शनिवार, 27 जनवरी 2024

कौन हैं छत्तीसगढ़ के जागेश्वर यादव, जो होंगे पद्मश्री से सम्मानित? क्यों कहा जाता है उन्हें 'बिरहोर के भाई'? Who is Jageshwar Yadav of Chhattisgarh, who will be honored with Padma Shri? Why are they called 'Brothers of Birhor'?

छत्तीसगढ़ के जागेश्वर यादव



गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इस साल के पद्म पुरस्कारों की घोषणा हुई है. छत्तीसगढ़ की 3 विभूतियों को पद्मश्री से विभूषित किया जाएगा. वे तीन विभूतियां हैं जशपुर के जागेश्वर यादव, रायगढ़ के रामलाल सेठ और नारायणपुर के हेमचंद मांझी.


आइए हम जिला जशपुर के जागेश्वर यादव के बारे में जानते हैं. जशपुर के आदिवासियों के लिए काम करने वाले जागेश्वर एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने आदिवासियों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. जागेश्वर ने पड़ाही कोरवा और बिरहोर जैसी जनजातियों के लिए काम किया है. क्षेत्र में उन्हें 'बिहोर के भाई' के नाम से जाना जाता है.


छत्तीसगढ़ में सिर्फ 3 हजार की जनसंख्या वाले विलुप्तप्राय विशेष संरक्षित बिरहोर जनजाति के उत्थान के लिए इस इंसान ने नंगे पांव अपनी पूरी जिंदगी बीता दी. पिछले 40 सालों की कड़ी मेहनत के बाद आज इंसानों की तरह जीवन यापन करने वाले बिरहोर जनजाति के लोग अब आत्मनिर्भर बन चुके हैं और सामाजिक जीवन जी रहे हैं. जागेश्वर यादव ने अपनी पूरी जिंदगी बिरहोर जनजाति के उत्थान के लिए लगा दी.



जशपुर के शिवरीनारायण में बसे बिरहोर जनजाति के लोग आज से 40 साल पहले आदि मानव की तरह जीवन यापन करते थे. घने जंगलों के बीच इस जनजाति के लोग बिना कपड़ों के झोंपड़ी में रहा करते थे और जंगली जानवरों का शिकार कर, जंगल के फल खाकर अपना जीवन यापन करते थे. अज्ञानता की वजह से कई बार मरे हुए जंगली जानवरों का मांस खाने की वजह से इस जनजाति के लोगों की मौत भी हो रही थी. जनजाति के इस हालात को देखकर पड़ोस के गांव अम्बाटोली निवासी जागेश्वर राम ने इनके उत्थान का बीड़ा उठाया.


बिरहोर जनजाति के लोग अपने समाज के बाहर के लोगों से दूर रहा करते थे और उनसे कोई मेल-जोल रखना पसंद भी नहीं करते थे. अगर कोई इनसे मिलने की कोशिश भी करता तो जनजाति के लोग डरकर जंगलों में छिप जाया करते थे, लेकिन ऐसी परिस्थिथियों के बीच भी जगेश्वर राम ने इनके साथ समय बिताना शुरू किया. इनसे मेल-जोल बढ़ाने के लिए वो हफ्तों तक इनके साथ रहते थे. उसके बाद जागेश्वर ने बिरहोर जनजाति के लोगों को समझाइश देना शुरू किया. तात्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिलकर जगेश्वर राम ने इस विलुप्त होती जनजाति को विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा देने की मांग भी की थी.


जागेश्वर राम ने यह भी प्रण लिया था जब तक बिरहोर को विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा नहीं मिलेगा तब तक वो शादी नही करेंगे. काफी प्रयासरत रहने के बाद इस जनजाति को विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा मिल गया और इनके उत्थान के लिए प्रशासनिक मदद मिलनी भी शुरू हो गई. जागेश्वर राम सालों तक इनके जीवन शैली में परिवर्तन के लिए प्रयासरत रहे जिसकी वजह से अब इस जनजाति के रहन सहन, आहार, व्यवहार में काफी बदलाव आया है.


अब इस जनजाति के लोग भले ही जंगलों में ना रहकर जंगलों के किनारे रहते हैं लेकिन जंगली जानवरों के मांस और कन्दमूल खाने वाले बिरहोरों ने अब जंगली जानवरो का शिकार बंद कर दिया है. अब वे खेती करते हैं, पशुपालन करते हैं और आम इंसानों की तरह भोजन करते हैं. इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय रस्सी बनाकर बेचना है और आजीविका का मुख्य साधन भी. इस गांव में जागेश्वर राम की पहल पर सड़क, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं.


जागेश्वर राम को अब इस जनजाति के लोग भगवान मानते हैं. बिरहोर जनजाति के उत्थान के लिए अपनी पूरी जिंदगी बिता देने वाले जागेश्वर राम यादव को 2015 में छत्तीसगढ़ सरकार ने शहीद वीरनारायण सिंह पुरस्कार से भी सम्मानित किया है. समाजसेवक जागेश्वर राम यादव ने पूरी जिंदगी बिरहोरों के उत्थान के लिए नंगे पांव रहने का भी संकल्प लिया था और आज भी ये नंगे पांव ही रहते हैं. 


इस प्रकार जागेश्वर राम यादव ने "परहित सरिस धर्म नहिं भाई" को चरितार्थ किया. उनके जैसे लोगों की जिंदगी को देखकर ही कहा गया होगा कि जीना उसी का जीना है, जो औरों को जीवन देता है.

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