मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

व्यंग्य : अगर ना जलूं तो?

 अगर ना जलूं तो? 


"सुनो... सुनो ना... अरे इधर-उधर कहां देख रहे हो, सामने देखो, मैं बोल रहा हूं, रावण।" 

इस आवाज से पुतला बनाने वाले आर्टिस्ट की हालत खराब हो गई। कांपते अधरों से बस तीन शब्द बोल पाया "रा..वण!" 

 "हां... रावण!" पुतला फिर बोला।

मारे डर के आर्टिस्ट ऊंचे मचान से गिरते-गिरते बचा।

पुतला बोला - "अरे डर क्यों रहे हो? तुमने ही तो बनाया है ना मुझे?"

आर्टिस्ट मन ही मन कहने लगा- "ये क्या हो रहा है? आज तक तो ऐसा नहीं हुआ।" वह रावण के पुतले को आश्चर्य से देखे जा रहा था। 

इतने में पुतला फिर बोला- डरो नहीं, मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं।"  

किसी तरह खुद को संभालते हुए आर्टिस्ट बोला - "कहिए सर, क्या कहना चाहते हैं?" 

"मैं जानना चाहता हूं कि तुम्हारी इच्छा क्या है?" 

रावण के पुतले का ऐसा बोलना था कि आर्टिस्ट कांपने लगा। बोला- "सर मेरी आखिरी इच्छा क्यों पूछ रहे हैं? मैं मरना नहीं चाहता। मुझसे कोई गलती हुई है तो प्लीज़ माफ़ कर दीजिए।"

"अरे तुम्हारी आखिरी इच्छा नहीं पूछ रहा हूं। मैं ये पूछ रहा कि तुम इतनी मेहनत से ये जो मेरा पुतला बना रहे हो, उसका करोगे क्या?" 

रावण के पुतले और आर्टिस्ट के बीच संवाद जारी रहा।

"मैं कुछ नहीं करूंगा सर, कसम से मैं कुछ भी नहीं करूंगा।" 

"तो फिर बना क्यों रहे हो?"

"वो तो समिति वालों ने आर्डर दिया है सर। दशहरा के दिन आपको जलाएंगे।"

"और तुझे क्या लगता है, मैं जल जाऊंगा?"

"सर आज तक तो ऐसा कभी नहीं हुआ है कि लोगों ने आपको जलाया और आप न जले हों।"

"अच्छा, और अगर न जलूं तो?"

"आपके अंदर बारूद-फटाखे तो पहले ही भरे होते हैं, केरोसिन डालकर जला डालेंगे।"

"हा हा हा हा..." अट्टहास करते हुए रावण के पुतले ने कहा - "ये, ये लोग मुझे जलाएंगे?  "हा हा हा हा...हा हा हा हा..." रावण को जलाएंगे? नहीं...नहीं जलूंगा।" 

आर्टिस्ट थरथरा रहा था। लेकिन प्राणों से ज्यादा फिक्र पैसे की हो रही थी। हिम्मत कर उसने कहा- "सर आप नहीं जलेंगे तो, ये लोग मेरी ऐसी-तैसी कर डालेंगे। पैसा भी नहीं देंगे। हजारों-लाखों रुपए लगते हैं सर रावण बनाने में, आई मीन आपका पुतला बनाने में। पुतला दहन के साथ ही आतिशबाजी भी होती है। सब गड़बड़ हो जाएगा। मेरे इतने दिनों की मेहनत और खर्च बर्बाद हो जाएगा। बाल-बच्चेदार आदमी हूं सर, इस काम से जो पैसा मिलेगा, उसी से परिवार के लिए राशन पानी का इंतजाम करूंगा। आप नहीं जलेंगे तो बड़ी तकलीफ़ हो जाएगी।" इतना कहते-कहते आर्टिस्ट की आंखें डबडबा गईं।

"अरे यार तुम तो रोने लगे। मैं तो यूं ही मज़ाक कर रहा था। दरअसल मैं तुम्हारी कला से बहुत खुश हूं। तुमने बहुत परिश्रम से मेरा पुतला बनाया है। तुम जब मेरी मूंछों को बढ़िया ऐंठनदार बना रहे थे, तभी तुमसे मज़ाक करने का मन हुआ।"

