सोमवार, 10 मार्च 2014

जाते कहाँ मुसाफिर...

 

जाते कहाँ मुसाफिर, जाना तुझे कहाँ है
तू देख ले ठहर कर, मंजिल तेरी कहाँ है।


जिधर तेरे कदम हैं, वो फरेब की डगर है
है मतलबों की दुनियां, बुराई का शहर है
ये प्यार की है गलियां, है नेकियों की बस्ती 
इस रास्ते पे आजा, तेरा खुद यहाँ है।


है जिंदगी जरा सी, मुस्कान दे जा सबको
ईमान और वफ़ा का, पैगाम दे जा सबको
दिल तोड़ न किसी का, दिल दिल से जोड़ ले तू
मस्जिद तेरी यहीं है, मंदिर तेरा यहाँ है।
… 


औरों में तू बुराई, न देख मेरे भाई 
हर जान है उसी की, हर जान में हैं साँईं
हर शख्स को बनाले, मीत अपने मन का
तू जीत ले जगत को, अपना तेरा जहाँ है।

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