रविवार, 1 मई 2022

छत्तीसगढ़ के बोरे-बासी Bore-Basi


(अपना पसीना बहाकर देश-दुनिया में विकास की क्रांति लाने वाले, अपने सृजन से नव दुनिया का निर्माण करने वाले, संसार का पोषण करने के लिए खेतों अन्न उपजाने वाले श्रमवीरों के सम्मान में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी सहित लाखों छत्तीसगढ़िया लोगों ने आज श्रमिक दिवस पर "बोरे-बासी" खाकर छत्तीसगढ़िया मेहनतकश मजदूर किसान वर्ग के इस पारंपरिक आहार की महत्ता को वैश्विक पटल पर स्थापित करने के प्रयासों में अपना महती योगदान किया।)



छत्तीसगढ़ के सीधे-सरल और मेहनतकश लोगों, किसान, मजदूर, वनवासी, आदिवासी जन के जीवन में "नवा बिहान" लाने छत्तीसगढ़ राज्य का स्वप्न देखने वाले हमारे पुरखों ने उस दौर में यहां सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक जागरण के लिए अपने-अपने ढंग से अथक प्रयास किए। डाॅ. खूबचंद बघेल जी और पद्मश्री पं. श्यामलाल चतुर्वेदी जी हमारे उन महान पुरखों में अग्रणी थे। उन्होंने अपनी लेखनी से भी जनजागरण का अलख जगाया। यहां तक छत्तीसगढ़ियों के प्रमुख आहार "बासी" को भी छत्तीसगढ़िया जागरण का प्रतीक बनाया। बासी के वैज्ञानिक गुणों, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता को समझते हुए उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से किस तरह "बासी" की महिमा गाई और जन-जन को छत्तीसगढ़िया गौरव का एहसास कराया उसका एहसास आप भी कीजिए। 


गजब बिटामिन भरे हुये हैं,

(डाॅ. खूबचंद बघेल जी की रचना)

बासी के गुण कहूँ कहाँ तक, इसे ना टालो हाँसी में।

गजब बिटामिन भरे हुये हैं, छत्तीसगढ़ के बासी में।।

नादानी से फूल उठा मैं, ओछो की शाबासी में,

फसल उन्हारी बोई मैंने, असमय हाय मटासी में।।

अंतिम बासी को सांधा, निज यौवन पूरन मासी में,

बुद्ध-कबीर मिले मुझको, बस छत्तीसगढ़ के बासी में।।

बासी के गुण कहूँ कहाँ तक, इसे ना टालो हाँसी में।।

विद्वतजन को हरि-दर्शन मिले, जो राजाज्ञा की फाँसी में,

राजनीति भर देती है यह, बूढ़े में, संन्यासी में।।

विदुषी भी प्रख्यात यहाँ थी, जो लक्ष्मी थी झाँसी में,

स्वर्गीय नेता की लंबी मूंछें भी बढ़ी हुई थी बासी में।।

गजब बिटामिन भरे हुये हैं, छत्तीसगढ़ के बासी में।।

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छत्तीसगढ़ के बासी

- (पद्मश्री पं. श्यामलाल चतुर्वेदी जी की रचना)


जबड़ पुष्टई भरे हे भाई, छत्तीसगढ़ के बासी मा।

ठाढ बेरा म माई पिल्ला, खेत खार ले आथन तौ।

एकक बटकी हेर हेरके, चटनी लुन म खाथन तौ।।

जिव हर निचट जुड़ाथे चाहे कतको रही थकासी मा।

जबड़ पुष्टई भरे हे भाई, छत्तीसगढ़ के बासी मा।।

चाह पिअइया मन ला देखेन, झीटी कस हो जायें गा।

एक मुठा तो भात ला खाथे, का सेवाद ला पायें गा?

ओमन गुनथें बासी खाके, झन पर जाई हाँसी मा। 

हम रथन टनमनहा उनमन फदगे रइथें खांसी मा॥

बासी खाके जमो देस बर चाउर हमीं कमाथन गा। 

तभ्भो उलटा पुलटा हमन अंड़हा मुरुख कहाथन गा।।

हम छोड़बो बासी ला, तब सब पर जाहीं हांसी मा।

जम्मो राज के जिव परान हे छत्तीसगढ़ के बासी मा।।

पेज समुंद मा बासी बिस्नु, बुड़े बिहनहे ले देखा। 

पंचामृत कस पीवो खा परसाद बरोबर अनलेखा॥

बासी खाके ओ फल पावा, जउन अजोध्या कांसी मा। 

जबड़ पुष्टई भरे हे भाई, छत्तीसगढ़ के बासी मा।।

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(एक मेरी रचना)

बड़ सुहाथे बासी...

