बुधवार, 1 जून 2011

कुष्ठ और संसद

मित्र ने कहा, कितना अच्छा है न कि आप और हम कुष्ठ रोगी नहीं हैं? मैंने कहा कि हां, लेकिन आज अचानक यह सवाल आपके मन में कैसे आ गया, क्या कुष्ठ रोगियों की भयानक पीड़ा का अहसास हो गया? कितना अच्छा होता कि आप और हम कुष्ठ रोगियों की सेवा में कुछ कर पाते। यदि आप ऐसा कुछ करने की सोंच रहे हैं तो बहुत विचार बहुत अच्छे हैं। कुष्ठ पीड़ितों को नारकीय जीवन जीना पड़ता है। उनके हाथ-पैर धीरे-धीरे गल जाते हैं। भयानक पीड़ा होती है। इससे भी अधिक पीड़ा तब होती है जब इस रोग के कारण उन्हें समाज में घृणा की दृष्टि से देखा जाता है। उन्हें पापी कहकर धिक्कारा जाता है। परिवार के सगे संबंधी भी मुंह फेर लेते हैं, उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं। उन्हें उनके ही घर और गांव से निकाल दिया जाता है। अपने तन और मन की भयानक पीड़ा को सहते हुए वे सड़कों पर भीख मांगने के लिए विवश हो जाते हैं। जरा सोचों कि यह रोग हमें होता तो हम पर क्या बीतती।
मित्र ने कहा कि अरे भाई आप तो कुष्ठ रोगियों की कथा सुनाने लगे, मैं उनकी नहीं अपने बारे में सोचने को कह रहा हूं। चुनाव आ रहा है पार्टियों की टिकट बट रही है। कोशिश हमें भी करनी चाहिए। अभी से दावा करेंगे तो आगे चलकर कभी न कभी टिकट मिल ही जाएगी। हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था महान है। आम आदमी भी देश के संसद में पहुंच सकता है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी बन सकता है। इसके लिए आदमी के रंग-रूप, वेश-भूषा, कद-काठी, जात-पात की कोई बाधा नहीं। वह भारत का नागरिक होना चाहिए चाहे वह भारत के किसी भी कोने का निवासी हो। उसका पढ़ा लिखा होना भी आवश्यक नहीं। अंगूठा छाप हो तो भी चलेगा। डाकू और हत्यारे भी चुनाव जीतकर सांसद, मंत्री बन जाते हैं। हम तो फिर भी ठीक हैं।
मैंने कहा कि आप तो कुष्ठ रोगियों की बात कर रहे थे, अचानक चुनाव की चर्चा करने लगे। मित्र ने कहा, आप इतना भी नहीं समझते कि कुष्ठ रोग हो गया तो सारी योग्यता होते हुए भी हम संसद में नहीं पहुंच पाएंगे। संसद क्या, विधानसभा के सदस्य भी नहीं बन पाएंगे। आदमी को और कोई भी बीमारी हो तो कोई बात नहीं, लेकिन कुष्ठ रोग नहीं होना चाहिए। देखते नहीं, हमारे नेता सांसद, विधायक या मंत्री बनते ही किस तरह विदेशों में जाकर अपनी बीमारियों का इलाज कराते हैं। उन्हें तरह-तरह की बीमारियां होती हैं। नींद की बीमारी होने के कारण कई सांसद, संसद की कार्रवाई की दौरान सोते रहते हैं। हंगामा से भी उनकी नींद नही टूटती। कई को तो ऐसी भी बीमारियां होती हैं, जिनका फ़िलहाल कोई इलाज नहीं है। भ्रष्टाचार, बेइमानी, झूठ, फरेब  उनकी रगों में समा गया है। सत्ता की भूख निरंतर बढ़ती जाती है। स्वार्थ के चलते वे कभी अंधे, गूंगे और बहरे बन जाते हैं तो कभी जाति-धर्म के नाम पर दंगे-फसाद  कराते हैं। निर्दोष जनता का खून बहाते हैं। फिर  भी उन्हें यह एहसास भी नहीं होता कि उनका और जनता का हाल देखकर भारत माता खून के आंसू रो रही है।
मित्र ने कहा कि इतनी गंभीर बीमारियां होते हुए भी पीड़ित नेताओं पर चुनाव लड़ने के लिए कोई रोक नहीं है परन्तु, कुष्ठ रोगी के लिए है।
मैंने कहा कि मित्र चिकित्सा विज्ञान तो कहता है कि कुष्ठ लाइलाज नहीं है, फिर  वर्षों पूर्व बने नियम-कानून के तहत कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति को संसद या विधानसभा का सदस्य बनने से अब भी क्यों वंचित किया जा रहा है। मित्र ने कहा  अजी आप भी नहीं समझते, कुष्ठ रोगियों को दर्द का एहसास होता है। यानी वे दर्द का एहसास कर सकते हैं। सोंचों भला कि पुराने प्रावधान में संसोधन कर उन्हें सांसद या विधायक बनने का पात्र मान लिया गया और वे चुनाव जीत गए तो क्या होगा? संसद या विधानसभा में ऐसे लोग पहुंचने लगेंगे जिन्हें दुख-दर्द का एहसास होता है। वे जनता के भी दुख-दर्द का एहसास कर लेंगे। ऐसे में भला हमारे आदरणीय नेताओं की राजनीति कैसे चल पाएगी।

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