शनिवार, 7 अगस्त 2021

छत्तीसगढ़ी म एक ग़ज़ल

 

मिरगा के पिला मन ल बघवा दुलरावत हे,

जंगल म पक्का चुनई के मउसम आवत हे।

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कोकड़ा ह जेन दिन ले टिकट पाए हे,

तरिया भर मछरी मन ल चारा बँटवावत हे।

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जंगल के राजा करय सबके विकास,

हिरनी मन बर तरिया खनवावत हे।

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चाँटा-चाँटी मन तो ताला-बेली होगें,

लॉकडाउन म मुसवा मन मोटावत हें।

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दिन भर देस-दुनिया म का-का होइस,

अपन टीवी चैनल म चमगेदरी बतावत हे। 

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नीर-छीर करे बर कंउआ मन भिड़े हें,

हंस मन तो मुकदमा म पेरावत हें।

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कछुआ, खरगोस तो इनाम रखे गे हें,

दउड़ म ए दरी अजगर अगुवावत हे।

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रचना :- ललित मानिकपुरी, स्वतंत्र पत्रकार, महासमुंद (छग) 


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