- ललित मानिकपुरी 


बिहनियाँ नहा-खोर के,

बइठ पालथी मार के,

पहिली भोग लगाती, बड़ सुहाथे बासी।।

***

एक फोरी अथान के,

नून डार ले जान के,

गोंदली चानी उफलाती, बड़ सुहाथे बासी।।

***

खेत के मेड़ पार म, 

डोंगरी जंगल खार म,

करम के ठठाती, बड़ सुहाथे बासी।।

***

ठीहा म, खदान म,

कारखाना बूता-काम म,

पछीना के ओगराती, बड़ सुहाथे बासी।।

***

किसान के बनिहार के

बिटामिन ए परिवार के

तन-मन के जुड़वासी, बड़ सुहाथे बासी।।

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बासी म बिस्नू बसैं, 

ब्रम्हा बरी, अथान,

गोंदली गणपति, मही महेश,

बस महाप्रसादी जान।

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शनिवार, 7 अगस्त 2021

छत्तीसगढ़ी म एक ग़ज़ल

 

मिरगा के पिला मन ल बघवा दुलरावत हे,

जंगल म पक्का चुनई के मउसम आवत हे।

***

कोकड़ा ह जेन दिन ले टिकट पाए हे,

तरिया भर मछरी मन ल चारा बँटवावत हे।

***

जंगल के राजा करय सबके विकास,

हिरनी मन बर तरिया खनवावत हे।

***

चाँटा-चाँटी मन तो ताला-बेली होगें,

लॉकडाउन म मुसवा मन मोटावत हें।

***

दिन भर देस-दुनिया म का-का होइस,

अपन टीवी चैनल म चमगेदरी बतावत हे। 

***

नीर-छीर करे बर कंउआ मन भिड़े हें,

हंस मन तो मुकदमा म पेरावत हें।

***

कछुआ, खरगोस तो इनाम रखे गे हें,

दउड़ म ए दरी अजगर अगुवावत हे।

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रचना :- ललित मानिकपुरी, स्वतंत्र पत्रकार, महासमुंद (छग) 


बुधवार, 27 मई 2020

'यमलोक में कोरोना इफेक्ट'






"मैं तो कहता हूँ महाराज अभी आप पृथ्वी पर जाना बंद ही कर दीजिए। यमलोक में लॉकडाउन कर दीजिए और सबसे पहले आप और यमलोक के सारे यमदूत जो विगत कुछ महीनों में पृथ्वी से यात्रा कर आए हैं, सब के सब क्वारेंटाइन हो जाइए।" चित्रगुप्त ने हाथ जोड़कर यमराज से कहा।

"ये क्या कह रहे हो चित्रगुप्त, ऐसा कैसे हो सकता है? जिन लोगों का डेथ वारंट कट चुका है, उनको तो यमलोक लाना ही पड़ेगा। भला उनको कैसे छोड़ सकता हूँ? इससे तो पूरी व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी।" यमराज ने कहा।

"महाराज व्यवस्था तो गड़बड़ा ही चुकी है। अब आप ही बताइए जिन लोगों को यमलोक लाया जा रहा है उन्हें आखिर हम कहाँ भेजें? स्वर्ग में भारी विरोध हो रहा है। अरे जो नरक में हैं वो भी बवाल मचा रहे हैं। सब यही कह रहे हैं, इन्हें अंदर नहीं आने देंगे। इस समय हम लोग केवल पाप और पुण्य का हिसाब लगाकर इन्हें स्वर्ग या नरक में नहीं भेज सकते। पृथ्वी के तमाम देशों में इस समय कोरोना वायरस (कोविड-19) फैला हुआ है। इस वायरस के बारे में अभी तक वहाँ के वैज्ञानिक ही ठीक से नहीं जान पाए हैं। यह भी कहा जा रहा है कि यह वायरस हर जगह वहाँ की स्थिति, परिस्थिति के अनुसार खुद को अपडेट कर लेता है। कहीं हमारे यमलोक और स्वर्ग या नर्क में कोरोना आ गया, तब फिर क्या होगा?" चित्रगुप्त बोले जा रहे थे। उन्हें टोकते हुए यमराज बोल पड़े।

"तो तुम्ही बताओ चित्रगुप्त हम क्या करें? हम यमराज हैं। जिनके जीवन की घड़ी समाप्त हो जाती है, उन्हें यमलोक में लाना और उनके पाप-पुण्य का हिसाब लगाकर स्वर्ग या नरक में भेजना हमारा काम है। हम अपने कर्तव्य से किंचित भी विरक्त नहीं हो सकते।"

