गुरुवार, 20 जून 2013

छत्तीसगढ़ी कहानी... पेंउस



कहानीकार- ललित दास मानिकपुरी

घर के तीर जइसे पहुंचिस, तनू ह खुसी के मारे उछले लगिस। ममा के गाड़ी ले झट उतरगे अउ रानी गाय ल पोटार लिस।

 'रानी आगे... रानी आगे..., नानी... नानी... रानी आगे" अइसे काहत कूदे-नाचे लगिस।

'आ...रे, आ..." अइसे नानी के इसारे पाके रानी गाय बां... बां...करत भीतर गिस। 

कोठा म जइसे गाय-बछवा मन घलो रस्ता जोहत राहय, रानी के अवाज ल सुनके सबके कान खड़ा होगे। 

रानी गाय कोठा के परछी म बने अपन ठउर म जाके खड़े होगे। 
एती तनू ह 'चल दूध पीबे, चल..." काहत ओखर चंदनू बछरू ल ले आनिस। 

बछरू घलो 'अम्मा..." काहत उझलत-कूदत अपन मां करा पहुंचगे। हुदेन-हुदेन के दूध पीये लगिस। 

रानी गाय अपन बछरू ल चांटत-दुलारत सुघर दूध पियाए लगिस। येला देखके तनू ताली-बजा-बजाके नाचे लगिस। 

फेर का तनू के नाना-नानी अउ ममा-मामी सबके चेहरा म मुसकान आगे।

घंटाभर पहिली के ही बात आय। घर म कइसे उदासी छाय रहिस। तनू न तो खात रहिस न पियत रहिस।

 'का होगे, रानी अतका बेर ले आए कइसे नी हे, सब गइया तो आगे?" ये सवाल रहि-रहि के पूछय। 

बछरू अम्मा... अम्मा... कहिके चिल्लावय त तनू के करेजा लहुटे धरै। आंखी ले आंसू झरै। रहि-रहि के मुहाटी अउ गली-खोर म निकल-निकल के देखय। रानी नी दिखय त फेर परछी म आके बइठ जाय।

'आ जाही बेटी, आ जाही, चल एक कौंरा खाले।" अइसे नानी अउ मामी समझावय। 

फेर तनू कहां मानय। उल्टा उही मन ल काहय- देखौ न, चंदनू अम्मा... अम्मा... करत भूख म कइसन रोवत हे। 

बछरू के नरियई अउ तनू के करलई ल देख के सबो बेचैन होगे राहय। नानी तो बछरू ल पानी-पसिया पियाय के प्रयास घलो करिस, लेकिन बछरू ओमा मुंह तक नी धरय। बस अम्मा... अम्मा... रटत रहय।

थक हार के नानी घलो बइठगे। नाना ल कथे-'अइसन म जी रोवासी लागथे हो, आंखी दिखतिस त मीही ह खोज के ले आनतेंव। बिहनिया गिस त थोरिक खोरावत रहिस हे। मैं जानेंव कोठा म गाय-बछवा के झगरा म लाग दिस होही, का जानंव चरे बर जाही त आयेच नी सकही कहिके। अब कती खार, कती नरवा परे होही?"

नाना कथे- 'मोहन घलो दुकान ले नी आवत हे। आतिस त भेजतेंव गाय ल खोजे बर। सब गाय-गरू ल बेचहूं काहत रहिस हे। जतन करइया नी हे। बहू बिचारी ल स्कूल अउ घर कुरिया के काम-बूता ले समय नी मिलय, अउ बेटा ल दुकान ले। महूं सियान होगेंव, तैं एक झन का करबे, अउ कतका दिन ले करे सकबे ओ। गांव के चरागन घलो सिरागे, गरवा मन बाहिर ले भूखे आथे अउ घर म प्यासे रहिथे। अइसन करलई ले तो बने होही बेची दै सब गाय-गरू ल।"

तभे मुहाटी म गाड़ी के हारन बाजिस। 
'ममा आगे" काहत तनू दउड़िस अउ झट गाड़ी म चढ़ गे।
'ममा... ममा... झन भितरा गाड़ी ल, रानी गइया आय नी हे, चंदनू रोवत हे, चल न ममा, रानी ल खोज के लानबो।"

