शनिवार, 27 जनवरी 2024
रविवार, 16 जुलाई 2023
हरियाली का उत्सव, बहारों का जश्न है... हरेली
पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक है कि हम धरती की हरियाली को बचाए रखें। हरियाली के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं रहेगा। हरियाली है तभी खुशहाली भी है। यह अहम संदेश पीढ़ी-दर-पीढ़ी सरलता के साथ और प्रभावी ढंग से पहुंचती रहे, शायद इसी कारण हमारे पूर्वजों ने हरेली त्योहार मनाने की पंरपरा शुरू की होगी। सावन का महीना पौधरोपण के लिए बेहतर समय होता है। हरेली सावन अमावस्या को मनाई जाती है। इस समय तक खेतों में जोताई बोआई का कार्य पूरा हो जाता है और खेती-किसानी की व्यस्तता से कुछ अवकाश का क्षण होता है। यह वह समय होता है जब पेड़-पौधे लगाकर उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है। हरेली में हर घर के दरवाजे पर और खेत-खलिहानों में नीम या भेलवा नामक औषधीय पौधे की डंगाल खोंसने, अरंडी के पत्तों में पशुओं को लोंदी खिलाने, गेंड़ी बनाने, नागर यानी हल और कृषि औजारों की पूजा... ऐसी कई रस्में निभाई जाती हैं, जिनके माध्यम से लोगों को पेड़-पौधों की महत्ता का ज्ञान या स्मरण सहज रूप से हो जाता है। इसलिए यह त्योहार पर्यावरण के प्रति जन-जागरूकता की शानदार मिसाल है। पारंपरिक जन-जागरूकता का ही परिणाम है कि देश के वन क्षेत्र में छत्तीसगढ़ का सबसे अहम स्थान है और अभी यहां का 44.21 प्रतिशत से अधिक भू-भाग वनाच्छादित है।
*बनगोंदली और दसमूल प्रसाद परंपरा में सेहत सुरक्षा का ख्याल :
यह ऐसा प्रसाद है जो हरेली त्योहार के दिन सुबह गांवों के गौठानों में ही मिलता है। ये प्रसाद धेनु चराने का काम करने वाले चरवाहे राउत जन ही बांटते हैं। असल में गांवों के जंगलों से चरवाहे राउतों से अधिक परिचित कौन हो सकते हैं। धेनु चराते वो जंगल की जड़ी बूटियां और कंदमूल आसानी से ले भी आते हैं। बनगोंदली और दसमूल भी औषधीय गुणों से युक्त कंद-मूल हैं, जो छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाए जाते हैं। स्थानीय स्तर पर रदालू कांदा, बनकांदा, दसमूर, दसमुड़ ऐसे कई अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। हरेली के पहले चरवाहे राउत जन जंगल से ये कंद-मूल खोदकर लाते हैं, बड़े बर्तन में उबालते हैं और हरेली की सुबह गौठान में गांव वालों को काढ़ा सहित प्रसाद के रूप में बांटते हैं। गांव के लोग, बच्चे भी यह कंद-मूल रुचि से खाते हैं। माना जाता है कि औषधीय गुणों से भरे इन कंद-मूलों के सेवन से बरसाती मौसमी बीमारियों, संक्रमण और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से लड़ने के लिए शरीर सशक्त बनता है और बचाव कर पाता है। बरसात का मौसम जन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है, अपने आस-पास उपलब्ध प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का सेवन कर हम किस प्रकार अपनी सेहत की रक्षा कर सकते हैं, इसका संदेश इस परंपरा से मिलता है।
*आटा और नमक लोंदी खिलाने की परंपरा में पशुधन की परवाह :