चित्रगुप्त ने कहा "यही तो समस्या है महाराज कि स्वर्ग या नरक के बीच आपने कोई जगह बनवाई ही नहीं, जहाँ इस समय मर रहे लोगों को अलग से रखा जा सके। भारत में तो उन लोगों को अपने ही गाँव में घुसने नहीं दिया जा रहा है, जो अपने गाँव छोड़कर बाहर रोजी-मजदूरी करने गए थे। ऐसे लोगों को गाँव के बाहर क्वारेंटाइन किया जा रहा है। जो लोग कोरोना से मर रहे हैं, उनके पास तो परिजन भी नहीं फटक रहे। अंतिम क्रिया-कर्म भी सरकारी मुलाजिम कर रहे हैं। मैंने तो यह भी सुना है कि हमारे कुछ यमदूत भी छींक-खाँस रहे हैं।"
 इतना सुनते ही यमराज भड़क गए। बोले- "चित्रगुप्त! तुम कुछ सत्य के साथ कुछ झूठ मिलाकर अफवाह फैलाने का काम कर रहे हो। जैसा कि इन दिनों कुछ धूर्त लोग पृथ्वी में कर रहे हैं। तुम खुद डरे हुए हो और हमें भी डराने का प्रयत्न कर रहे हो। जानते नहीं, हम यमराज हैं, यमराज। ये सब वायरस फायरस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, ये सब मृत्युलोक के लोगों के लिए है। स्वर्ग और नरक दोनों जगह जाकर वहां के निवासियों को समझाओ कि पृथ्वी लोक से आने वाले किसी भी व्यक्ति से उन्हें कोई खतरा नहीं। व्यर्थ का बवाल न मचाएं।"

चित्रगुप्त ने कहा- "खतरा कैसे नहीं है महाराज, जो वायरस चीन के एक वुहान शहर से निकलकर पूरी दुनिया में फैल सकता है, उसका क्या भरोसा कि वो यमलोक को छोड़ दे। मैं स्वर्ग और नर्क के निवासियों को समझा भी लूँ महाराज, किंतु अपने आप को कैसे समझाऊं। पहली बार इतना विचलित हूँ। इन दिनों जिन लोगों को यमदूत पकड़कर ला रहे हैं, उनमें अधिकतर लोग ऐसे हैं जो कोरोना महामारी से नहीं मरे, बल्कि लॉकडाउन के बाद बेरोजगारी के आलम में भूख और प्यास से जूझते हुए, अपने घर लौटने के लिए हजारों किलोमीटर दूर तक पैदल चलते हुए, कहीं ट्रेन से कटकर, कहीं ट्रक से कुचलकर मर गए। बीमारी से ज्यादा गरीब, मध्यमवर्गीय लोगों को यह बेबशी मार रही है। काम-धंधे बंद हो गए हैं, नौकरियां जा रही हैं, लोग दुर्दिन स्थिति से जूझ रहे हैं। ऐसे असहाय लोगों पर दया कीजिए। पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस से लड़ रही है, इस लड़ाई में दुनिया को जीतने दीजिए महाराज। यदि आप मृत्युलोक से ला सकते हैं तो कोरोना को लाइए और उसे खत्म कर दीजिए। यदि नहीं कर सकते तो यह काम इंसान को करने दीजिए। आप बस इतना सहयोग कीजिए कि अपने यमदूतों को पृथ्वी लोक में अभी न भेजिए। यदि यह भी नहीं कर सकते तो दरबार में मुझसे ये न पूछिए कि किसके कितने पाप-पुण्य हैं। इन बेबश और असहाय लोगों के पाप-पुण्य का हिसाब मैं नहीं बता पाऊँगा महाराज, नहीं बता पाऊँगा।"

यमराज बोले- "तुम्हें पहली बार इतना विचलित देख रहा हूँ चित्रगुप्त। मैं यमराज हूँ, मृत्यु का देवता हूँ। लोगों के प्राण हरणा हमारा काम है। अपने काम से मुँह नहीं मोड़ सकते। किंतु कोरोना को खत्म करना मेरे बस की बात नहीं है। इसे तो इंसान ही खत्म कर सकता है। हाँ, मैं इतना सहयोग जरूर कर सकता हूँ, जहाँ लोग ईमानदारी से कोरोना से लड़ाई लड़ेंगे, नियमों का पालन करेंगे, साफ-सफाई का ध्यान रखेंगे,  मास्क लगाएंगे, जरूरतमंद लोगों की मदद करेंगे, वहाँ के लोग यमदूतों के प्रकोप से बचे रह सकेंगे।"

रचनाकार - ललित दास मानिकपुरी (पत्रकार)
ग्राम-बिरकोनी, जिला- महासमुंद (छत्तीसगढ़) 
पिन-493445
मो. - 9752111088, 9753489798

