शुक्रवार, 27 मई 2011

बारात से न बिगड़े बात


पौराणिक कथा है कि भगवान शंकर की बारात भूतों की बारात थी। देवता भी गए थे पर उनसे अलग-थलग थे। इस बारात का वर्णन कथा वाचक बड़े रोचक ढंग से करते हैं जिसमें बड़ा ही आनंद आता है। बारात शब्द में ही आनंद है। किन्तु आजकल बारात का जो स्वरूप अक्सर सामने आता है, उसे देखकर-सुनकर आनंद नहीं आता, बल्कि दुख ही होता है। भगवान शंकर के बाराती बने भूत-पिशाच अपनी तमाम अजीबोगरीब हरकतों के बावजूद मर्यादा में थे और यह बारात एक मिसाल बन गई। लेकिन आजकल के बाराती तो भूत पिशाचों को भी शर्मशार कर दें। शराब पीकर अमर्यादित व्यवहार करना, छेड़छाड़, लड़ाई-झगड़ा करना तो आम हो गया है। वे घरातियों को नीचा दिखाने के लिए उनका अपमान करने से भी नहीं चूकते। गाली-गलौज, मारपीट और तोड़फोड़ तक करते हैं। ऐसे बारातियों की हरकतों से जहां घराती पक्ष को नुकसान उठाना पड़ता है वहीं बाराती पक्ष को भी शर्मिंदा होना पड़ता है। कई बार ऐसे बारातियों की उन्हीं के अंदाज में जमकर खातिरदारी भी की जाती है, लेकिन अमूमन घराती पक्ष के लोग सामाजिक मान-मर्यादा का ध्यान रखते हुए बात बिगड़ने से रोकने की पूरी कोशिश करते हैं और बारातियों की हर अनैतिक हरकतों को अनदेखा कर देते हैं। कई बार बात वाकई बिगड़ जाती है और एक पवित्र रिश्ता बनने से बनने से पहले से टूट जाता है या रिश्तों में जिंदगी भर के लिए कड़ुवाहट घुल जाती है। मेरे विचार से बारात में शिष्ट लोगों को ही ले जाएं, जो विवाह के आदर्श साक्षी बनें और जिनकी उपस्थिति से दोनों पक्ष गौरवान्वित व आनंदित हों। बांकी लोगों को चाहें तो अपने रिसेप्शन में बुला सकते हैं।

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