बरसात का मौसम लोगों के लिए ही नहीं, पशुधन के लिए भी अत्यधिक चुनौतीपूर्ण होता है। इसलिए जन स्वास्थ्य के साथ ही पशुओं के स्वास्थ्य और पोषण का ध्यान रखना जरूरी है। बरसात में नई-नई हरी-हरी घास पशुओं को लुभाती है, लेकिन घास चरते समय मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं, वायरस या बैक्टीरिया की चपेट में आ सकते हैं। पशुओं को इस समय भूजन्य रोगों का खतरा अधिक होता है। हरेली के दिन गौठान में पशुओं को दशमुड़ और बनकांदा के अलावा नमक और गेंहू आटे की लोंदी खिलाई जाती है। खम्हार पत्ता या अरंडी पत्ता में लपेटकर नमक और आटे की लोंदी को खिलाया जाता है। नमक पाचन के लिए और गेंहू आटा की लोई पोषण में सहायक होती है। यह पशुओं के स्वास्थ्य और पोषण के प्रति जागरूकता का प्रयास है। एक लोई खिलाने से पशु को पोषण नहीं मिल जाता, यह संदेश है कि पशुओं के स्वास्थ्य और पोषण का पूरा ख्याल रखें, जरूरत पड़े तो गेंहू आटे की लोई भी खिलाएं, क्योंकि पशु हमारी कृषि के प्रमुख आधार हैं और कृषि हमारे जीवन व संस्कृति का आधार है। हरेली के दिन घरों में कृषि औजारों की पूजा कर गुरहा चीला यानी गुड़ से बना चीला, गुलगुला बोबरा आदि खास पकवान खाने की परंपरा भी पोषण का ही हिस्सा है। स्वास्थ्य और सेहतमंद रहने के लिए अच्छा आहार भी आवश्यक है।
*पर्यावरण के अनुकूल हैं छत्तीसगढ़ सरकार की योजनाएं :
छत्तीसगढ़ सरकार की तमाम योजनाएं और कार्यक्रम प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल हैं। सुराजी गांव योजना के तहत इसके चार घटकों नरवा, गरवा, घुरवा और बारी कार्यक्रम के तहत जो कार्य किए जा रहे हैं उसमें प्रकृति की सेवा-सुरक्षा और जनकल्याण मूल भाव है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की इस सोच के अनुसार धरातल पर हो रहे कार्यों का व्यापक और गहरा प्रभाव अब परिलक्षित होने लगा है। नरवा कार्यक्रम के तहत प्रदेश के 12743 बरसाती नदी-नालों का ट्रीटमेंट कर उन्हें पुनर्जीवित किया गया है। उनके जल धारण क्षमता में बढ़ोतरी से भू-जल स्तर में जबरदस्त सुधार हो रहा है। इससे जंगलों में हरियाली का बढ़ना भी स्वाभाविक है, और जीव-जन्तुओं के लिए अनुकूलता भी। नदियों के तटों पर लाखों की संख्या में पौधे लगाए जा रहे हैं। इस साल नदी तट वृक्षारोपण योजना के तहत हसदेव, गागर, बांकी, बुधरा, बनास, जमाड़, महानदी, शिवनाथ, खारून नदी के तट पर 4 लाख से अधिक पौधों का रोपण किया जाएगा। किसानों को वाणिज्यिक प्रजाति के वृक्षारोपण हेतु प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना भी लागू की गई है। शहरों में नए ऑक्सीजोन के रूप में कृष्ण कुंज आकार ले रहे हैं।
विशेष आलेख - ✍️ ललित मानिकपुरी
मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022
व्यंग्य : रावण बोला "अगर ना जलूं तो?"
"सुनो... सुनो ना... अरे इधर-उधर कहां देख रहे हो, सामने देखो, मैं बोल रहा हूं, रावण।"
इस आवाज से पुतला बनाने वाले आर्टिस्ट की हालत खराब हो गई। कांपते अधरों से बस तीन शब्द बोल पाया "रा..वण!"
"हां... रावण!" पुतला फिर बोला।
मारे डर के आर्टिस्ट ऊंचे मचान से गिरते-गिरते बचा।
पुतला बोला - "अरे डर क्यों रहे हो? तुमने ही तो बनाया है ना मुझे?"