#corona_virus #covid-19 #कोरोना #कोविड-19

गुरुवार, 2 मई 2019

इन चीखों और कराहों को सुन लीजिए सरकार


मजदूर दिवस :
इन चीखों और कराहों को सुन लीजिए सरकार
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वह बालक तड़फ रहा था। रह-रहकर चीख रहा था। उसके बदन के करीब आधे हिस्से की चमड़ी उधड़ चुकी थी और आधे बदन की चमड़ी पपड़ी की तरह चटक रही थी। 33 केवी हाई वोल्टेज विद्युत लाइन ने उसे भुन-सा दिया था।
12-13 साल का यह बालक बिजली तारों में चिपक कर मिनटों में ख़ाक हो गया होता अगर तकनीकी कारणों से विद्युत प्रवाह तुरंत बंद नहीं हुआ होता। शायद भगवान ने उसे बचा लिया और शायद इसलिए कि उसके खाते अभी और पीड़ा सहनी बाकी है। रूह कांप जाती है यह सोचकर कि करंट से करीब 80 प्रतिशत तक झुलसा वह बालक एक-एक पल कितनी भयानक पीड़ा झेल रहा होगा। इस समय वह डीकेएस रायपुर की बर्न यूनिट में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। मैं उसकी सलामती की दुआ करता हूं। बेशक आप भी करेंगे। कीजिए, जरूर कीजिए, आज मजदूर दिवस भी है। बताया जाता है कि वह बालक भी 'मजदूर' है। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में एनएच-53 पर स्थित बिरकोनी के समीप एक ढाबा में यह बालक काम करता था। जहां किसी काम से छत पर गया और छत के बिलकुल करीब से गुजरी हाई वोल्टेज विद्युत लाइन की चपेट में आ गया। 29 अप्रैल को सुबह करीब 10.30 बजे हुई यह घटना न ही पहली घटना है और न शायद आखिरी, जिसमें कोई बालक हालात या अवसरपरस्त लोगों के हाथों मजबूर हो जाता है और महज़ दो वक्त की रोटी के लिए दिन रात जूझते हुए मौत के मुंहाने पहुंच जाता है। आज मई दिवस पर पूरी दुनिया शिकागो के शहीद मजदूर नेताओं अल्बर्ट पार्सन्स, ऑगस्ट स्पाइस, एडॉल्फ फिशर, जॉर्ज एंजिल और लुइस लिंग्ग को बहुत सम्मान के साथ याद कर रही है, जिन्होंने इंसानियत के बेहतर भविष्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। 1887 में हुई उनकी शहादत को 131 साल हो गए हैं। तब से अब तक न जाने कितने आंदोलन हुए। सदी बदल गई, समय बदल गया, सीमाएं बदल गईं, सत्ताएं बदल गईं, नियम-कानून बदल गए, नहीं बदला तो ग़रीब मजदूरों का भाग्य। क्या इस तड़फते बालक की चीखों और कराहों को सुनकर शासन-प्रशासन उन नन्ही जानों की सुध लेगा, जो खेलने-कूदने और स्कूल जाने की उम्र में चाकरी, बेगारी या मजदूरी करने मजबूर हैं? क्या महासमुंद के इस पीड़ित बालक को न्याय मिलेगा?
- ललित मानिकपुरी, जर्नलिस्ट, महासमुंद (छग)

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो

धरे रहो मत वीणा मैया...
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धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।
छेड़ो ऐसी तान कोई अब, कण-कण में टंकार भरो।।

हंस तुम्हारे दाना तरसें, कौए मोती पेल रहे।
फटेहाल श्रम करने वाले, शोषक मेवा झेल रहे।।
देखो जग की हालत मैया, आँखों में अंगार भरो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।

कपटी और मक्कार फरेबी, सत्ता का सुख भोग रहे।
घायल करके लोकतंत्र को, लहू देश का चूस रहे।।
होश ठिकाने आए इनके, जन-जन में हुंकार भरो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।

ललनाओं की लाज लुट रही, चीख रही है मानवता।
वेश बदल रावण फिरते हैं, पल-पल बढ़ती दानवता।।
वीणा से शोला निकले अब, सरगम प्रलयंकार करो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।

जहर हो रही हवा आज, नदियाँ आँसू बहा रहीं।
वन उपवन सब उजड़ रहे हैं, धरती मैया सुबक रही।।
राग नया कोई छेड़ो मैया, प्रकृति का नव श्रृंगार करो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।

देश हमारा मधुबन जैसा, ऋतुराज वसंत भी आते हैं।
पर कोयल सब खामोश खड़ी हैं, हर साख पे उल्लू गाते हैं।।
हे शारद वीणापाणी माँ, दो नव विहान उपकार करो।
धरे रहो मत वीणा मैया, तारों में झंकार भरो।।
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ललित मानिकपुरी
वरिष्ठ पत्रकार, महासमुंद

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

नदी की धारा में पैसे ढूँढता बचपन


गाहे-बगाहे...

अस्तांचल की ओर बढ़ते सूर्य की किरणें महानदी की सुनहरी रेत पर चमक रही थीं। मैं और दो मेरे मित्र नदी के मध्य दो पुलों के बीच खड़े थे। पंछियों का विशाल झुंड हमारे ऊपर आसमान में अटखेलियाँ कर रहा था। हजारों परिंदे करीब सौ मीटर के दायरे में उड़ते हुए हवा में गोते लगा रहे थे। ऐसा लग रहा था वो मस्ती में डूबे हुए हैं और सब मिलकर कोई नृत्य कर रहे हैं, और नृत्य करते-करते आसमानी कैनवास पर चित्रकारी कर रहे हैं, अपनी उड़ान से अकल्पनीय आकृतियाँ बना रहे हैं। उनकी चहचहाट कानों में संगीत घोल रही थी।

 वहीं दूसरी ओर महानदी की धारा में दो बच्चे गोता लगा रहे थे। ऐसा लगा कि वे मछली पकड़ रहे हैं। हमने उनके पास जाकर पूछा, "कितनी मछली पकड़े हो, दिखाओ।" 

उन्होंने कहा "हम मछली नहीं पकड़ रहे हैं।" हमने पूछा "तो क्या कर रहे हो, नहा रहे हो?"

