आजा पिया...
चांद, सुरुज ना... भाए तारे...आजा पिया घर में अंधियारे।
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मन मंदिर में जोत जलाऊं,
तुम्हरी लौ से लौ लगाऊं,
अंतस का तम हरले आकर,
उर भर दे... उजियारे...
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न फूलन की, न चंदन की,
महक न भाये ये बगियन की,
मन को तू महका दे आकर
प्रीत सुधा... बरसादे...
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राह तकूं बस तोरे प्रियतम,
नाम रटूं बस तोरे प्रियतम,
सांसों की डोरी टूटत है
अब तो तू अपनाले....
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(अपने ईष्ट को समर्पित)
- ललित मानिकपुरी
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