आपने देखा है, "कुहकी डंडा नृत्य" कैसे होता है? यह भारत के प्राचीन लोक नृत्यों में से एक है, जो अब विलुप्त होने के कगार पर है। मैं यहां जानबूझकर "विलुप्त" शब्द का उपयोग कर रहा हूं, क्योंकि जीवंतता लोकनृत्यों में भी होती है।
पूरे मध्य भारत में छत्तीसगढ़ के बिरकोनी जैसे कुछ ही ग्राम ऐसे हैं जहां कुहकी डंडा लोकनृत्य की परंपरा आज भी चली आ रही है। पशुपालक कृषकों द्वारा फागुन त्यौहार के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है।
बिना किसी वाद्य यंत्र के केवल कंठ से निकलने वाली आवाज़ "कुहकी" और डंडों के टकराने की ध्वनि से ही इस नृत्य के लिए संगीत उपजता है। डंडों की चाल और ताल के साथ नृत्य की गति जैसे-जैसे तेज होती जाती है, नर्तन वृत्त पर ऐसा अद्भुत रोमांचकारी दृश्य उत्पन्न होता है कि नजरें टिकी रह जाती हैं।
नृत्य करने वाले ही नृत्य के साथ-साथ गीत भी गाते चलते हैं। ये गीत लोकभाषा में होते हैं, फूहड़ कतई नहीं। इन गीतों में जीवन के हर्ष, विषाद और जीव की परम् गति शब्दों से उच्चारित होती है और यही भाव-दृश्य नृत्य आवृत्त में भी परिलक्षित होता है।
हमारे गांव बिरकोनी के कृषक सियानों ने इस लोकनृत्य को सहेज कर रखा है। वे चाहते हैं कि नई पीढ़ी भी इस लोकनृत्य में रुचि ले, इसे आगे बढ़ाए।
पांच पीढ़ियों से संभाले हुए हैं :
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बिरकोनी गांव के सियानों ने विलुप्ति के कगार पर पहुंचे पारंपरिक कला कुहकी डंडा नृत्य को पांच पीढ़ियों से संभाले रखा है।
कंठ से निकली आवाज़ ही "कुहकी"
कुहकी डंडा नृत्य कला व परंपरा का अदभुत संगम है। कुहकी डंडा नृत्य एक ऐसा नृत्य है, जिसमें कंठ से निकाली जानी वाली विशिष्ट आवाज "कुहकी" से ही नृत्य की लय, गति और डंडे की चाल बदल रहती है।
100 से चली आ रही यह नृत्य परंपरा :
100 सालों से फागुन त्यौहार के अवसर पर इस नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है। गांव में यह नृत्य कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलती रही है। फागुनी माहौल में कुहकी कलाकारों का उत्साह और इस नृत्य का वास्तविक सौंदर्य दिखाई पड़ता है।
सभी नृत्य कलाकार 60 साल पार :
कुहकी नृत्य करने वाले अधिकतर 60 साल के ऊपर के हो चले हैं। वे नई पीढ़ी को यह कला सिखाना और इस नृत्य परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं। किंतु नई पीढ़ी रुचि नहीं ले रही है।
8 या 10 व्यक्ति का होना जरूरी :
बुजुर्ग कलाकार बताते हैं कि कुहकी नृत्य में डंडा चालन के लिए 8 या 10 व्यक्ति का होना जरूरी है। प्रत्येक नर्तक के हाथ में एक या दो डंडा होता है। नृत्य का प्रथम चरण ताल मिलाना है। दूसरा चरण कुहकी देने पर नृत्य चालन और उसी के साथ गायन होता है। नर्तक एक-दूसरे के डंडे पर डंडे से चोट करते हैं। डंडों की समवेत ध्वनि से अल्हादकारी संगीत उपस्थित होता है।
कुहकी के भी कई रूप :
कुहकी नृत्य भी अनेक प्रकार का होता है। छर्रा, तीन टेहरी, गोल छर्रा, समधीन भेंट और घुस। अभी बिरकोनी के सियान छर्रा और तीन टेहरी का प्रदर्शन करते हैं। फागुन त्यौहार के अवसर पर इसका आनंद लेने हजारों की भीड़ लगी होती है।
क्या कहते हैं सियान :
गांव के लोक कलाकार बुधारू निषाद बताते हैं कि 10 साल की उम्र से ही होली के अवसर पर कुहकी नृत्य करते आ रहे हैं। हमारे पुरखों ने इस सांस्कृतिक कला की नींव रखी थी। उसे हमने आगे बढ़ाया। वर्तमान में 8-10 लोग ही कुहकी डंडा नृत्य करते हैं। नई पीढ़ी इसमें रुचि ले तो यह लोक नृत्य आगे भी जिंदा रहा सकता है। इसके गीत भी मधुर और भक्ति भाव से भरे होते हैं।
क्या है कुहकी :
कुहकी नृत्य में एक व्यक्ति गले से एक अलग तरह की आवाज निकालता है। इस आवाज से नृत्य की लय व डंडे की चाल बदलती है। आवाज से इशारा मिलने पर नर्तक नृत्य का तरीका बदलने के साथ आगे-पीछे घूमकर डंडे से डंडे पर चोट करते हैं।
बिना साज अद्भुत नृत्य :
कुहकी नृत्य में एक विशिष्ट बात यह है कि इस नृत्य के दौरान कोई भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता। नर्तकों के डंडों की चोट की समवेत ध्वनि और कुहकी की आवाज से बिना साज ही संगीत सी लहर दौड़ने लगती है।
पशुपालक कृषकों का नृत्य :
कुहकी डंडा नृत्य छत्तीसगढ़ के पशुपालक कृषकों का पारंपरिक नृत्य है, पहले कृषि और पशुपालन करने वाले ग्रामीण प्रायः हाथों में डंडे लेकर चलते थे। फागुनी उमंग में डंडों से ही संगीत की तरंग निकाल लेते थे। इस नृत्य का किसी जाति विशेष से कोई संबंध नहीं है। हां यह नृत्य केवल पुरुष ही करते हैं। इस नृत्य में तीव्र डंडा चालन जोखिम भरा होता है।
✍️ललित मानिकपुरी,
बिरकोनी, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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