बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

...तो और गजब होता







इन आंखों में रोशनी है, नूर है, गहराई है,
कोई ख्वाब अगर होता तो और गजब होता।
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लाखों में एक है, तेरा रूप यौवन,
हया भी होती तो और गजब होता।
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तुझमें अदा है, नजाकत है, दिल है, मुहब्बत है,
वफा भी होती तो और गजब होता।
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बादल है, बरसात है, रात है, तेरा साथ है,
कोई भूल हो जाती तो और गजब होता।
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हलवा है, पूड़ी है, कबाब है, बिरयानी है,
भूख अगर होती तो और गजब होता।
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पलंग है, गद्दा है, तकिया, रजाई है,
नींद अगर होती तो और गजब होता।
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पुलिस है, थाने हैं, कानून है, अदालत है,
इंसाफ सदा होता तो और गजब होता।
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सरकार है, दफ्तर है, अमला है, अफसर हैं,
गरीब का काम भी होता तो और गजब होता।
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हां आजाद हो तुम और कई अधिकार तुम्हारे,
याद अगर फर्ज भी होता तो और गजब होता।
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तुम शायर बड़े, कवि, कमाल के कलमकार,
मजलूमों के तरफदार भी होते तो और गजब होता।
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तेरे शहर में शूरमाओं के बुत बहुत हैं,
इनमें जान अगर होती तो और गजब होता।
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इमारतें बहुत हैं पूजा की, इबादत की,
वहां भगवान भी होते तो और गजब होता।
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मैं हिन्दू हूं, मुस्लिम हूं, सिख्ख हूं, ईसाई हूं,
इंसान अगर होता तो और गजब होता।
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तुन्हें पसंद है मेरे गीत, अशआर मेरे यार,
तारीफ भी कर देते तो और गजब होता।
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वो आज फिर चौक पर फहराएंगे तिरंगा,
उनका नकाब उतर जाता तो और गजब होता।
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नमन है वतन पे जां निसार करने वालों को,
उनके अरमां भी पूरे होते तो और गजब होता।
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और गर्व है मां भारती, संतान हूं तेरी,
तुझपे कुर्बान हो जाता तो और गजब होता।
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जय-हिन्द... वन्दे-मातरम्...
-ललित मानिकपुरी, रायपुर (छग)

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