 बहुत पूछने पर एक बच्चे ने कहा, "हम 'पैसे' ढूंढ रहे हैं।"
 बच्चे का जवाब हैरान करने वाला था। हमने फिर पूछा "पैसा! क्या पैसा पानी में बह के आता है या यहां नहाने वाले पैसा डाल जाते हैं?"

 "नहीं" दोनों बच्चों ने जवाब दिया। उन्होंने कहा, "पुल से पार होते समय यात्री नदी में पैसे फेंकते हैं। हम उन्हीं पैसों को ढूँढ़ते हैं।" 

बात करते-करते भी बच्चे पानी में गोते लगाकर पैसा ढूँढने के प्रयास में लगे रहे। अब सूर्यास्त होने ही वाला था। दोनों बच्चे नदी की धारा से बाहर निकले।

 हमने पूछा "कितने पैसे मिले?" एक ने बताया तेरह रुपए और दूसरे ने कहा पांच। 

पूछने पर बच्चों ने बताया कि वे दोपहर 2 बजे से नदी में पैसे ढूँढ रहे थे। सड़क पुल फिर रेलवे पुल के नीचे करीब 4 घंटे गोता लगाने के बाद उन्हें इतने रुपए मिले थे। उन्होंने बताया कि रोज इतने रुपए नहीं मिलते, कभी 5-7 रुपए तो कभी एक सिक्का भी नहीं मिलता।

 हमने इन बच्चों के फोटो और वीडियो भी बनाए थे। वे विनम्रता से कहने लगे, " सर वाट्सएप में न डालिएगा, घर वालों को पता चल गया तो डाँट पड़ेगी।"

 "क्यों स्कूल नहीं जाते इसलिए? हमारे इस सवाल पर बच्चों ने जो सच्चाई बताई उसे भी जान लीजिए। 

एक बच्चा जो करीब 15 साल का था, बताया कि "आठवी के बाद मेरी पढ़ाई छूट गई। मम्मी-पापा पत्थर खदान में मजदूरी करते थे। अब मम्मी बहुत बीमार है। उनके पैर की नस चिपक गई है। तीन-चार दिनों से उसे बहुत तेज बुखार भी है। उसे खरियाररोड एक बैगा के पास भी ले गए थे। कोई आराम नहीं मिला। पापा की कमाई कम है। मम्मी की गोली-पानी के लिए कुछ पैसे जुटा सकूँ यही सोचकर नदी में पैसा ढूँढने आया था। इससे पहले गाँव के ही एक हॉटल में काम करता था, लेकिन मम्मी की तबीयत ज्यादा बिगड़ी तो छोड़ दिया।"

 दूसरा बच्चा जो महज 13 साल का था, उन्होंने बताया, "पापा नहीं हैं, उनकी मृत्यु हो चुकी है। मम्मी पत्थर खदान में मजदूरी करती हैं। पैसे की हमेशा तंगी रहती है। सुबह स्कूल जाता हूँ और छुट्टी के बाद नदी में पैसा ढूँढने आता हूँ, लेकिन रोज नहीं। रोज पैसा मिलता भी नहीं।"

सिक्कों की आस में ये बच्चे घंटों पानी में रहते हैं। धारा के नीचे आँखें खुली रखकर, साँसों को जितनी अधिक देर रोक सकते हैं उतनी देर तक रोके रखकर सिक्कों की तरह चमकती चीजों को टटोलते हैं। इस तरह लगातार मशक्कत के बाद कुछ सिक्के हाथ आ जाते हैं।

ये बच्चे छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से कोई 40 किमी दूर महासमुंद जिले की सीमा पर स्थित ग्राम घोड़ारी के हैं। 

महानदी के तट पर घोड़ारी जैसे कई गाँव हैं, जहाँ नदी ने मनुष्य और अन्य जीव-जंतुओं के लिए बहुत उदारता के साथ जीवन-साधन और अनुकूल वातावरण दिया है। 

नदी के पुराने सड़क पुल के नीचे की ओर मिट्टी के आकर्षक और सुरक्षित घरौंदे बनाकर जिस तरह परिंदे भरपूर आनंद से अपनी जिंदगी जी रहे हैं, इन गाँवों के वासिंदे भी जी सकते हैं। 

यहाँ की खदानों से करोड़ों रुपए के फर्शी पत्थर का उत्खनन होता है। नदी से रेत भी निकाली जाती है। शासन के खजाने में करोड़ों का राजस्व जाता है, लेकिन यहाँ के मूल निवासियों का जीवन कमोबेश वैसा ही है, जैसा कि उन बच्चों ने बताया। 