आर्टिस्ट मन ही मन कहने लगा- "ये क्या हो रहा है? आज तक तो ऐसा नहीं हुआ।" वह रावण के पुतले को आश्चर्य से देखे जा रहा था।
इतने में पुतला फिर बोला- डरो नहीं, मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं।"
किसी तरह खुद को संभालते हुए आर्टिस्ट बोला - "कहिए सर, क्या कहना चाहते हैं?"
"मैं जानना चाहता हूं कि तुम्हारी इच्छा क्या है?"
रावण के पुतले का ऐसा बोलना था कि आर्टिस्ट कांपने लगा। बोला- "सर मेरी आखिरी इच्छा क्यों पूछ रहे हैं? मैं मरना नहीं चाहता। मुझसे कोई गलती हुई है तो प्लीज़ माफ़ कर दीजिए।"
"अरे तुम्हारी आखिरी इच्छा नहीं पूछ रहा हूं। मैं ये पूछ रहा कि तुम इतनी मेहनत से ये जो मेरा पुतला बना रहे हो, उसका करोगे क्या?"
रावण के पुतले और आर्टिस्ट के बीच संवाद जारी रहा।
"मैं कुछ नहीं करूंगा सर, कसम से मैं कुछ भी नहीं करूंगा।"
"तो फिर बना क्यों रहे हो?"
"वो तो समिति वालों ने आर्डर दिया है सर। दशहरा के दिन आपको जलाएंगे।"
"और तुझे क्या लगता है, मैं जल जाऊंगा?"
"सर आज तक तो ऐसा कभी नहीं हुआ है कि लोगों ने आपको जलाया और आप न जले हों।"
"अच्छा, और अगर न जलूं तो?"
"आपके अंदर बारूद-फटाखे तो पहले ही भरे होते हैं, केरोसिन डालकर जला डालेंगे।"
"हा हा हा हा..." अट्टहास करते हुए रावण के पुतले ने कहा - "ये, ये लोग मुझे जलाएंगे? "हा हा हा हा...हा हा हा हा..." रावण को जलाएंगे? नहीं...नहीं जलूंगा।"
आर्टिस्ट थरथरा रहा था। लेकिन प्राणों से ज्यादा फिक्र पैसे की हो रही थी। हिम्मत कर उसने कहा- "सर आप नहीं जलेंगे तो, ये लोग मेरी ऐसी-तैसी कर डालेंगे। पैसा भी नहीं देंगे। हजारों-लाखों रुपए लगते हैं सर रावण बनाने में, आई मीन आपका पुतला बनाने में। पुतला दहन के साथ ही आतिशबाजी भी होती है। सब गड़बड़ हो जाएगा। मेरे इतने दिनों की मेहनत और खर्च बर्बाद हो जाएगा। बाल-बच्चेदार आदमी हूं सर, इस काम से जो पैसा मिलेगा, उसी से परिवार के लिए राशन पानी का इंतजाम करूंगा। आप नहीं जलेंगे तो बड़ी तकलीफ़ हो जाएगी।" इतना कहते-कहते आर्टिस्ट की आंखें डबडबा गईं।
"अरे यार तुम तो रोने लगे। मैं तो यूं ही मज़ाक कर रहा था। दरअसल मैं तुम्हारी कला से बहुत खुश हूं। तुमने बहुत परिश्रम से मेरा पुतला बनाया है। तुम जब मेरी मूंछों को बढ़िया ऐंठनदार बना रहे थे, तभी तुमसे मज़ाक करने का मन हुआ।"
"तो सर आप जलेंगे ना?" आर्टिस्ट ने पूछा।
रावण के पुतले ने गंभीरता से कहा- "हां जलूंगा, क्योंकि मेरे जलने से तुम्हारे घर का चूल्हा जलता है। लोग मुझे जलाने के साथ यदि अपनी बुराई भी जला देते तो उनके लिए भी जल जाने में खुशी होती।"
रचना- ✍️ ललित मानिकपुरी, बिरकोनी, महासमुंद (छ.ग.)
