गुरुवार, 6 नवंबर 2014

'चीटी की रोटी"

                                                    
                                                          कहानी- ललित दास मानिकपुरी

'मम्मी, बड़ी जोर की भूख लगी है, रोटी बना दो ना।"  विक्की ने स्कूल से लौटकर घर में पांव धरते ही अपनी मां से कहा।
'हां बनाती हूं रे, पहले हाथ-मुंह तो धो ले।"  यह कहते हुए मम्मी ने झटपट आटा का डिब्बा निकाला और उसे गूंधने के लिए बर्तन में डाल ही रही थी कि बिजली चली गई। घनघोर घटाओं के बीच बिजली जोर की चमकी थी। मम्मी की आंखें एकाएक छप्पर की ओर उठ गईं, जहां से बारिश शुरू होते ही पानी की कई धाराएं सीधे कमरे में गिरती हैं। सोने की तो दूर, बैठने तक की जगह नहीं बचती। सारी रात जागते हुए आंखों-आंखों में काटनी पड़ती है। बिजली की कड़क के साथ मम्मी के माथे पर चिंता की अनगिनत लकीरें उभर आईं। बारिश के साथ आने वाली परेशानियों का ख्याल करते-करते आंटा गूंधती रही। आंखें खुली थीं, लेकिन मन में तस्वीरें कुछ और चल रही थीं। मन ही मन बुदबुदानी लगी - आज फिर होमवर्क नहीं कर पाएंगे बच्चे, पिंटू तो पहले से ही बीमार है। कहीं इनकी भी तबीयत न बिगड़ जाए।  छानी में तिरपाल ढंकने के लिए कहां से लाऊं पैसे? घर में फूटी कौड़ी नहीं। 21 दिन हो गए जनाब को घर नहीं आए। दुनिया में अकेले यही एक ट्रक ड्राइवर हैं। उन्हें क्या है, घर तो मैं संभालती हूं। 
तभी खुशबूू भी स्कूल से आ गई। उसने भी कहा- मम्मी मैं भी रोटी खाऊंगी। मम्मी ने देखा कि  आंटा कम था, सो उसने सुबह का बचा हुआ भात और नमक डालकर सान दिया।  चूल्हा जलाया और मोटा-सा पो दिया तवे पर। कुछ ही देर में रोटी पक गई। विक्की तो तैयार बैठा था। पेट में उसके चूहे कूद रहे थे। रोटी की महक से वह और बेचैन हुआ जा रहा था। उससे रहा न गया। उधर मम्मी दीया जला रही थी और इधर विक्की ने तवे से गरमागरम रोटी सरकाकर थाली में ले ली और अचार का टुकड़ा लेकर शुरू हो गया।  वाह... मजा आ गया, पहला कौर चबाते हुए उसने यही कहा।  फिर कुछ न बोला, बस खाता ही गया। तब तक दूसरी रोटी भी पक गई। उसका आधा भी उसे और मिल गया और आधा हिस्सा छोटी बहन खुशबू को। तीसरी रोटी तैयार होते ही मम्मी ने पिंटू को उठाया। 'बेटा, चल उठ, रोटी खाले, फिर दवाई खाना, आज भात डाल के बनाई हूं रोटी, तुझे पसंद है ना।" ऐसा कहते हुए मम्मी ने उसके सामने थाली रख दी। पिंटू का माथा ठनका, उसने रोटी को गौर से देखा, फिर बोला- ' मम्मी, रोटी में कौन सा भात डाली हो? कहीं थाली में रखा वही भात तो नहीं, जिसे बुखार के कारण मैं सुबह नहीं खा पाया था? मम्मी ने कहा- 'हां, वही।"
'अरे उसमें तो चीटी थी, मैंने दोपहर को खाने के लिए देखा तो बहुत सारी चीटियां थीं। मैंने झट ढंक दिया था।"- पिंटू बोला। 
इतना सुनते ही खुशबू दीये के पास अपनी थाली ले गई। उसने देखा कि रोटी के ऊपरी हिस्से में ही ढेरों चींटियां दिखाई दे रही हैं। वह चिल्लाई 'मम्मी..., देखो न रोटी में कितनी चींटियां हैं।"  मम्मी भी देखते ही बोल पड़ी-'अरे बाप रे।"  अब सबने पिंटू की रोटी देखी, उसमें भी चींटियों की भरमार थी।
'अब मैं क्या खाऊं मम्मी?"- खुशबू बोली। इतने में मम्मी ने कहा - 'अब क्या बनाऊं बेटा कुछ नहीं है, चाय बना देती हूं, पी लेना।"
इतना सुनते ही विक्की ने कहा- थैंक्स, भगवान जी। अच्छा हुआ मैंने पहले ही रोटी खा ली। नहीं तो चाय पी के सोना पड़ता। आज चींटी की रोटी खाई है, वाह, बिलकुल नया डिश। हा..हा..हा..। यह सुनकर सभी हंस पड़े।
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