"तो सर आप जलेंगे ना?" आर्टिस्ट ने पूछा।

रावण के पुतले ने गंभीरता से कहा- "हां जलूंगा, क्योंकि मेरे जलने से तुम्हारे घर का चूल्हा जलता है। लोग मुझे जलाने के साथ यदि अपनी बुराई भी जला देते तो उनके लिए भी जल जाने में खुशी होती।" 


रचना- ललित मानिकपुरी, बिरकोनी (महासमुंद)



शनिवार, 30 जुलाई 2022

छत्तीसगढ़ी हास्य रचना

कुकुर मन के जबर फिकर...




कलवा कुकुर- गली सड़क म गरवा मन ला भूँक-भूँक के दउड़ावन त का मजा आवय यार। अब मजा नी आवत हे। 

भुरवा कुकुर- हाॅं यार सब गरवा मन तो गौठान म ओइलाय हें, बाॅंचे खुचे‌ मन कोठा म बॅंधाय हें। गली डाहर सुन्ना पर गे हे। 

खोरवा कुकुर- अरे गौठान म उॅंखर बर का गजब बेवस्था हे भाई, चारा, पानी, छइहाॅं...अरे मत पूछ। हमीं मन लठंग-लठंग एती-ओती फिरत हन। कुकुर मन के तो कोनो पूछइया नी हे। 

झबला कुकुर- अरे धीरे बोल रे भाई, नी जानस का? छत्तीसगढ़ सरकार ह पहिली तो गोबर खरीदी चालू करिस, अउ अब गौमूत्र घलो बिसावत हे। देखत रहिबे बाॅंचे-खुचे गरवा मन घलो गौठान म ओइला जहीं, नी ते कोठा म बॅंधा जहीं। हमन तो एती-ओती गली-डाहर के घुमइया अउ मस्त रहइया कुकुर आन, सोचव भूपेश सरकार के नजर कहूॅं हमर ऊपर पर गे, तब का होही? 

भुरवा कुकुर- बने कथस भाई, जनता के फायदा करे बर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दिमाग म कोई भी आइडिया आ सकत हे। "गोधन न्याय योजना" के जइसे कहूॅं "श्वान धन योजना" लॉन्च कर दिस तब का होही? हमर तो मरे बिहान हो जही। सब मोर बात मानव, अउ अतलंग करना बंद करौ, जबरन भूॅंकना हबरना बंद करौ। रात म अपन ड्यूटी करौ अउ दिन म सबला "जय जोहार" करौ। 

जय जोहार...    

- साहेब छत्तीसगढ़िया, महासमुंद

रविवार, 1 मई 2022

छत्तीसगढ़ के बोरे-बासी Bore-Basi


(अपना पसीना बहाकर देश-दुनिया में विकास की क्रांति लाने वाले, अपने सृजन से नव दुनिया का निर्माण करने वाले, संसार का पोषण करने के लिए खेतों अन्न उपजाने वाले श्रमवीरों के सम्मान में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी सहित लाखों छत्तीसगढ़िया लोगों ने आज श्रमिक दिवस पर "बोरे-बासी" खाकर छत्तीसगढ़िया मेहनतकश मजदूर किसान वर्ग के इस पारंपरिक आहार की महत्ता को वैश्विक पटल पर स्थापित करने के प्रयासों में अपना महती योगदान किया।)



छत्तीसगढ़ के सीधे-सरल और मेहनतकश लोगों, किसान, मजदूर, वनवासी, आदिवासी जन के जीवन में "नवा बिहान" लाने छत्तीसगढ़ राज्य का स्वप्न देखने वाले हमारे पुरखों ने उस दौर में यहां सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक जागरण के लिए अपने-अपने ढंग से अथक प्रयास किए। डाॅ. खूबचंद बघेल जी और पद्मश्री पं. श्यामलाल चतुर्वेदी जी हमारे उन महान पुरखों में अग्रणी थे। उन्होंने अपनी लेखनी से भी जनजागरण का अलख जगाया। यहां तक छत्तीसगढ़ियों के प्रमुख आहार "बासी" को भी छत्तीसगढ़िया जागरण का प्रतीक बनाया। बासी के वैज्ञानिक गुणों, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता को समझते हुए उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से किस तरह "बासी" की महिमा गाई और जन-जन को छत्तीसगढ़िया गौरव का एहसास कराया उसका एहसास आप भी कीजिए। 