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शनिवार, 30 जुलाई 2022
छत्तीसगढ़ी हास्य रचना
कुकुर मन के जबर फिकर...
कलवा कुकुर- गली सड़क म गरवा मन ला भूँक-भूँक के दउड़ावन त का मजा आवय यार। अब मजा नी आवत हे।
भुरवा कुकुर- हाॅं यार सब गरवा मन तो गौठान म ओइलाय हें, बाॅंचे खुचे मन कोठा म बॅंधाय हें। गली डाहर सुन्ना पर गे हे।
खोरवा कुकुर- अरे गौठान म उॅंखर बर का गजब बेवस्था हे भाई, चारा, पानी, छइहाॅं...अरे मत पूछ। हमीं मन लठंग-लठंग एती-ओती फिरत हन। कुकुर मन के तो कोनो पूछइया नी हे।
झबला कुकुर- अरे धीरे बोल रे भाई, नी जानस का? छत्तीसगढ़ सरकार ह पहिली तो गोबर खरीदी चालू करिस, अउ अब गौमूत्र घलो बिसावत हे। देखत रहिबे बाॅंचे-खुचे गरवा मन घलो गौठान म ओइला जहीं, नी ते कोठा म बॅंधा जहीं। हमन तो एती-ओती गली-डाहर के घुमइया अउ मस्त रहइया कुकुर आन, सोचव भूपेश सरकार के नजर कहूॅं हमर ऊपर पर गे, तब का होही?
भुरवा कुकुर- बने कथस भाई, जनता के फायदा करे बर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दिमाग म कोई भी आइडिया आ सकत हे। "गोधन न्याय योजना" के जइसे कहूॅं "श्वान धन योजना" लॉन्च कर दिस तब का होही? हमर तो मरे बिहान हो जही। सब मोर बात मानव, अउ अतलंग करना बंद करौ, जबरन भूॅंकना हबरना बंद करौ। रात म अपन ड्यूटी करौ अउ दिन म सबला "जय जोहार" करौ।
जय जोहार...
- साहेब छत्तीसगढ़िया, महासमुंद
रविवार, 1 मई 2022
छत्तीसगढ़ के बोरे-बासी Bore-Basi
(अपना पसीना बहाकर देश-दुनिया में विकास की क्रांति लाने वाले, अपने सृजन से नव दुनिया का निर्माण करने वाले, संसार का पोषण करने के लिए खेतों अन्न उपजाने वाले श्रमवीरों के सम्मान में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी सहित लाखों छत्तीसगढ़िया लोगों ने आज श्रमिक दिवस पर "बोरे-बासी" खाकर छत्तीसगढ़िया मेहनतकश मजदूर किसान वर्ग के इस पारंपरिक आहार की महत्ता को वैश्विक पटल पर स्थापित करने के प्रयासों में अपना महती योगदान किया।)
छत्तीसगढ़ के सीधे-सरल और मेहनतकश लोगों, किसान, मजदूर, वनवासी, आदिवासी जन के जीवन में "नवा बिहान" लाने छत्तीसगढ़ राज्य का स्वप्न देखने वाले हमारे पुरखों ने उस दौर में यहां सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक जागरण के लिए अपने-अपने ढंग से अथक प्रयास किए। डाॅ. खूबचंद बघेल जी और पद्मश्री पं. श्यामलाल चतुर्वेदी जी