे राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...।
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इतनी छोटी छाती में तू दर्द कितना दबा गया,
गोलियां खा ली जहर बुझी, टॉफियां मीठी छुपा गया।
देकर कुर्बानी जान की, माटी के कर्ज उतारे...
जा मेरे राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...।
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जा एक ऐसी दुनिया में, जहां चैन-औ-अमन की हवा बहे,
न दुश्मन हो, न दहशत हो, बस प्यार दिलों में पला करे।
झिलमिल तारों के झूले हों और चांद-सूरज-से यारे...
जा मेरा राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...।
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-ललित मानिकपुरी, रायपुर।

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