हमारे प्रदेश को प्रकृति ने भरपूर नेमतें बख्शी है और निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ ने तेजी से विकास किया है, यह नजर भी आता है, लेकिन उस पहलू को भी देखने की जरूरत है, जो आसानी से नज़र नहीं आता या नजरअंदाज कर दिया जाता है। 

नारों और जुमलों के शोर के साथ योजनाओं की तमाम गाड़ियाँ चलती हैं, किन्तु आम आदमी के सिर से उसी तरह गुजर जाती हैं, जिस तरह नदी ऊपर के पुल से गाड़ियाँ। उनसे कुछ फेंक भी दिए जाते हैं तो उसे पाने के लिए आम आदमी को वैसी ही जद्दोजहद करनी पड़ती है, जैसे इन बच्चों की दास्तां में प्रकाशित हुआ।

- ललित मानिकपुरी, महासमुंद (छग)
9752111088

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मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

रण में विजय के लिए मां चण्डी की पूजा करते थे बाणासुर के सैनिक : मां चंडी सिद्ध शक्ति पीठ बिरकोनी, महासमुंद, छत्तीसगढ़ की रोचक कहानी


भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं बिरकोनी की मां चण्डी, भटके लोगों को बताती हैं राह

रणचण्डी की इतनी सुंदर पाषाण प्रतिमा अन्यत्र दुर्लभ

महासमुंद जिले के ग्राम बिरकोनी की पुण्यधरा पर अवस्थित आदिशक्ति स्वरूपा मां चण्डी का मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है। यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।

 इस विश्वास भाव के प्रतिफल ही देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं और माता का दर्शन-पूजन कर अलौकिक सुख-शांति का अनुभव करते हैं।

यहां की मां चण्डी अद्वितीय सुंदरी हैं। काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित इतनी सुंदर रणचण्डी की प्रतिमा अत्यंत दुर्लभ है।

कहते हैं नवरात्र में हर रात मां के चेहरे का भाव परिवर्तन होता रहता है। कभी प्रचण्ड तेजस्विनी दिखती हैं, तो कभी सौम्य ममतामयी,
परन्तु हर रूप में वह मनोहारिणी हैं।

मां चण्डी की कीर्ति मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी के रूप में है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात वर्ष 2002 में शासन के निर्देश पर इस मातृशक्ति स्थल के संबंध में शिक्षक पोखन दास मानिकपुरी द्वारा यहां के बड़े-बुजुर्गों और जानकारों से रूबरू चर्चा कर  प्राप्त तथ्यों और जानकारी के आधार पर संकलन आलेख तैयार किया गया था। उस आलेख के अनुसार इस स्थल पर देवी कब से विराजमान हैं, इसका स्पष्टतः उत्तर बुजुर्गों के पास भी नहीं है। 

किन्तु जनस्रुतियों के आधार पर इसका इतिहास पौराणिक काल से शुरू होता है, जब श्रीपुर यानी वर्तमान सिरपुर बाणासुर की राजधानी थी। उसकी सैनिक छावनी बिरकोनी के पास थी। उनके सैनिकों ने ही रणचण्डी की प्रतिमा यहां एक टीले पर स्थापित की थी। युद्ध पर जाने से पूर्व वे विजय की कामना करते हुए मां चण्डी की पूजा करते और जयकारा लगाते हुए रणभूमि को प्रस्थान करते थे।

 कुछ लोगों का मानना है कि इस स्थान पर प्राचीन राज्य सिरपुर या आरंग के सैनिकों की छावनी रही होगी। इस स्थान को बिरकोनी के पास महानदी किनारे स्थित ग्राम राजा बड़गांव में हुए हैहृयवंशी राजपूत ठाकुरों की सैनिक छावनी होने का अनुमान भी लगाया जाता है। 

अनुमान अलग-अलग होने के बावजूद एक तथ्य जो सभी स्वीकारते हैं, वह यह है कि इस देवी स्थल के आसपास सैनिकों की छावनी थी। वीर सैनिकों के रहने के कारण ही इस गांव का नाम 'बीरकोनी' पड़ा जो बाद में अपभ्रंश होकर 'बिरकोनी' हो गया। वर्तमान में मंदिर स्थल पर सैनिक छावनी होने के अनेक प्रमाण मौजूद हैं। 

मंदिर के रास्ते पर एक आयताकार क्षेत्र है, जिसे लोग 'हाथी गोड़रा' कहते हैं, जिसका अर्थ है हाथी रखने का स्थान। हाथी गोड़रा का भग्नावशेष यहां मौजूद है। युद्ध में जाने के पूर्व सैनिक मां चण्डी की पूजा-अर्चना करते थे। आज भी प्रतीकात्मक रूप से विजयादशमी पर्व के अवसर पर ऐसा किया जाता है। ग्रामीण पहले मां चण्डी मंदिर आकर पूजा-अर्चना करते हैं, फिर बस्ती में रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें रावण का वध किया जाता है।

