बुधवार, 1 मई 2019

इन चीखों और कराहों को सुन लीजिए सरकार


मजदूर दिवस :
इन चीखों और कराहों को सुन लीजिए सरकार
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वह बालक तड़फ रहा था। रह-रहकर चीख रहा था। उसके बदन के करीब आधे हिस्से की चमड़ी उधड़ चुकी थी और आधे बदन की चमड़ी पपड़ी की तरह चटक रही थी। 33 केवी हाई वोल्टेज विद्युत लाइन ने उसे भुन-सा दिया था।
12-13 साल का यह बालक बिजली तारों में चिपक कर मिनटों में ख़ाक हो गया होता अगर तकनीकी कारणों से विद्युत प्रवाह तुरंत बंद नहीं हुआ होता। शायद भगवान ने उसे बचा लिया और शायद इसलिए कि उसके खाते अभी और पीड़ा सहनी बाकी है। रूह कांप जाती है यह सोचकर कि करंट से करीब 80 प्रतिशत तक झुलसा वह बालक एक-एक पल कितनी भयानक पीड़ा झेल रहा होगा। इस समय वह डीकेएस रायपुर की बर्न यूनिट में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। मैं उसकी सलामती की दुआ करता हूं। बेशक आप भी करेंगे। कीजिए, जरूर कीजिए, आज मजदूर दिवस भी है। बताया जाता है कि वह बालक भी 'मजदूर' है। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में एनएच-53 पर स्थित बिरकोनी के समीप एक ढाबा में यह बालक काम करता था। जहां किसी काम से छत पर गया और छत के बिलकुल करीब से गुजरी हाई वोल्टेज विद्युत लाइन की चपेट में आ गया। 29 अप्रैल को सुबह करीब 10.30 बजे हुई यह घटना न ही पहली घटना है और न शायद आखिरी, जिसमें कोई बालक हालात या अवसरपरस्त लोगों के हाथों मजबूर हो जाता है और महज़ दो वक्त की रोटी के लिए दिन रात जूझते हुए मौत के मुंहाने पहुंच जाता है। आज मई दिवस पर पूरी दुनिया शिकागो के शहीद मजदूर नेताओं अल्बर्ट पार्सन्स, ऑगस्ट स्पाइस, एडॉल्फ फिशर, जॉर्ज एंजिल और लुइस लिंग्ग को बहुत सम्मान के साथ याद कर रही है, जिन्होंने इंसानियत के बेहतर भविष्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। 1887 में हुई उनकी शहादत को 131 साल हो गए हैं। तब से अब तक न जाने कितने आंदोलन हुए। सदी बदल गई, समय बदल गया, सीमाएं बदल गईं, सत्ताएं बदल गईं, नियम-कानून बदल गए, नहीं बदला तो ग़रीब मजदूरों का भाग्य। क्या इस तड़फते बालक की चीखों और कराहों को सुनकर शासन-प्रशासन उन नन्ही जानों की सुध लेगा, जो खेलने-कूदने और स्कूल जाने की उम्र में चाकरी, बेगारी या मजदूरी करने मजबूर हैं? क्या महासमुंद के इस पीड़ित बालक को न्याय मिलेगा?
- ललित मानिकपुरी, जर्नलिस्ट, महासमुंद (छग)