हमारे उन महान पुरखों में अग्रणी थे। उन्होंने अपनी लेखनी से भी जनजागरण का अलख जगाया। यहां तक छत्तीसगढ़ियों के प्रमुख आहार "बासी" को भी छत्तीसगढ़िया जागरण का प्रतीक बनाया। बासी के वैज्ञानिक गुणों, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता को समझते हुए उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से किस तरह "बासी" की महिमा गाई और जन-जन को छत्तीसगढ़िया गौरव का एहसास कराया उसका एहसास आप भी कीजिए।
गजब बिटामिन भरे हुये हैं,
(डाॅ. खूबचंद बघेल जी की रचना)
बासी के गुण कहूँ कहाँ तक, इसे ना टालो हाँसी में।
गजब बिटामिन भरे हुये हैं, छत्तीसगढ़ के बासी में।।
नादानी से फूल उठा मैं, ओछो की शाबासी में,
फसल उन्हारी बोई मैंने, असमय हाय मटासी में।।
अंतिम बासी को सांधा, निज यौवन पूरन मासी में,
बुद्ध-कबीर मिले मुझको, बस छत्तीसगढ़ के बासी में।।
बासी के गुण कहूँ कहाँ तक, इसे ना टालो हाँसी में।।
विद्वतजन को हरि-दर्शन मिले, जो राजाज्ञा की फाँसी में,
राजनीति भर देती है यह, बूढ़े में, संन्यासी में।।
विदुषी भी प्रख्यात यहाँ थी, जो लक्ष्मी थी झाँसी में,
स्वर्गीय नेता की लंबी मूंछें भी बढ़ी हुई थी बासी में।।
गजब बिटामिन भरे हुये हैं, छत्तीसगढ़ के बासी में।।
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छत्तीसगढ़ के बासी
- (पद्मश्री पं. श्यामलाल चतुर्वेदी जी की रचना)
जबड़ पुष्टई भरे हे भाई, छत्तीसगढ़ के बासी मा।
ठाढ बेरा म माई पिल्ला, खेत खार ले आथन तौ।
एकक बटकी हेर हेरके, चटनी लुन म खाथन तौ।।
जिव हर निचट जुड़ाथे चाहे कतको रही थकासी मा।
जबड़ पुष्टई भरे हे भाई, छत्तीसगढ़ के बासी मा।।
चाह पिअइया मन ला देखेन, झीटी कस हो जायें गा।
एक मुठा तो भात ला खाथे, का सेवाद ला पायें गा?
ओमन गुनथें बासी खाके, झन पर जाई हाँसी मा।
हम रथन टनमनहा उनमन फदगे रइथें खांसी मा॥
बासी खाके जमो देस बर चाउर हमीं कमाथन गा।
तभ्भो उलटा पुलटा हमन अंड़हा मुरुख कहाथन गा।।
हम छोड़बो बासी ला, तब सब पर जाहीं हांसी मा।
जम्मो राज के जिव परान हे छत्तीसगढ़ के बासी मा।।
पेज समुंद मा बासी बिस्नु, बुड़े बिहनहे ले देखा।
पंचामृत कस पीवो खा परसाद बरोबर अनलेखा॥
बासी खाके ओ फल पावा, जउन अजोध्या कांसी मा।
जबड़ पुष्टई भरे हे भाई, छत्तीसगढ़ के बासी मा।।
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(एक मेरी रचना)
बड़ सुहाथे बासी...
