गुरुवार, 6 नवंबर 2014

छत्तीसगढ़ी कहिनी

                                 उतलइन

                                                                                              - ललित दास मानिकपुरी

''अरे कहाँ जाबे रे, आज तो तोला स्कूल लेगिच के रइहौं।"" अइसे काहत अउ चंदू ल कुदावत-कुदावत गुरुजी कपड़ा सुद्धा तरिया म चभरंग ले कूद परिस। लद्दी म गोड़ बिछलगे, अउ गुरुजी चित गिरगे। ओला देख के चंदू कठ्ठलगे। ''बने होइस रे.., बने होइस"" काहत-काहत, तरिया म तउरत ए पार ले ओ पार भागगे।
एती गुरुजी लद्दी म सनाय गिरत-परत तरिया ले निकलिस, खोरावत-खोरावत अपन घर पहुँचिस। गोड़ लचक गे राहय। जस बेरा बितिस तस पीरा बाढ़िस। अब तो गुरुजी रेंगे घलो नइ सकत राहय। गुरुजी परछी म खटिया ऊपर गोड़ लमाए बइठे राहय। ''हे राम, हे भगवान"" जपत राहय। मने-मन खिसियावत राहय- ''सरकार के काहे, फरमान जारी कर दिस। 'हर लइका ल हर हाल म स्कूल म भर्ती करना हे, कोनो छूटना नइ चाही।" भले गुरुजी के परान छूट जाय। अरे महूँ चाहथँव,  गाँव के सबो लइका बनें स्कूल आवँय, पढ़ँय-लिखँय, फेर नइच आहीं तब मैं काय करिहौं। फेर न.. ही.., नवा कानून बन गे हे, 'नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम।" नौकरी म तलवार लटके हे, अब गोड़ टूटय ते, मूड़ फूटय, गाँवभर के लइका ल भर्ती करनचहे। हे राम, हे भगवान...। हे राम, हे भगवान...।""
ओतके बेरा चंदू ल धरके ओखर ददा मेघनाथ पहुँचिस। कथे-''गुरुजी..., ए गुरुजी, मोर लइका तोर काय बिगाड़े हे? तैं काबर कुदाथस एला?
गुरुजी चंदू के ददा डाहर देखके कथे। ''अरे मोला काय पूछथस मेघनाथ, तोर टूरा ल पूछ, ये नलायक काय करत रिहिस हे। मैं तो तोर लइका ल स्कूल म भर्ती करना चाहथौं। तीन घँव होगे, तुहँर घर जावत, तुमन तो मिलव नहीं, तोर टूरा घलो देखिस ते भागिस। अब का करँव? अँई, आज स्कूल म भर्ती करे के आखरी दिन आय। काली ले कक्षा लगना शुरू  हो जाही, आज एला भर्ती कराना जरूरी हे।""
अतका सुनिस ते चंदू अपन हाथ ल छोड़ाके पल्ला होगे।
गुरुजी कथे ''देखे भागगे न? अउ अब एती देख, काय बिगाड़े हे कथस न तोर टूरा ह, त देख बने"" गुरुजी अपन गोड़ ल देखइस।
''ए का होगे गुरुजी, तोर गोड़ कइसन फूल गे हे?"" मेघनाथ पूछिस।
गुरुजी सब बात ल बताइस '' मेघनाथ! तोर टूरा ह दिखत के सिधवा हे अउ बदमासी म अउवल हे।  बिजली खंभा म चढ़त रिहिस हे। ओ तो मैं स्कूल जावत देख परेंव, नइ ते तार म चटक के मर जतिस। चिल्लायेंव त उतर के भागे लागिस। पाए रतेंव त धर के स्कूल लेगेे रतेंव। फेर, तोर टूरा ह तरिया म कूद के तउरत भाग गे, अउ मैं मरत-मरत बाँचेंव।""
अतका सुनिस त मेघनाथ सरमिंदा होगे।
गुरुजी कथे '' मेघनाथ, ठाढ़े झन र, कुर्सी म बइठ। मोर बात के रिस झन करबे, तोर टूरा घातेच उतलइन हे। ओला स्कूल भेज। मैं ओला परेम से पढ़ाहूँ। सरकार के डाहर ले फोकट म किताब मिलही। मध्याह्न भोजन म रोज पेट भर खाय बर मिलही। अरे अउ का चाही। अभी ओहा इती-वोती किंचरत रइथे। अमरया म ए डारा ले ओ डारा सलगत रइथे। नइ ते यमराज कस भँइसा म बइठ के तरिया भर तउरत रइथे। उहाँ ले निकलही त बस्तीभर किंजरही। कभू साइकिल दुकान म बइठे रही त कभू बिजली वाला मन के पाछू-पाछू घूमत रही। अरे अइसने करही त काय करही जिनगी म?""
मेघनाथ कथे '' तैं काहत तो बने हस गुरुजी, फेर ओखर मनेच नइहे पढ़ई म, त काय करँव?""
