सोमवार, 22 दिसंबर 2014

16/12...

16/12...

 
रो रहा स्कूल
कक्षाएं स्तब्ध
श्याम पट के आगे
अंधेरा घना
फट गया दिल
किताबों का
कलम नि:शब्द
रह-रहकर
सुबकते बस्ते
अश्रु बहातीं
पानी बोतलें
जहर मांगते
टिफिन डिब्बे
कौन दे सांत्वना
दरों-दीवारों को
कौन समझाए
क्यारियों को
कैलेंडर शर्मिंदा
तारीख ही क्यूं बनी
16 दिसंबर

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