गजब बिटामिन भरे हुये हैं,

(डाॅ. खूबचंद बघेल जी की रचना)

बासी के गुण कहूँ कहाँ तक, इसे ना टालो हाँसी में।

गजब बिटामिन भरे हुये हैं, छत्तीसगढ़ के बासी में।।

नादानी से फूल उठा मैं, ओछो की शाबासी में,

फसल उन्हारी बोई मैंने, असमय हाय मटासी में।।

अंतिम बासी को सांधा, निज यौवन पूरन मासी में,

बुद्ध-कबीर मिले मुझको, बस छत्तीसगढ़ के बासी में।।

बासी के गुण कहूँ कहाँ तक, इसे ना टालो हाँसी में।।

विद्वतजन को हरि-दर्शन मिले, जो राजाज्ञा की फाँसी में,

राजनीति भर देती है यह, बूढ़े में, संन्यासी में।।

विदुषी भी प्रख्यात यहाँ थी, जो लक्ष्मी थी झाँसी में,

स्वर्गीय नेता की लंबी मूंछें भी बढ़ी हुई थी बासी में।।

गजब बिटामिन भरे हुये हैं, छत्तीसगढ़ के बासी में।।

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छत्तीसगढ़ के बासी

- (पद्मश्री पं. श्यामलाल चतुर्वेदी जी की रचना)


जबड़ पुष्टई भरे हे भाई, छत्तीसगढ़ के बासी मा।

ठाढ बेरा म माई पिल्ला, खेत खार ले आथन तौ।

एकक बटकी हेर हेरके, चटनी लुन म खाथन तौ।।

जिव हर निचट जुड़ाथे चाहे कतको रही थकासी मा।

जबड़ पुष्टई भरे हे भाई, छत्तीसगढ़ के बासी मा।।

चाह पिअइया मन ला देखेन, झीटी कस हो जायें गा।

एक मुठा तो भात ला खाथे, का सेवाद ला पायें गा?

ओमन गुनथें बासी खाके, झन पर जाई हाँसी मा। 

हम रथन टनमनहा उनमन फदगे रइथें खांसी मा॥

बासी खाके जमो देस बर चाउर हमीं कमाथन गा। 

तभ्भो उलटा पुलटा हमन अंड़हा मुरुख कहाथन गा।।

हम छोड़बो बासी ला, तब सब पर जाहीं हांसी मा।

जम्मो राज के जिव परान हे छत्तीसगढ़ के बासी मा।।

पेज समुंद मा बासी बिस्नु, बुड़े बिहनहे ले देखा। 

पंचामृत कस पीवो खा परसाद बरोबर अनलेखा॥

बासी खाके ओ फल पावा, जउन अजोध्या कांसी मा। 

जबड़ पुष्टई भरे हे भाई, छत्तीसगढ़ के बासी मा।।

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(एक मेरी रचना)

बड़ सुहाथे बासी...

- ललित मानिकपुरी 


बिहनियाँ नहा-खोर के,

बइठ पालथी मार के,

पहिली भोग लगाती, बड़ सुहाथे बासी।।

***

एक फोरी अथान के,

नून डार ले जान के,

गोंदली चानी उफलाती, बड़ सुहाथे बासी।।

***

खेत के मेड़ पार म, 

डोंगरी जंगल खार म,

करम के ठठाती, बड़ सुहाथे बासी।।

***

ठीहा म, खदान म,

कारखाना बूता-काम म,

पछीना के ओगराती, बड़ सुहाथे बासी।।

***

किसान के बनिहार के

बिटामिन ए परिवार के

तन-मन के जुड़वासी, बड़ सुहाथे बासी।।

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बासी म बिस्नू बसैं, 

ब्रम्हा बरी, अथान,

गोंदली गणपति, मही महेश,

बस महाप्रसादी जान।

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