तनू के बात सुनके ममा कथे- 'अभी तो बहुत घाम हे बेटा, चल खाना खाबो तब तक गाय आ जाही। अउ नी आही त जाबो खोजे बर।"

तनू जिद म अड़ गे 'न ही, अभिच जाबो"। 
ममा समझगे तनू नी मानय। जब ले आहे छुट्टी मनाए बर बछरू मन के संग मगन रइथे। अउ जब ले चंदनू जमने हे तब ले ओखर खुसी के ठिकाना नी हे। बस ओला पोटारत-चूमत रइथे। जब तक चंदनू के मां नी आही, तनू ल चैन नी परय।

फेर का, पेटभर पानी पी के अउ मुंड़-कान ल बांध के दूनों झन निकलगे गाय ल खोजे बर। ये रस्ता ले ओ रस्ता, खेत-खार, तरिया, डबरी सबो कोती किंजरगें, फेर गाय नी मिलस। तनू उदास होगे। प्यास म टोटा घलो सुखाय ल लगिस। थक हार के दूनों घर लहुटगें।

घर के तीर पहुंचिन त देखथे कि गाय तो इंहा पहुंचगे हे। ओखर आय ले जइसे घर म खुसी आगे। 

नानी-नाना के चिंता उतरिस। मोहन ल कहिन - 'डाक्टर ल बला के ले आनबे बेटा, गाय के पांव के इलाज कर देही।"

अब सबो झन गोड़-हाथ धोके खाय बर बइठत रहिन, तभे मवेसी कोचिया जोहत राम पहुंचगे। 

जोहत राम कथे- 'मोहन दाऊ, गाय-बछवा मन ल बेचहूं काहत रेहे गा, लेगे बर आए हंव। तीन-तीन सौ के हिसाब म नौ ठन के सत्तइस सौ होथे। ले पइसा अउ जल्दी ढिलौ।"

मोहन अपन मां-बाबूजी अउ तनू डाहर देखथे। उंखर चेहरा के भाव ल समझगे। कथे- 'मैं अपन बिचार बदल देंव कोचिया। सत्तइस सौ पइसा बर अपन भरे कोठा ल नी उजारंव।"

कोचिया कथे- 'देख भई, भाव बियाना के बाद सौदा ले नटना ठीक बात नी होय। अब चल मैं ले जाय बर आए हंव त पूरा तीन हजार दे देहूं। अब जल्दी ढिलौ। वइसे भी तुमन तो गाय-गरू के सेवा जतन करे नी सकत हव, अइसने रखई ह लक्ष्मी ल सजा देवई तो आय। दे दव मोला, कम से कम लक्ष्मी के सरापा ले बांच जाहू।"

अतका सुनिस त तनू के नाना भड़कगे- 'कस रे जोहत राम तैं गाय-गरू ल अइसने बिसा के कट्टी वाला मन ल बेच देथस। मास बर गौ के जी के सौदा करथस त तोला उंखर सरापा नी लगय, अउ हमला श्राप लगही? तैं तुरते अपन मुख ल टार। हमन अपन जीयत भर ले गाय-गरू के सेवा करबो।"

अतका सुनिस त तनू के मामी कथे- 'आप मन ठीक कहत हौ बाबूजी, कसाई के हाथ म अपन गाय मन ल नी देन। गांव म चरागन नी हे त का होइस पैरा-भूसा तो खवा सकथंन। 

अपन गरभ म हाथ फेरत अउ तनू ल दुलारत मामी कथे- 'कोठा ल उजार के अपन नवा पीढ़ी के भाग ले दूध-दही ल नी छीनन।" 

गोठ चलते रहिस। एती तनू के नानी ह कटोरी म पेंउस धर के अइस अउ कोचिया ल प्रेम से देवत कथे- 'ले कोचिया खा, खाय के चीज ये होथे, गौ के मास खाय के चीज नी होय।" 

हाथ म पेंउस के कटोरी अइस त कोचिया अपन नजर ल झुका दिस। जइसे पेंउस के महक पाके ओखरो अंतस महके लगिस।
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कहानी - ललित दास मानिकपुरी
ग्राम व पोस्ट-बिरकोनी
जिला-महासमुंद (छग)
मो. 9752111088

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