 माता के संबंध में एक किवदंती यह भी है कि उनका प्रारंभिक वास तुमगांव समीपस्थ ग्राम भोरिंग में था, किन्तु वे किसी बात से रूष्ठ होकर बिरकोनी आ गईं। भोरिंग के लोग आज भी मां चण्डी को ग्राम्य देवी की तरह पूजते हैं।

 मान्यता यह भी है कि बिरकोनी की मां चण्डी, बेमचा की मां खल्लारी और भीमखोज खल्लारी माता का आपस में बहन का नाता है। इसके संबंध में प्रचलित किवदंतियों के तार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।



बिरकोनी में मां चण्डी का मंदिर जिस स्थान पर है वह पहले वनाच्छादित था। कोरिया, कुर्रू व महुआ के पेड़ों की बहुलता थी। महुआ को स्थानीय बोली में मउहा कहा जाता है। महुआ पेड़ों की बहुलता के कारण ही इस वन क्षेत्र को मउहारी कहा जाता था। मउहारी क्षेत्र में चिंगरीडीह व चूहरीडीह नामक दो वनग्राम थे, जो अब नहीं हैं, लेकिन इन बस्तियों के नाम पर चिंगरिया और
चुहरी नामक तालाब आज भी हैं।

 स्थानीय निवासी जंगल के बीच पत्थरों के टीले पर विराजमान मां चण्डी को ग्राम्यदेवी के रूप में पूजते थे। चूंकि मउहारी वन में वन्यप्राणियों का स्वच्छंद विचरण होता था, इसलिए माता तक पहुंचना आसान नहीं था। तब भी एक बैगा दंपति माता की सेवा में लगी रहती थी। 

बताया जाता है कि बैगा भैयाराम यादव व उनकी पत्नी को माता की कृपा से कई सिद्धियां प्राप्त थीं। बैगा भैयाराम यादव की चमत्कारिक शक्तियों के रोचक किस्सों की चर्चा ग्रामीण आज भी करते हैं। दूर-दूर से दुःखी जन उनके पास आते थे और अपनी पीड़ा का समाधान पाते थे। बैगा भैयाराम पीड़ितजन को मां चण्डी की चरण-शरण होने के लिए प्रेरित करते थे।

 इस तरह मां चण्डी के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती गई और इसकी कीर्ति मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी के रूप में फैलती गई। बैगा भैयाराम यादव की समाधि मां चण्डी मंदिर के बाजू में ही स्थित है, लोग आज भी उन पर श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं।

 लोग बताते हैं, जब सड़क नहीं थी, तब जंगल के रास्ते पैदल ही आना जाना करते थे। कहते हैं कि जब लोग रास्ता भटक जाते थे तब मां चण्डी की मानव के रूप में प्रकट होकर उन्हें रास्ता बताती थीं।

 उस समय देवी के स्थल पर सर्पों का बसेरा होता था। नाग-नागिन के अलावा एक विशाल अजगर का भी लोग उल्लेख करते हैं, जो हर समय माता के ईर्द-गिर्द रहते थे। जब भव्य मंदिर निर्माण के लिए गर्भगृह से लगे एक पेड़ की कटाई की गई, तो उसके भीतर एक बड़े खोल में अजगर का विशाल कंकाल सुरक्षित मिला।

 नाग-नागिन के संबंध में कहा जाता है कि वे आज भी मंदिर के उत्तर-पश्चिम कोने में स्थित एक पुराने वट वृृृक्ष में वास करते हैं। लोग इस वट वृक्ष की पूजा करते हैं और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए लाल कपड़े में नारियल, सुपारी लपेटकर बांधते हैं। ऐसे भाव-बंधनों से यह वट-वृक्ष भरा हुआ है।

 वर्ष 1937-38 में जब ब्रिटिश शासन काल में रायपुर-विजयनगर रेल पांत बिछाई गई और महानदी में पुल निर्माण किया गया तब बिरकोनी की भूमि पर उपलब्ध ग्रेनाइट चट्टान के विशाल भंडार से गिट्टी, बोल्डर की ढुलाई की जा रही थी। उस समय महाराष्ट्र से आए ठेकेदार मजदूरी का भुगतान मां चण्डी की प्रतिमा के पास बैठकर करते थे। उन्होंने वहां पत्थरों से वर्गाकार चबूतरा बनाकर उस पर प्रतिमा को स्थापित कराया।

 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस चबूतरे पर सीमेंट कंक्रीट का कमरानुमा मंदिर बनाया गया। यह निर्माण दाई भोरमबाई चंद्राकर के पुत्र बिसौहा चंद्राकर ने कराया था। 