- ललित मानिकपुरी
बिहनियाँ नहा-खोर के,
बइठ पालथी मार के,
पहिली भोग लगाती, बड़ सुहाथे बासी।।
***
एक फोरी अथान के,
नून डार ले जान के,
गोंदली चानी उफलाती, बड़ सुहाथे बासी।।
***
खेत के मेड़ पार म,
डोंगरी जंगल खार म,
करम के ठठाती, बड़ सुहाथे बासी।।
***
ठीहा म, खदान म,
कारखाना बूता-काम म,
पछीना के ओगराती, बड़ सुहाथे बासी।।
***
किसान के बनिहार के
बिटामिन ए परिवार के
तन-मन के जुड़वासी, बड़ सुहाथे बासी।।
******************************
बासी म बिस्नू बसैं,
ब्रम्हा बरी, अथान,
गोंदली गणपति, मही महेश,
बस महाप्रसादी जान।
*****************************
शनिवार, 7 अगस्त 2021
छत्तीसगढ़ी म एक ग़ज़ल
मिरगा के पिला मन ल बघवा दुलरावत हे,
जंगल म पक्का चुनई के मउसम आवत हे।
***
कोकड़ा ह जेन दिन ले टिकट पाए हे,
तरिया भर मछरी मन ल चारा बँटवावत हे।
***
जंगल के राजा करय सबके विकास,
हिरनी मन बर तरिया खनवावत हे।
***
चाँटा-चाँटी मन तो ताला-बेली होगें,
लॉकडाउन म मुसवा मन मोटावत हें।
***
दिन भर देस-दुनिया म का-का होइस,
अपन टीवी चैनल म चमगेदरी बतावत हे।
***
नीर-छीर करे बर कंउआ मन भिड़े हें,
हंस मन तो मुकदमा म पेरावत हें।
***
कछुआ, खरगोस तो इनाम रखे गे हें,
दउड़ म ए दरी अजगर अगुवावत हे।
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रचना :- ललित मानिकपुरी, स्वतंत्र पत्रकार, महासमुंद (छग)
बुधवार, 27 मई 2020
'यमलोक में कोरोना इफेक्ट'
"ये क्या कह रहे हो चित्रगुप्त, ऐसा कैसे हो सकता है? जिन लोगों का डेथ वारंट कट चुका है, उनको तो यमलोक लाना ही पड़ेगा। भला उनको कैसे छोड़ सकता हूँ? इससे तो पूरी व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी।" यमराज ने कहा।
"महाराज व्यवस्था तो गड़बड़ा ही चुकी है। अब आप ही बताइए जिन लोगों को यमलोक लाया जा रहा है उन्हें आखिर हम कहाँ भेजें? स्वर्ग में भारी विरोध हो रहा है। अरे जो नरक में हैं वो भी बवाल मचा रहे हैं। सब यही कह रहे हैं, इन्हें अंदर नहीं आने देंगे। इस समय हम लोग केवल पाप और पुण्य का हिसाब लगाकर इन्हें स्वर्ग या नरक में नहीं भेज सकते। पृथ्वी के तमाम देशों में इस समय कोरोना वायरस (कोविड-19) फैला हुआ है। इस वायरस के बारे में अभी तक वहाँ के वैज्ञानिक ही ठीक से नहीं जान पाए हैं। यह भी कहा जा रहा है कि यह वायरस हर जगह वहाँ की स्थिति, परिस्थिति के अनुसार खुद को अपडेट कर लेता है। कहीं हमारे यमलोक और स्वर्ग या नर्क में कोरोना आ गया, तब फिर क्या होगा?" चित्रगुप्त बोले जा रहे थे। उन्हें टोकते हुए यमराज बोल पड़े।
"तो तुम्ही बताओ चित्रगुप्त हम क्या करें? हम यमराज हैं। जिनके जीवन की घड़ी समाप्त हो जाती है, उन्हें यमलोक में लाना और उनके पाप-पुण्य का हिसाब लगाकर स्वर्ग या नरक में भेजना हमारा काम है। हम अपने कर्तव्य से किंचित भी विरक्त नहीं हो सकते।"
