मंगलवार, 4 नवंबर 2014

छत्तीसगढ़ी कहानी : बइगा के बहू




                                                                                                                                      - ललित दास मानिकपुरी

अकड़म-बकड़म कउहा काड़ी... कोलिहा, कउवां, कारी नारी... भुतका, फुतका, मशान...  मैं तोर बाप, चल भाग, चल भाग.. जय भोले, जय संखर, जय घमखूरहा देवता .. हा फू..., हा फू..., हा फू...।

 बइगा मंतर मार के फूंकत हे। अंगना म बाहरी धर के एती-वोती कूदत हे। बीच म चूंदी-मू डी ल छरियाय, चउदा बछर के नोनी बही बरन बइठे हे। मुहाटी ले परछी के जात ले मनखे जुरियाय हे। ये देखके बइगा के बहू अकबकागे। कालेच गौना होके आए रिहिस। रात बितिस अउ बिहनिया बाहरे-बटोरे बर उठे रिहिस। मने मन सोंचत हे, ये का होवत हे? बहू ल कुरिया ले निकलत देख के ओखर सास बइगिन दाई ह ओखर तिर अइस। बहू ओला पूछीस- 'ये का होवत हे मां?" 

बइगिन दाई किहिस- 'सरपंच के नोनी ल भूत धर ले हे बहू।"
 
बइगा ह मंतर कुड़बुड़ावत, जोर-जोर से फूंकत हे। 'तैं जाबे ते नई जास" काहत अमली के गोजा ल धर लिस अउ नोनी ल फेर सटासट सोंटे लागिस। नोनी किकिया डरिस। बइगा ओखर हाथ ल धरके अंगरी ल कस के मुरकेट दिस, नख ल उखाने लागिस। पीरा के मारे नोनी  छटपटावत हे, रोवत-कलपत हे। बइगा बबा काहत हे-'अब देख भूत कइसे कल्हरत हे।" नोनी के चूंदी ल धर के बइगा लिमउ के रसा चटाइस अउ किहिस 'सरपंच अब उतर के तोर नोनी के भूत। ले जा एला।" 

सवा सौ रुपया भेंट करके सरपंच बइगा के पांव परिस। 'दार-चाउंर भेजवाहूं बबा" किहिस अउ अपन नोनी ल धर के लेगे। 

अइसने एक के पाछू  एक दसों झन ल बइगा झारिस-फूकिस। काखरो पेट पिरावत हे, त काखरो लइका नइ होवत हे। काखरो बइला गंवागे, त काखरो बाई पदोवत हे। सबके बीमारी अउ बिपत्ति के इलाज बइगा करा हे, झार-फूंक अउ ताबीज। एवज म दार-चांउर, रुपया-पइसा, दारू-कुकरा अइसे कतको जिनिस बइगा के अंगना म लोगन कुड़हो देवें। आजो मिलिस। बइगिन दाई ल हांक पारत बइगा कथे-'ए बइगिन... ले धर ओ पइसा।" 

पइसा ल झोंक के बइगिन अपन बहू ल अमरत कथे, 'ले बहू, अब तो घर तूहीं ल चलाना हे, पइसा ल तिहीं धर।"

'रिस झन करबे मां, फेर अइसन कमई के पइसा ल में छुवंव घलो नहीं।"- बहू किहिस। 
अतका सुनिस त बइगा तम-तमागे- 'का केहेस? का ये चोरी-चकारी के पइसा ए?" अरे बइगइ हमर धरम आय, ये हमर धरम के पइसा आय, लोगन हमर पांव पर के देथें। ये कमई ल नइ धरबे त का तोर घरवाला के टेलरी म घर चलही?
 