कहते हैं कि भोरम बाई व गंगू चंद्राकर ने पुत्र प्राप्ति की कामना की थी, जिसे मां चण्डी ने पूरी की थी। दाई भोरम बाई चंद्राकर की इच्छा के अनुरूप पुत्र बिसौहा चंद्राकर ने यह मंदिर बनवाया। वर्षों बीत गए, मंदिर की यह संरचना भी पुरानी पड़ गई।

 इधर माता के दरबार मंे आने वाले श्रद्धालु पीने के पानी को तरस जाते थे। गांव के मजदूर लच्छीराम निषाद ने कुआं खोदने का निश्चय
किया और खुदाई शुरू की, लेकिन बीच में चट्टान आ गया। शासन से आर्थिक मदद मिलने पर वे चट्टान को भी तोड़ गए और कुछ दिनों बाद कुआं मीठे पानी से भर गया।

 इस चट्टानी भूमि पर कुआं और उसमें पानी देखकर लोगों में आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। इसे माता का चमत्कार माना गया और लोग मंदिर विकास के लिए उत्साहित हुए। 

रामा चंद्राकर ने तब तक मंदिर के चारों ओर चबूतरे का विस्तार करा दिया था। गांव के दुर्गा समिति के सदस्यों ने मां चण्डी मंदिर के विकास में जुटने का निश्चय किया और मां चण्डी मंदिर विकास समिति का गठन किया। बलदाऊ चंद्राकर अध्यक्ष, दीनबंधु चंद्राकर उपाध्यक्ष, दामजी चंद्राकर सचिव, अशोक चंद्राकर कोषाध्यक्ष और ओमप्रकाश चंद्राकर संयोजक बनाए गए। 

अघोर पंथ के लहरी बाबा ने उन्हें मंदिर निर्माण के लिए प्रेरित किया। समिति के सदस्यों ने लाखों की लागत वाले भव्य मंदिर निर्माण की योजना बनाई, इसके लिए प्रारंभ में अपने बीच ही सहयोग राशि एकत्रित की। 

मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हुआ तो जनसहयोग बढ़ता गया। मंदिर का भूमिपूजन तत्कालीन सांसद संत पवन दीवान ने किया। आगे भी क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन का सहयोग मिलता गया और मंदिर का विकास होता गया। 

सड़क, बिजली, पानी की सुविधाओं के साथ ज्योति कक्ष, रंगमंच, यज्ञ शाला, सामुदायिक भवन आदि का निर्माण हुआ। रायपुर के इंजीनियर दिलीप पाणिग्रही द्वारा तैयार नक्शा के आधार पर व उनके मार्गदर्शन में करीब 51 लाख की लागत से अष्ट कोणीय भव्य मंदिर का निर्माण हुआ और पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती की गरिमामय उपस्थिति में शिखर कलश की स्थापना हुई। 

आज इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। करीब पांच दशक पूर्व बिरकोनी के लोकप्रिय सरपंच रहे दाऊ पोखन चंद्राकर चैत्र नवरात्र में भैयाराम बैगा के मार्गदर्शन में ज्योति प्रज्ज्वलित कराते थे। साथ ही आचार्य पं. उमाशंकर शर्मा द्वारा अष्टमी पर हवन-पूजन कराते थे।

 दाऊ पोखन चंद्राकर के अनुज खोमन चंद्राकर ने वर्ष 1981 में मां के मंदिर में प्रथम बार पांच मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित की गई। इसके बाद ज्योति कलशों की संख्या बढ़ती गई और आज इस देवी शक्तिपीठ में अखंड ज्योति के अलावा चैत्र और क्वांर नवरात्र में हजारों की संख्या में मनोकामना ज्योति कलश स्थापित की जाती है।

 नवरात्र में हजारों मनोकामना ज्योति कलशों की झिलमिल छटा दर्शनीय है। दोनों नवरात्र में मां चण्डी के दरबार में श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है। वहीं पौष पूर्णिमा पर मेला लगता है। 

वर्तमान में दिनेश्वर चंद्राकर की अध्यक्षता।में मंदिर कमेटी पूरी व्यवस्था का संचालन कर रही है। मां चण्डी का दरबार धर्म, आध्यात्म, कला, संस्कृति के संवर्धन का केन्द्र बना हुआ है।

स्थिति: मां चण्डी सिद्ध शक्तिपीठ बिरकोनी का यह प्रसिद्ध मंदिर बिरकोनी बस्ती की दक्षिण दिशा में लगभग डेढ़ किमी दूर स्थित है। यह गांव नेशनल हाइवे क्रमांक 53 पर महानदी के पूर्व में राजधानी रायपुर से लगभग 45 किमी और जिला मुख्यालय महासमुंद से लगभग 15 किमी दूर स्थित है। रायपुर-विशाखापट्टनम रेलमार्ग पर बेलसोंडा स्टेशन मंदिर के दक्षिण-पश्चिम में मात्र 2 किमी दूर है। इसका निकटतम हवाई अड्डा राजधानी रायपुर का माना स्थित स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा है।

प्रस्तुति एवं संपादन- 
 ललित मानिकपुरी, महासमुंद (छग)

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