चित्रगुप्त ने कहा "यही तो समस्या है महाराज कि स्वर्ग या नरक के बीच आपने कोई जगह बनवाई ही नहीं, जहाँ इस समय मर रहे लोगों को अलग से रखा जा सके। भारत में तो उन लोगों को अपने ही गाँव में घुसने नहीं दिया जा रहा है, जो अपने गाँव छोड़कर बाहर रोजी-मजदूरी करने गए थे। ऐसे लोगों को गाँव के बाहर क्वारेंटाइन किया जा रहा है। जो लोग कोरोना से मर रहे हैं, उनके पास तो परिजन भी नहीं फटक रहे। अंतिम क्रिया-कर्म भी सरकारी मुलाजिम कर रहे हैं। मैंने तो यह भी सुना है कि हमारे कुछ यमदूत भी छींक-खाँस रहे हैं।"
इतना सुनते ही यमराज भड़क गए। बोले- "चित्रगुप्त! तुम कुछ सत्य के साथ कुछ झूठ मिलाकर अफवाह फैलाने का काम कर रहे हो। जैसा कि इन दिनों कुछ धूर्त लोग पृथ्वी में कर रहे हैं। तुम खुद डरे हुए हो और हमें भी डराने का प्रयत्न कर रहे हो। जानते नहीं, हम यमराज हैं, यमराज। ये सब वायरस फायरस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, ये सब मृत्युलोक के लोगों के लिए है। स्वर्ग और नरक दोनों जगह जाकर वहां के निवासियों को समझाओ कि पृथ्वी लोक से आने वाले किसी भी व्यक्ति से उन्हें कोई खतरा नहीं। व्यर्थ का बवाल न मचाएं।"
चित्रगुप्त ने कहा- "खतरा कैसे नहीं है महाराज, जो वायरस चीन के एक वुहान शहर से निकलकर पूरी दुनिया में फैल सकता है, उसका क्या भरोसा कि वो यमलोक को छोड़ दे। मैं स्वर्ग और नर्क के निवासियों को समझा भी लूँ महाराज, किंतु अपने आप को कैसे समझाऊं। पहली बार इतना विचलित हूँ। इन दिनों जिन लोगों को यमदूत पकड़कर ला रहे हैं, उनमें अधिकतर लोग ऐसे हैं जो कोरोना महामारी से नहीं मरे, बल्कि लॉकडाउन के बाद बेरोजगारी के आलम में भूख और प्यास से जूझते हुए, अपने घर लौटने के लिए हजारों किलोमीटर दूर तक पैदल चलते हुए, कहीं ट्रेन से कटकर, कहीं ट्रक से कुचलकर मर गए। बीमारी से ज्यादा गरीब, मध्यमवर्गीय लोगों को यह बेबशी मार रही है। काम-धंधे बंद हो गए हैं, नौकरियां जा रही हैं, लोग दुर्दिन स्थिति से जूझ रहे हैं। ऐसे असहाय लोगों पर दया कीजिए। पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस से लड़ रही है, इस लड़ाई में दुनिया को जीतने दीजिए महाराज। यदि आप मृत्युलोक से ला सकते हैं तो कोरोना को लाइए और उसे खत्म कर दीजिए। यदि नहीं कर सकते तो यह काम इंसान को करने दीजिए। आप बस इतना सहयोग कीजिए कि अपने यमदूतों को पृथ्वी लोक में अभी न भेजिए। यदि यह भी नहीं कर सकते तो दरबार में मुझसे ये न पूछिए कि किसके कितने पाप-पुण्य हैं। इन बेबश और असहाय लोगों के पाप-पुण्य का हिसाब मैं नहीं बता पाऊँगा महाराज, नहीं बता पाऊँगा।"
यमराज बोले- "तुम्हें पहली बार इतना विचलित देख रहा हूँ चित्रगुप्त। मैं यमराज हूँ, मृत्यु का देवता हूँ। लोगों के प्राण हरणा हमारा काम है। अपने काम से मुँह नहीं मोड़ सकते। किंतु कोरोना को खत्म करना मेरे बस की बात नहीं है। इसे तो इंसान ही खत्म कर सकता है। हाँ, मैं इतना सहयोग जरूर कर सकता हूँ, जहाँ लोग ईमानदारी से कोरोना से लड़ाई लड़ेंगे, नियमों का पालन करेंगे, साफ-सफाई का ध्यान रखेंगे, मास्क लगाएंगे, जरूरतमंद लोगों की मदद करेंगे, वहाँ के लोग यमदूतों के प्रकोप से बचे रह सकेंगे।"
रचनाकार - ललित दास मानिकपुरी (पत्रकार)
ग्राम-बिरकोनी, जिला- महासमुंद (छत्तीसगढ़)
मो. - 9752111088, 9753489798