शुक्रवार, 27 मई 2011

गरीबी में बीमारी की गुंजाईश कहाँ


दुनिया में जीवन विज्ञान कहां से कहां पहुंच गया है। ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देते हुए लैब में जीवन की रचना कर रहा है। चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों को देख-सुनकर लगता है कि अब बीमारियों पर विजय पाना आसान हो गया है। यह भी दावे किए जा रहे हैं कि एक दिन विज्ञान के सहारे इंसान बुढ़ापा और मृत्यु को भी जीत लेगा। वर्तमान की ही बात करें तो बीमारियों की जांच और उपचार में आश्चार्यजनक ढंग से उपयोगी तरह-तरह की मशीनों और चिकित्सा रहस्यों को सुलझाने वाले विद्वान डॉक्टरों से अस्पताल लैस हैं। नए-नए प्रयोगों से इजाद की गई दवाएं बनाने वाली फैक्टियों की भरमार है। वहीं शरीर के नख से लेकर सिर तक तक बाहरी-भीतरी सभी अंगों व उसके रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टरों की फौज है। सचमुच में स्वास्थ्य व चिकित्सा सुविधाओं में हम इतनी तरक्की कर चुके हैं कि कल तक जिन बीमारियों का नाम सुनते ही चेहरे से हवाइयां उड़ जाती थीं, उन बीमारियों के होने को भी लोग अब सहजता से लेने लगे हैं। पर कौन लोग? वे जिनके पास पैसा है इलाज के नाम पर लुटाने के लिए। सब जानते हैं कि आज इलाज के नाम पर किस कदर लूट मची हुई है। आम आदमी तो अस्पताल का नाम सुनकर ही थर्रा जाता है। फिर भी बीमारी से बच नहीं पाता और अस्पताल पहुंच ही जाता है। फिर क्या, उपलब्धियों की ऊंचाइयां छू रहा चिकित्सा विज्ञान मरीज की जेबें खंगालना शुरू कर देता है।
लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा कहती है कि राज्य को अपने नागरिकों के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। इसका सम्मान करते हुए वर्तमान में सरकारें भी  स्वास्थ्य व चिकित्सा सुविधा के नाम पर अरबों-खरबों रुपए खर्च कर रही है। लेकिन  आम जनता को इसका कितना फायदा मिल पा रहा है? सरकारी अस्पतालों की दशा ऐसी है कि आदमी नरक  जाना पसंद करे, पर वहां नहीं। आम आदमी गरीबी और बीमारी से जूझते हुए कैसे जीता  है, यह तो वहीं जानता है। यह जरूर है कि इसे उसके जैसे लाखों करोड़ों लोग रोजाना महसूस करते हैं, लेकिन वे लोग महसूस नहीं कर पाते जिनके हाथों में इसका उपचार है।
गरीबी वाकई आदमी के लिए सबसे बड़ी बीमारी है। इस पर और किसी बीमारी के लिए कोई गुंजाईश नहीं बचती। गरीबी में कोई और बीमारी हो जाए तो समझिए आखिरी दिन आ गए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें