भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं बिरकोनी की मां चण्डी, भटके लोगों को बताती हैं राह
रणचण्डी की इतनी सुंदर पाषाण प्रतिमा अन्यत्र दुर्लभ
महासमुंद जिले के ग्राम बिरकोनी की पुण्यधरा पर अवस्थित आदिशक्ति स्वरूपा मां चण्डी का मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है। यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
इस विश्वास भाव के प्रतिफल ही देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं और माता का दर्शन-पूजन कर अलौकिक सुख-शांति का अनुभव करते हैं।
यहां की मां चण्डी अद्वितीय सुंदरी हैं। काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित इतनी सुंदर रणचण्डी की प्रतिमा अत्यंत दुर्लभ है।
कहते हैं नवरात्र में हर रात मां के चेहरे का भाव परिवर्तन होता रहता है। कभी प्रचण्ड तेजस्विनी दिखती हैं, तो कभी सौम्य ममतामयी,
परन्तु हर रूप में वह मनोहारिणी हैं।
मां चण्डी की कीर्ति मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी के रूप में है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात वर्ष 2002 में शासन के निर्देश पर इस मातृशक्ति स्थल के संबंध में शिक्षक पोखन दास मानिकपुरी द्वारा यहां के बड़े-बुजुर्गों और जानकारों से रूबरू चर्चा कर प्राप्त तथ्यों और जानकारी के आधार पर संकलन आलेख तैयार किया गया था। उस आलेख के अनुसार इस स्थल पर देवी कब से विराजमान हैं, इसका स्पष्टतः उत्तर बुजुर्गों के पास भी नहीं है।
किन्तु जनस्रुतियों के आधार पर इसका इतिहास पौराणिक काल से शुरू होता है, जब श्रीपुर यानी वर्तमान सिरपुर बाणासुर की राजधानी थी। उसकी सैनिक छावनी बिरकोनी के पास थी। उनके सैनिकों ने ही रणचण्डी की प्रतिमा यहां एक टीले पर स्थापित की थी। युद्ध पर जाने से पूर्व वे विजय की कामना करते हुए मां चण्डी की पूजा करते और जयकारा लगाते हुए रणभूमि को प्रस्थान करते थे।
कुछ लोगों का मानना है कि इस स्थान पर प्राचीन राज्य सिरपुर या आरंग के सैनिकों की छावनी रही होगी। इस स्थान को बिरकोनी के पास महानदी किनारे स्थित ग्राम राजा बड़गांव में हुए हैहृयवंशी राजपूत ठाकुरों की सैनिक छावनी होने का अनुमान भी लगाया जाता है।
अनुमान अलग-अलग होने के बावजूद एक तथ्य जो सभी स्वीकारते हैं, वह यह है कि इस देवी स्थल के आसपास सैनिकों की छावनी थी। वीर सैनिकों के रहने के कारण ही इस गांव का नाम 'बीरकोनी' पड़ा जो बाद में अपभ्रंश होकर 'बिरकोनी' हो गया। वर्तमान में मंदिर स्थल पर सैनिक छावनी होने के अनेक प्रमाण मौजूद हैं।
मंदिर के रास्ते पर एक आयताकार क्षेत्र है, जिसे लोग 'हाथी गोड़रा' कहते हैं, जिसका अर्थ है हाथी रखने का स्थान। हाथी गोड़रा का भग्नावशेष यहां मौजूद है। युद्ध में जाने के पूर्व सैनिक मां चण्डी की पूजा-अर्चना करते थे। आज भी प्रतीकात्मक रूप से विजयादशमी पर्व के अवसर पर ऐसा किया जाता है। ग्रामीण पहले मां चण्डी मंदिर आकर पूजा-अर्चना करते हैं, फिर बस्ती में रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें रावण का वध किया जाता है।
माता के संबंध में एक किवदंती यह भी है कि उनका प्रारंभिक वास तुमगांव समीपस्थ ग्राम भोरिंग में था, किन्तु वे किसी बात से रूष्ठ होकर बिरकोनी आ गईं। भोरिंग के लोग आज भी मां चण्डी को ग्राम्य देवी की तरह पूजते हैं।
मान्यता यह भी है कि बिरकोनी की मां चण्डी, बेमचा की मां खल्लारी और भीमखोज खल्लारी माता का आपस में बहन का नाता है। इसके संबंध में प्रचलित किवदंतियों के तार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
बिरकोनी में मां चण्डी का मंदिर जिस स्थान पर है वह पहले वनाच्छादित था। कोरिया, कुर्रू व महुआ के पेड़ों की बहुलता थी। महुआ को स्थानीय बोली में मउहा कहा जाता है। महुआ पेड़ों की बहुलता के कारण ही इस वन क्षेत्र को मउहारी कहा जाता था। मउहारी क्षेत्र में चिंगरीडीह व चूहरीडीह नामक दो वनग्राम थे, जो अब नहीं हैं, लेकिन इन बस्तियों के नाम पर चिंगरिया और
चुहरी नामक तालाब आज भी हैं।
स्थानीय निवासी जंगल के बीच पत्थरों के टीले पर विराजमान मां चण्डी को ग्राम्यदेवी के रूप में पूजते थे। चूंकि मउहारी वन में वन्यप्राणियों का स्वच्छंद विचरण होता था, इसलिए माता तक पहुंचना आसान नहीं था। तब भी एक बैगा दंपति माता की सेवा में लगी रहती थी।
बताया जाता है कि बैगा भैयाराम यादव व उनकी पत्नी को माता की कृपा से कई सिद्धियां प्राप्त थीं। बैगा भैयाराम यादव की चमत्कारिक शक्तियों के रोचक किस्सों की चर्चा ग्रामीण आज भी करते हैं। दूर-दूर से दुःखी जन उनके पास आते थे और अपनी पीड़ा का समाधान पाते थे। बैगा भैयाराम पीड़ितजन को मां चण्डी की चरण-शरण होने के लिए प्रेरित करते थे।
इस तरह मां चण्डी के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती गई और इसकी कीर्ति मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी के रूप में फैलती गई। बैगा भैयाराम यादव की समाधि मां चण्डी मंदिर के बाजू में ही स्थित है, लोग आज भी उन पर श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं।
लोग बताते हैं, जब सड़क नहीं थी, तब जंगल के रास्ते पैदल ही आना जाना करते थे। कहते हैं कि जब लोग रास्ता भटक जाते थे तब मां चण्डी की मानव के रूप में प्रकट होकर उन्हें रास्ता बताती थीं।
उस समय देवी के स्थल पर सर्पों का बसेरा होता था। नाग-नागिन के अलावा एक विशाल अजगर का भी लोग उल्लेख करते हैं, जो हर समय माता के ईर्द-गिर्द रहते थे। जब भव्य मंदिर निर्माण के लिए गर्भगृह से लगे एक पेड़ की कटाई की गई, तो उसके भीतर एक बड़े खोल में अजगर का विशाल कंकाल सुरक्षित मिला।
नाग-नागिन के संबंध में कहा जाता है कि वे आज भी मंदिर के उत्तर-पश्चिम कोने में स्थित एक पुराने वट वृृृक्ष में वास करते हैं। लोग इस वट वृक्ष की पूजा करते हैं और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए लाल कपड़े में नारियल, सुपारी लपेटकर बांधते हैं। ऐसे भाव-बंधनों से यह वट-वृक्ष भरा हुआ है।
वर्ष 1937-38 में जब ब्रिटिश शासन काल में रायपुर-विजयनगर रेल पांत बिछाई गई और महानदी में पुल निर्माण किया गया तब बिरकोनी की भूमि पर उपलब्ध ग्रेनाइट चट्टान के विशाल भंडार से गिट्टी, बोल्डर की ढुलाई की जा रही थी। उस समय महाराष्ट्र से आए ठेकेदार मजदूरी का भुगतान मां चण्डी की प्रतिमा के पास बैठकर करते थे। उन्होंने वहां पत्थरों से वर्गाकार चबूतरा बनाकर उस पर प्रतिमा को स्थापित कराया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस चबूतरे पर सीमेंट कंक्रीट का कमरानुमा मंदिर बनाया गया। यह निर्माण दाई भोरमबाई चंद्राकर के पुत्र बिसौहा चंद्राकर ने कराया था।
कहते हैं कि भोरम बाई व गंगू चंद्राकर ने पुत्र प्राप्ति की कामना की थी, जिसे मां चण्डी ने पूरी की थी। दाई भोरम बाई चंद्राकर की इच्छा के अनुरूप पुत्र बिसौहा चंद्राकर ने यह मंदिर बनवाया। वर्षों बीत गए, मंदिर की यह संरचना भी पुरानी पड़ गई।
इधर माता के दरबार मंे आने वाले श्रद्धालु पीने के पानी को तरस जाते थे। गांव के मजदूर लच्छीराम निषाद ने कुआं खोदने का निश्चय
किया और खुदाई शुरू की, लेकिन बीच में चट्टान आ गया। शासन से आर्थिक मदद मिलने पर वे चट्टान को भी तोड़ गए और कुछ दिनों बाद कुआं मीठे पानी से भर गया।
इस चट्टानी भूमि पर कुआं और उसमें पानी देखकर लोगों में आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। इसे माता का चमत्कार माना गया और लोग मंदिर विकास के लिए उत्साहित हुए।
रामा चंद्राकर ने तब तक मंदिर के चारों ओर चबूतरे का विस्तार करा दिया था। गांव के दुर्गा समिति के सदस्यों ने मां चण्डी मंदिर के विकास में जुटने का निश्चय किया और मां चण्डी मंदिर विकास समिति का गठन किया। बलदाऊ चंद्राकर अध्यक्ष, दीनबंधु चंद्राकर उपाध्यक्ष, दामजी चंद्राकर सचिव, अशोक चंद्राकर कोषाध्यक्ष और ओमप्रकाश चंद्राकर संयोजक बनाए गए।
अघोर पंथ के लहरी बाबा ने उन्हें मंदिर निर्माण के लिए प्रेरित किया। समिति के सदस्यों ने लाखों की लागत वाले भव्य मंदिर निर्माण की योजना बनाई, इसके लिए प्रारंभ में अपने बीच ही सहयोग राशि एकत्रित की।
मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हुआ तो जनसहयोग बढ़ता गया। मंदिर का भूमिपूजन तत्कालीन सांसद संत पवन दीवान ने किया। आगे भी क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन का सहयोग मिलता गया और मंदिर का विकास होता गया।
सड़क, बिजली, पानी की सुविधाओं के साथ ज्योति कक्ष, रंगमंच, यज्ञ शाला, सामुदायिक भवन आदि का निर्माण हुआ। रायपुर के इंजीनियर दिलीप पाणिग्रही द्वारा तैयार नक्शा के आधार पर व उनके मार्गदर्शन में करीब 51 लाख की लागत से अष्ट कोणीय भव्य मंदिर का निर्माण हुआ और पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती की गरिमामय उपस्थिति में शिखर कलश की स्थापना हुई।
आज इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। करीब पांच दशक पूर्व बिरकोनी के लोकप्रिय सरपंच रहे दाऊ पोखन चंद्राकर चैत्र नवरात्र में भैयाराम बैगा के मार्गदर्शन में ज्योति प्रज्ज्वलित कराते थे। साथ ही आचार्य पं. उमाशंकर शर्मा द्वारा अष्टमी पर हवन-पूजन कराते थे।
दाऊ पोखन चंद्राकर के अनुज खोमन चंद्राकर ने वर्ष 1981 में मां के मंदिर में प्रथम बार पांच मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित की गई। इसके बाद ज्योति कलशों की संख्या बढ़ती गई और आज इस देवी शक्तिपीठ में अखंड ज्योति के अलावा चैत्र और क्वांर नवरात्र में हजारों की संख्या में मनोकामना ज्योति कलश स्थापित की जाती है।
नवरात्र में हजारों मनोकामना ज्योति कलशों की झिलमिल छटा दर्शनीय है। दोनों नवरात्र में मां चण्डी के दरबार में श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है। वहीं पौष पूर्णिमा पर मेला लगता है।
वर्तमान में दिनेश्वर चंद्राकर की अध्यक्षता।में मंदिर कमेटी पूरी व्यवस्था का संचालन कर रही है। मां चण्डी का दरबार धर्म, आध्यात्म, कला, संस्कृति के संवर्धन का केन्द्र बना हुआ है।
स्थिति: मां चण्डी सिद्ध शक्तिपीठ बिरकोनी का यह प्रसिद्ध मंदिर बिरकोनी बस्ती की दक्षिण दिशा में लगभग डेढ़ किमी दूर स्थित है। यह गांव नेशनल हाइवे क्रमांक 53 पर महानदी के पूर्व में राजधानी रायपुर से लगभग 45 किमी और जिला मुख्यालय महासमुंद से लगभग 15 किमी दूर स्थित है। रायपुर-विशाखापट्टनम रेलमार्ग पर बेलसोंडा स्टेशन मंदिर के दक्षिण-पश्चिम में मात्र 2 किमी दूर है। इसका निकटतम हवाई अड्डा राजधानी रायपुर का माना स्थित स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा है।
प्रस्तुति एवं संपादन-
ललित मानिकपुरी, महासमुंद (छग)
#जय_मां_चंडी
#जय_माता_दी
#chhattisgarh
#mahasamund
#shaktipith
#birkoni
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें