रामू हो गया रॉबर्ट
रामू हो गया रॉबर्ट, मीरू हो गई मारिया,
तोड़ते पत्थर और झोपड़ी घर-बार हैं।
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जूतों के भीतर से, झांक रही उंगलियां,
जुगाड़ के कोट में भी पैबंद हजार हैं।
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ये फटे हाल सांता, क्या बांटे खुशियां,
पेट में सूखा और मुंह पर डकार है।
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रॉबर्ट हो गया राम, मारिया बन गई मीरा,
सामने वही पत्थर, हथौड़ी औजार है।
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अब माथे पर तिलक है, मांग में सिंदूर,
पर हाथों में फफोले, पांवों में दनगार है।
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ये राम भला क्या करे, दीपदान आज,
माटी का दिया, तेल को लाचार है।
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-ललित मानिकपुरी
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