गुरुजी किहिस ''काय करँव झन क, लइका के स्कूल में भर्ती होना अउ पढ़ना-लिखना जरूरी हे। अरे दाई-ददा ह लइका के पढ़ई बर चेत नइ करही त गुरुजीच ह काय करही।""
मेघनाथ कथे- '' मैं तो पउर साल के ओला स्कूल भेजहूँ कहेंव गुरुजी, फेर नोनी ल पाही-खेलाही कहिके ओखर दाई ह एसो राहन दे कहि दिस। अब टूरा घुमक्कड़ होगे हे। घरो म रही त ओला टोरही, ओला फोरही। काली रेडियो ल खोलके बिगाड़ दिस, अउ आज पंखा ल छिहीं-बिहीं कर दिस। खिसियाएंव त भागगे। अब काय करँव? जउन ओखर भाग म होही तउन बनही।
गुरुजी कथे- अरे लइका भर्ती नइ होही भइया, त सरकार ह मोर भाग ल बिगाड़ दीही। कइसनो करके तैं काली ओला स्कूल लान।
 बिहान दिन गुरुजी खोरावत-खोरावत स्कूल जाए बर निकलिस। स्कूल के तीरेच म पहुँचे रिहिस। ओतके बेरा लइका मन डराए-घबराए भागत-भागत निकलत रिहिन। ''चटकगे-चटकगे"" चिल्लावत रिहिन।
गुरुजी पूछिस ''का चटकगे रे, अउ तुमन काबर हँफरत भागत हावव?"" 
लइका मन बताइन- ''गुरुजी-गुरुजी, पंखा के तार टूट गे हे। राजू, मोहन अउ गोलू चटक गेहे।""
अतका सुनिस त गुरुजी के धकधकी चढ़गे। ए काय होगे भगवान, काहत हड़बड़ी म दउड़ परिस। जइसे दउड़िस, गोड़ के हाड़ा रटाक ले टूटे कस लागिस, अउ गुरुजीचक्कर खाके गिरगे। मुड़ी फूटगे, बेहोस होगे।
 तभे स्कूल के पाछू डाहर ले चंदू ह लइका मन के चिल्लई ल सुनगे दउड़त अइस। करेंट म चटके के बात ल सुनिस ते सिद्धा स्कूल के परछी डारह भागत गिस। कुर्सी ल पटकके रटाक ले टोरिस, अउ ओखर खूरा ल धर के तार ल भवाँ के मारिस, चटके लइका मन छटकके भुइयाँ म गिरिन।
चंदू देखिस कि बिजली तार ह लटकत हे, फेर कोनो चटक जही। अइसे कहिके टेबल ल, बिजली के मीटर डाहर तीर के चढ़गे, अउ मेन स्वीच ल गिरा दिस। तार म बिजली करेंट बंद होगे। फेर देखिस कि लइका मन बेहोस परे हे। दउड़त डॉक्टर ल बला के लान डरिस। बात ल सुनिस त गाँववाला मन घलो सकलागें।
डॉक्टर के दवई-पानी म तीनों लइका ठीक होंगे। गुरुजी ल घलो अराम लागिस। तब सब बात ल लइका मन गुरुजी ल बताइन। गुरुजी भौंचक होगे। ओला ये समझत देरी नइ लागिस कि बिजली वाला मन के संग किंजरत-किंजरत चंदू ह ये सब ज्ञान पाहे।
गुरुजी चंदू ला तीर म बलाके पोटार लिस, अउ किहिस- ''साबास बेटा, साबास। आज तैं अपन ये लइका मन के परान बचाके महूँ ल बचादेस। कतको कहेव सरपंच ल, स्कूल के छानी-परवा अउ बिजली-विजली के मरामत करा दे, फेर कोनो धियान नइ दिस। आज लइका मन ल कुछू हो जतिस, त मैं का जवाब देतेंव? चंदू ल कथे बेटा आज तैं देखा देस कि उतलइन नइ हस, बहुत हुसियार हस, फेर स्कूल काबर नइ आवस। अब ले रोज स्कूल आबे, मैं तोला पढ़ाहूं-लिखाहूं। एक दिन तें बहुत बड़े आदमी बनबे।""
गुरुजी के परेम पाके चंदू रोज स्कूल आए लगिस अउ पढ़ई में घलो अउवल होगे। एक दिन स्कूल म संदेस आइस, चंदू के चयन वीरता पुरस्कार बर होहे। घातेच उतलइन चंदू ह आज स्कूल अउ गाँव के गौरव बनगे।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. गुरुजी के परेम पाके चंदू रोज स्कूल आए लगिस अउ पढ़ई में घलो अउवल होगे। एक दिन स्कूल म संदेस आइस, चंदू के चयन वीरता पुरस्कार बर होहे। घातेच उतलइन चंदू ह आज स्कूल अउ गाँव के गौरव बनगे। wah, Bahut marmik kahani

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  2. आदरणीय राजकुमार धर द्विवेदी जी, उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार... नमन।

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