जीवन का आधार 'धरती' और ऊर्जा के परम स्रोत 'सूर्य' के विवाह का महा-उत्सव : खे-खेल बेंजा
इस समय आदिवासी अंचलों में हर्ष और उल्लास का वातावरण है, क्योंकि आदिवासी परंपरा का महत्वपूर्ण पर्व धरती पूजन 'खद्दी परब' के साथ पारंपरिक मेलों की धूम है। छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियों में शुमार उरांव जनजाति की बोली यानी कुडुख बोली में 'खद्दी परब' या 'खेखेल बेंजा' का आशय होता है 'धरती का विवाह'। इस आदिम परंपरा से पता चलता है कि आदिवासी समाज प्रकृति से कितना गहरा नाता रखता है और इस नाते को जीवंत बनाए रखने के लिए भी किस तरह चैतन्य व समर्पित है।
आदिवासी मानते हैं कि धरती जीव-जगत का आधार है। हमें अन्न, जल, फल-फूल धरती से ही मिलते हैं। पेड़-पौधों, नदियों, पहाड़ों, झरनों का सुख भी धरती ही है। धरती की अनुकंपा से ही जीवों का जीवन चलता है। इस अनुकंपा के लिए धरती के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा का भाव वक्त करने के लिए यह महा उत्सव कहीं खद्दी परब, कहीं सरहुल या कहीं अन्य नाम से हर वर्ष मनाया जाता है।
पतझड़ के बाद जब प्रकृति पुनः फलने-फूलने के लिए तैयार हो रही होती है, जब नए कोपलों, नई कलियों से पेड़-पौधों का नवश्रृंगार हो रहा होता है, जब जंगल रंग-बिरंगे फूलों और उनकी महक से भरा होता है, जब बसंती बयार नए फलों की आमद का संकेत दे रही होती है, तब प्रकृति से अभिन्न वनवासी, आदिवासी समाज 'धरती पूजन' का अपना महापर्व मनाता है। यह महापर्व देश के अलग-अलग आदिवासी अंचलों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ में यह खद्दी परब या खे-खेल बेंजा नाम से जाना जाता है।
यहां यह पर्व चैत्र के महीने में मनाया जाता है, जब जंगल में सरई के पेड़ फूलों से लद जाते हैं। आदिवासी परंपरा के अनुसार माटी यानी धरती और सरई वृक्ष की पूजा की जाती है। जीवन का आधार उर्वर धरती और ऊर्जा के परम स्रोत सूर्य के विवाह का प्रतीकात्मक आयोजन किया जाता है। धरती और सूर्य के मांगलिक मेल से ही जीवन संभव और सुखद हो सकता है। यह पर्व मानव जीवन का प्रकृति के साथ जीवंत रिश्तों को बरकरार रखने और प्रकृति की रक्षा के लिए संकल्पित होने का पर्व है।
छत्तीसगढ़ में बस्तर, सरगुजा, जशपुर अंचल में यह पर्व महा उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें उरांव जनजाति की विशेष भूमिका के साथ सर्व आदिवासी समुदाय तथा वहां के निवासी अन्य जातियों के खेतिहर किसानों की भी सहज सहभागिता होती है। अपनी पुरातन पर्व परंपराओं से आदिवासी समाज प्रकृति की परवाह करने की सीख हजारों साल से दुनिया को दे रहा है।
• आलेख - ललित मानिकपुरी, रायपुर (छत्तीसगढ़)
#khaddi_parab #sarhul #dhartipujan #aadiwasi #chhattisgarh #khekhelbenja #traibal