मंगलवार, 25 नवंबर 2014

गीत...


दूर तक जाने दे बात को साथिया, बात से बात कोई बनेगी सही,
रूह तक जाने दे साथ को साथिया, साथ से बात कोई बनेगी सही।

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ताल पे ताल देते हुए साथिया, प्यार सरगम की चादर ओढ़ा ले पिया,
साज को साज कर सुर मिला लें जरा, साज से फिर कोई धुन बनेगी सही।
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बूंद को बंूद से आज मिलने तो दे, फूट जाने दे दरिया से धारा कोई,
आंधियां उठने दे मिटने दे सब हदें, आज लहरों में लपटें उठेंगी सही।
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डालियां मुस्कराएंगी जब बाग में, मालिया भी तभी मुस्करा पाएगा,
अब तो ऐसी लगन बस लगे साथिया, हो अगर तू नहीं तो हम भी नहीं।
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छोड़कर जाएंगे रास्ते पे निशां, जिद हमारी भी है आज होना फनां,
काल से आज कर लें चलो दो-दो हाथ, यूं सदा कोई रहने को आया नहीं।

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दर्द अपना कसकता है भीतर मगर, जख्म औरों का नजरों को दिखता नहीं,
इस तरह भी जिये तो जिये क्या भला, बहते आंसू किसी का तो पोंछा नहीं।
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यूं जमाना बुरा पर जरा सोच ले, जमाने से हम भी जुदा ही कहां,
हाथ अपना बढ़ा कर तो देखें जरा, नेक कामों की कोई कमी तो नहीं।

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-ललित मानिकपुरी, रायपुर

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