इतना ही फसाना है...
आसमां ने यूं देखा तिरछी नजर से,
लाल हो गई धरती मारे शरम से।
नींद से जागी, थी ले रही अंगड़ाई,
आसमां ने रंग दी चूनर किरण से।
रंग गए पौधे और रंग गए ताल,
जैसे रंग गए गेसू, रंग गए गाल।
पहाड़ों पर धूप सरकने लगी ऐसे,
आसमां की नजरें गुजरती सीने से।
मुंह धोकर धरती ने भी यूं मारा छींटा,
नीले आकाश पर बादलों का टीका।
ओस से भीगी ये पतली डगर ऐसी,
सिंदूरी सफर की आस कोई जैसी।
इस मोहब्बत का इतना ही फसाना है,
यूं सामने रहना और जुदाई का तराना है।
.........................
-ललित मानिकपुरी
लाल हो गई धरती मारे शरम से।
नींद से जागी, थी ले रही अंगड़ाई,
आसमां ने रंग दी चूनर किरण से।
रंग गए पौधे और रंग गए ताल,
जैसे रंग गए गेसू, रंग गए गाल।
पहाड़ों पर धूप सरकने लगी ऐसे,
आसमां की नजरें गुजरती सीने से।
मुंह धोकर धरती ने भी यूं मारा छींटा,
नीले आकाश पर बादलों का टीका।
ओस से भीगी ये पतली डगर ऐसी,
सिंदूरी सफर की आस कोई जैसी।
इस मोहब्बत का इतना ही फसाना है,
यूं सामने रहना और जुदाई का तराना है।
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-ललित मानिकपुरी
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