सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो

धरे रहो मत वीणा मैया...
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धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।
छेड़ो ऐसी तान कोई अब, कण-कण में टंकार भरो।।

हंस तुम्हारे दाना तरसें, कौए मोती पेल रहे।
फटेहाल श्रम करने वाले, शोषक मेवा झेल रहे।।
देखो जग की हालत मैया, आँखों में अंगार भरो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।

कपटी और मक्कार फरेबी, सत्ता का सुख भोग रहे।
घायल करके लोकतंत्र को, लहू देश का चूस रहे।।
होश ठिकाने आए इनके, जन-जन में हुंकार भरो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।

ललनाओं की लाज लुट रही, चीख रही है मानवता।
वेश बदल रावण फिरते हैं, पल-पल बढ़ती दानवता।।
वीणा से शोला निकले अब, सरगम प्रलयंकार करो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।

जहर हो रही हवा आज, नदियाँ आँसू बहा रहीं।
वन उपवन सब उजड़ रहे हैं, धरती मैया सुबक रही।।
राग नया कोई छेड़ो मैया, प्रकृति का नव श्रृंगार करो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।

देश हमारा मधुबन जैसा, ऋतुराज वसंत भी आते हैं।
पर कोयल सब खामोश खड़ी हैं, हर साख पे उल्लू गाते हैं।।
हे शारद वीणापाणी माँ, दो नव विहान उपकार करो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।
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ललित मानिकपुरी
वरिष्ठ पत्रकार, महासमुंद

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