मंगलवार, 11 नवंबर 2014

छत्तीसगढ़ी रेडियो वार्ता :


महिमा चम्मास के...

असाढ़, सावन, भादो अउ कुंवार चार महिना चम्मास के,  नवा सिरजन के दिन आय। खेत-खार म मिहनत के पछीना ओगराए के दिन आय, धरती के गरभ ले दुनिया के भूख मिटाए बर अन्न् उपजाए के दिन आय। 

लककावत गरमी के बाद असाढ़ के अगोरा कोन ल नई राहय। अकास म करिया बादर घुमर के आथे त कमिया के रुआं-रुआं म बिजली दउड़ जाथे। जइसन बदरा बरसथे तइसन गांव के जुवानी जोर मारे लगथे, अउ निकल परथे नगरिहा धर के नागर खेत बर।

 'अरा.. ररा..तता..तता" बइला मन ल हांकत-पुचकारत हरिया-हरिया खेत जोतके बीजहा डारथें, अउ सोनहा धान के दाना पावत तक दिन-रात पछीना ओगराथें। उहें बहिनी-माई मन घलो उखंर संगे-संग कछोरा भिर के लगे रइथें। उंखर मिहनत के फल आय कि एसो हमर छत्तीसगढ़ प्रदेश ल पूरा देस म सबले जादा धान उपजाए के खातिर 'कृषि कर्मण" पुरस्कार मिलिस। 

एक बार फेर जम्मो खेतिहर संगवारी मन धान के कटोरा ल लबालब करेबर कन्हिया कस के भिड़े हें। खेत-खार म धान के नान्हें पौध लहलहावत हे। रहियर लुगरा पहिर के धरती माई मुस्कावत हे। पुरवइया के झोंका माटी के महक बगरावत हे। अइसन मौसम में संगी तन-मन हरियावत हे। मनखे के मन मंजूर बनके झूमत हे। अउ मन में उमंग भरे बर तिहार मन घलो पूछी धरे आवत हें। फेर चम्मास के तिहार मन के बाते अलग हे।
 
      चाहे हरेली होय, नागपंचमी होय, कमरछठ होय, चाहे आठे या तीजा पोरा होय। ये तिहार मन के बहाना काम-बुता म थके हारे तन ल आराम तो मिलबे करथे, मन घलो चंगा हो जाथे। फेर तिहार मन के मूल भावना म सबके खुसियाली के ही बात हे। वइसे भी हमर तिहार मन के जर घलो खेत-खार म जामे हे। 

छत्तीसगढ़ के पहली तिहार आय हरेली। जउन ल सावन के अमावस के दिन मनाथन। तब खेत-खार अउ चारो कोती परकिति के हरियर रंगत बगरे रइथे। हरेली के दिन हरियाली के आनंद मनाथन अउ ये कामना करथन कि धरती के ये हरियर रंगत बने राहय। हमर पुरखा मन हरेली के तिहार बनाके हमला परकिति के साथ जुड़े रहे के अउ ओखर धियान रखे के संदेस दे हें। 

संगी हो आज परयावरन परदूसन के चिंता पूरा दुनिया ल सतावत हे। पूरा जीव जगत संकट म हे। ये संकट से कइसे उबरना हे, एखर संदेस हरेली तिहार के भाव म छिपे हे। काय? धरती के हरियर रंगत ल बचाए के, जंगल के रुख-राई ल बचाए के अउ नवा पौध लगाए के।

 हमर किरिसी परधान छत्तीसगढ़ बर हरेली तिहार के विसेस महत्तम हे। ये तिहार खेती के पहली चरन पूरा होय के संकेत आय। किसान मन बड़ परेम अउ उपकार भाव ले अपन बइला मन ल गहूं पिसान अउ नून के लोंदी खवाथें। अउ अपनो मन बनगोंदली अउ दसमूल के परसाद खाथें। जंगल के ये कांदा अउ जरी जइसे मिठाथे वइसने ओमा अउसधी गुन घलो भरे होथे। बीमारी मन ले बचाव के खातिर ये हमर पुरखा मन के सुघ्घर खोज आय गोंदली अउ दसमूल। 
 
      सावन तो साधना के महीनाच आय। खेतिहर मन खेती के साधना करथें त भगत, सन्यासी मन भगवान के। जइसे नदिया नरवा म पूरा आथे, तइसे लोगन के मन म घलो भक्ति के भाव उमड़े लगथे। 

महादेव ल मनाए बर गांव-गांव ले कांवरिया निकल परथें। धर के कांवर म पानी, कोस-कोस रेंगत-रेंगत जाके महादेव म चढ़ाथें। सावनभर गली-गली बोलबम के नारा गूंजत रहिथे। 

सावनेच में परथे राखी के तिहार जउन ह भाई-बहिनी के मया के डोर ल अउ मजबूत करथे। फेर आथे आठे। गोकुल कन्हइया के अवतार के दिन। लइका-लइका मन घलो उपास रइथें। झुन्न्ा बांध के झूलत अउ कोठ म गोकुल कन्हइया के चित्र बनावत कतका बेर दिन पहा जथे पता नइ चलय। फेर मंदिर म रामायन-भजन अउ पंजरी के परसाद पाके घर म सुघ्घर कतरा के भोग लगाथें।
 
      सावनभर गांव-गांव म चलथे सावनाही रामायन। एती झिमिर-झिमिर पानी गिरत रइथे त ओती रामायन मंडली के भाई-बहिनी मन ढोलक, मजीरा बजावत भजन गावत रइथें। सुघर संगीत के संग भक्ति के धुन सुनके दिनभर के काम-बूता के थक-पीरा तो जइसे छू मंतर हो जाथे। 

फेर आगे तीजा-पोरा, जेखर सालभर अगोरा। धान के निंदई-कोड़ई ल करके लउहा-लउहा, बहिनी मन ल होय रइथे मइके जाय के उत्ता धुर्रा। इही तो मौका रइथे बछर म एक घव मइके जाय के। दाई, ददा, भाई-बहिनी के संगे-संग नानपन के सखी-सहेली संग मिलाप के। वइसे तो दाई-ददा के मुहाटी तो बेटी ल सदा अगोरत रइथे, फेर बेटी काय करय, ससुराल के मया अउ जुम्मेदारी म भुलाय रइथे। ये तीजा के तिहार आय जेन ह बेटी ल जिनगी भर मइके ले जोड़े रइथे। 

तीजा म सगा बनके आय बहिनी-बेटी ल बड़ परेम से लुगरा भेंट करे जाथे। उंखर लोग-लइका मन घलो नवा कपड़ा अउ खेलउना पाके गदगद हो जाथें। बाबू मन बर नदिया बइला अउ नोनी मन बर जाता-पोरा। बड़े मन ल देख के लइका मन सधाए रथें। महू चलातेंव नागर-बैला त महूं राधतेंव भात-साग। उंखर संउख ल पूरा करे बर अइसने खेलउना दिए जाथे। अब तो आगे संगी किसम-किसम के मसीनी खेलउना, पहिली तो कुम्हार के हाथ ले बने माटी के खेलउना मन ही लइका मन के मन ल मढ़ावैं।

     चम्मास के दू महीना बीत के अब आवत हे गनपति, गली-गली अउ घर-घर बिराजे बर। हमर नौजवान संगवारी मन पहिली ले एखर तियारी म भिड़ गे हें। कहूं करा पंडाल बनत हे, त कहूं करा मूरती। नौ-दस दिन ले गणेश भगवान के पूजा करबो अउ कार्यकरम के मजा घलो लेबो। 

गनेस उत्सव के दिन कोन ल बने नइ लागय, फेर कई ठन बात दुखी कर देथे। काखरो ले जबरिया चंदा वसूली बने बात नइ होय। कई जगा गनेस भगवान के मूरती ल अलकरहा सकल देके बइठार देथें। कहूं करा नेता बना देथें त कहूं करा फिल्मी हीरो। जइसे पाथें वइसने रूप देके जइसे भगवान ल मजाक बना देथें। एखर से सरधालु लोगन के भावना ल ठेस पहुंचथे। गनेस समिति वाला संगवारी मन ल ए बात के धियान रखना चाही। संगे संग यहू बात के धियान रखना चाही कि गनेस अस्थान म बने माहउल राहय। मनमाने आवाज में फिल्मी गाना बजाना, अउ सांसकिरितिक कार्यकरम के नाम ले फूहड़ कार्यकरम कराना कोनो बने बात नइ होय।
 
     चम्मास के भीतर सबसे खास तिहार परथे पितर पाख। अपन पुरखा मन ल सुरता करके पाख। उंखर परति आभार माने अउ उंखर तरपन करे के पाख। 

फेर आथे नवराती। जघा-जघा मां दुरगा के मूरती के अस्थापना करके नव दिन तक सेवा-पूजा करथंन। पूरा अंचल म मांदर अउ झांझ के झंकार के संगे-संग माता सेवा के पारंपरिक गीत गूंजे लगथे। इही बीच गांव-गांव म रामलीला घलो होथे। अउ दसराहा के दिन रावन के बध होथे। कतको जघा आतिसबाजी के संग रावन के पुतला दहन करे जाथे। बुराई के अंत होथे अउ अच्छाई के जीत होथे। संगी हो असल बात तो इही आय। बने करम करन अउ बने-बने राहन। जय जोहार।
                                                                                                          
-ललित दास मानिकपुरी
(आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित)

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