सोमवार, 5 जनवरी 2015

आजा पिया...

चांद, सुरुज ना... भाए तारे...
आजा पिया घर में अंधियारे।
...
मन मंदिर में जोत जलाऊं,
तुम्हरी लौ से लौ लगाऊं,
अंतस का तम हरले आकर,
उर भर दे... उजियारे...
...
न फूलन की, न चंदन की,
महक न भाये ये बगियन की,

मन को तू महका दे आकर
प्रीत सुधा... बरसादे...
...
राह तकूं बस तोरे प्रियतम,
नाम रटूं बस तोरे प्रियतम,
सांसों की डोरी टूटत है
अब तो तू अपनाले....

...

(अपने ईष्ट को समर्पित)

 - ललित मानिकपुरी 

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