बहू ससुर के लिहाज राखत चुप होगे अउ कुरिया म खुसरके अपन गोसइयां सूरज ल उठाइस। सूरज कथरी ओ ढे कुहरत राहय। देहें लकलक ले तीपे राहय। बहू अपन सास ल चिल्लाइस-'मां देख तो एला का होगे?" पाछू-पाछू बइगा घलो आगे। सूरज ल देख के कथे- 'काली गांव ल आवत एला बाहरी हावा लग के तइसे लागथे।" बहू कथे- 'एला कोनो बाहरी हावा नइ लगे हे, एला जर धरे हे। अस्पताल लेगे बर परही।" बइगा कथे 'अस्पताल! अरे सारा संसार हमर अंगना म आथे, बने होय बर। हमर लइका ल का हम अस्पताल लेगबो?" अउ फेर दुनिया का कही?"
बइगा बबा नइ मानिस, झारे-फंूके लागिस। सूरज के कंपकंंपी छूटत राहय। बहू कथरी उपर कथरी ओ ढावत राहय। पहर बीत गे। देहेें ले तरतर-तरतर पछीना छूटिस त सूरज ल थोरिक बने लागिस। संझा बेरा देहेें फेर अंगरा होगे। बइगा भभूत धरके फेर फूंकिस। तीन दिन होगे जर धरत अउ उतरत। 

सूरज के दसा देखके बहू से रेहे नइ गिस। चुप साइकिल धरके निकलगे अउ पूछत-पाछत डेढ़ कोस दूरिहा आन गांव के डाक्टर ल बला के लान डरिस। सूरज आंखी कान ल छटियाय खटिया म परे राहय। बइगा-बइगिन मुड़ धर के बइठे राहंय। 

डाक्टर किहिस- "एला मलेरिया होगे हे तइसे लागत हे। खून जांच करे बर परही।" 

अतका सुनिस ते बइगा भड़कगे-"मलेरिया का होथे, मैं जानत हंव एला करंजन करे हे। अउ कोन करे हे? ये बहू करे हे। एही हर हे टोनही।"

 डाक्टर सब हाल ल बहू के मुंहू ले सुन डरे राहय। बइगा-बइगिन ल खिसियावत किहिस "अरे बहू ल टोनही काहत सरम नइ आय, ए पढे-लिखे हे, ए मोला बला के नइ लानतिस, ते ये आदमी नइ बांचतिस।"

 सूजी-दवई चलिस अउ सूरज बने होगे। अपन बाई ल कथे 'तंय मोर परान बचादेस लक्ष्मी, मैं तोर उपकार कइसे चुका हूं?" 

बहू अपन कान के झुमका ल हेर के ओखर हाथ म धरा दिस अउ किहिस- "एला बेच के मोर बर कम्प्यूटर लान दे। मैं गांव के लइका मन ल कम्प्यूटर सिखा हूं।"

 सूरज कम्प्यूटर लेके लानिस। बहू गांव के पढ़इया लइका मन ल कम्प्यूटर सिखाय लगिस। महिला मन के कपड़ा घलो खिलय। घर म पइसा सुघर आय लगिस अउ चार समाज म बेटा-बहू के संगे-संग बइगा-बइगिन के घलो मान होये लगिस त बइगा चेत अइस।
 एक दिन अपन बहू ल कथे- "बहू, लइका मन के पढ़े-लिखे बर परछी के जघा छोटे परत हे। ये कुरिया ल फोर के तोर बर मुंडा ढलवा देथंव।" 

बहू कथे- "बाबूजी ए कुरिया में तो देवता गड़े हे अउ एहां तो आप मन लड़का मन ल बइगई सिखाथव।"  

बइगा बबा कथे- "बेटी उमर पहागे फूंकत -झारत, कतको मरिन-कतको बांचिन। तें नइ होतेस त अपन एकलउता बेटा ल गंवा डारतेंव। भगवान मोर पाप के सजा मोर बेटा ल देवत रिहिस, तैं ओखर रक्षा करे। अउ मैं बइगई सिखा के काखरो जिनगी तो नइ बनाए सकेंव, तोर शिक्षा पाके जरूर गांव के लइका मन के जिनगी संवरही। तें जौन कम्पूटर लाने हंस, देवता करा उही ल मढ़ा दे। न रही बांस अउ न बजही बांसरी।"
(नईदुनिया में प्रकाशित और आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित) 

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