सोमवार, 22 दिसंबर 2014

(पेशावर की एक मां की आखिरी लोरी...)

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जा मेरे राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...
मेरे दिल के टुकड़े जा, जा मेरी आंख के तारे।
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जा एक ऐसी दुनिया में, जहां तू और तेरे सपने हों,
न मजहब हो, न सरहद हो, न मतलब हो, न झगड़े हों।
बादलों की बस्ती में जा, जहां रहते चांद-सितारे...
जा मेरे राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...।
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फूल बनकर आया था, इस दुनिया को महकाने को,
लेकिन यह न भाया उन नापाक दहशतगर्दों को।
ये चमन तेरा अब उजड़ गयाए, सुमन सभी मन मारे...
जा मेरे राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...।
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इतनी छोटी छाती में तू दर्द कितना दबा गया,
गोलियां खा ली जहर बुझी, टॉफियां मीठी छुपा गया।
देकर कुर्बानी जान की, माटी के कर्ज उतारे...
जा मेरे राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...।
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जा एक ऐसी दुनिया में, जहां चैन-औ-अमन की हवा बहे,
न दुश्मन हो, न दहशत हो, बस प्यार दिलों में पला करे।
झिलमिल तारों के झूले हों और चांद-सूरज-से यारे...
जा मेरा राजा बेटा जा, जा मेरे राज दुलारे...।
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-ललित मानिकपुरी, रायपुर।

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

गर्भ से बेटी करे पुकार...

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तेरी जान बन जाऊंगी, जहान बन जाऊंगी, जन्न्त बन जाऊंगी,
अरज बन जाऊंगी, अजान बन जाऊंगी, मन्न्त बन जाऊंगी,
दे दे मां तू जीवन का दान वरदान मुझे, बेटी बन तेरी दौलत बन जाऊंगी,
तेरा सोना बन जाऊंगी, मैं हीरा बन जाऊंगी, रतन बन जाऊंगी।

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दे दे मां तू भीख मुझे बस एक जनम की ही, जनम-जनम तेरी दासी बन जाऊंगी,
ममता की छांह तेरी कोख में पलन दे दे, मुखड़े की तेरी हंसी-खुशी बन जाऊंगी,
दे दे मां तू सांस मुझे, अपनी सांसों से थोड़ी, सांसों की तेरी संगीत बन जाऊंगी,
धक-धक-धक तेरे हृदय की धड़कन, सुन-सुन कर नया गीत बन जाऊंगी।
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तेरा दीया बन जाऊंगी, मशाल बन जाऊंगी, चिराग बन जाऊंगी,
तेरी लौ बन जाऊंगी, लपट बन जाऊंगी, उजास बन जाऊंगी,
दे दे मां तू एक बार जिंदगी की रोशनी, तेरे तन मन का प्रकाश बन जाऊंगी,
तेरा शब्द बन जाऊंगी, विचार बन जाऊंगी, किताब बन जाऊंगी।

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तेरा फूल बन जाऊंगी, बसंत बन जाऊंगी, बहार बन जाऊंगी,
तेरा रूप बन जाऊंगी, मैं रंग बन जाऊंगी, श्रृंगार बन जाऊंगी,
नेह की बूंद दे दे अपनी रगों से जरा, सावन तेरा मधुमास बन जाऊंगी,
तेरी घटा बन जाऊंगी, बिजुरी बन जाऊंगी, बरसात बन जाऊंगी।
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दे दे मां तू नैन मुझे अपने नयन जैसे, तेरी इन अंखियों का तारा बन जाऊंगी,
दे दे मां तू हाथ मुझे अपनी भुजाओं जैसे, नाम तेरा होगा ऐसा काम कर जाऊंगी।
पांव दे दे मुझे बस अपने कदम जैसे, जीत के जहान तेरी खुशी लूट लाऊंगी।
दे दे मां तू दिल मुझे अपने ही दिल जैसा, दिल जीत सबकी दुलारी बन जाऊंगी।

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-ललित मानिकपुरी, रायपुर

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014


इन नजरों को मालिक दे ऐसी नजर...
हर नजर में तेरी नजर को जो देख ले।
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बलराम के भीतर रहमान को जो देख ले,
पुराण के भीतर कुरआन को जो देख ले,
इन नजरों को मालिक दे ऐसी नजर
नमन के भीतर सलाम को जो देख ले।
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सूखते पत्तों की प्यास को जो देख ले,
बुझते दीपों की आस को जो देख ले,
इन नजरों को मालिक दे ऐसी नजर,
इंसानियत की टूटती सांस को जो देख ले।
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मजदूर के माथे के कर्ज को जो देख ले,
दरकती सलवार के दर्द को जो देख ले,
इन नजरों को मालिक दे ऐसी नजर,
'दास" के भीतर के मर्ज को जो देख ले।
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-ललित दास मानिकपुरी

बुधवार, 26 नवंबर 2014

गीत...


दूर तक जाने दे बात को साथिया, बात से बात कोई बनेगी सही,
रूह तक जाने दे साथ को साथिया, साथ से बात कोई बनेगी सही।

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ताल पे ताल देते हुए साथिया, प्यार सरगम की चादर ओढ़ा ले पिया,
साज को साज कर सुर मिला लें जरा, साज से फिर कोई धुन बनेगी सही।
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बूंद को बंूद से आज मिलने तो दे, फूट जाने दे दरिया से धारा कोई,
आंधियां उठने दे मिटने दे सब हदें, आज लहरों में लपटें उठेंगी सही।
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डालियां मुस्कराएंगी जब बाग में, मालिया भी तभी मुस्करा पाएगा,
अब तो ऐसी लगन बस लगे साथिया, हो अगर तू नहीं तो हम भी नहीं।
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छोड़कर जाएंगे रास्ते पे निशां, जिद हमारी भी है आज होना फनां,
काल से आज कर लें चलो दो-दो हाथ, यूं सदा कोई रहने को आया नहीं।

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दर्द अपना कसकता है भीतर मगर, जख्म औरों का नजरों को दिखता नहीं,
इस तरह भी जिये तो जिये क्या भला, बहते आंसू किसी का तो पोंछा नहीं।
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यूं जमाना बुरा पर जरा सोच ले, जमाने से हम भी जुदा ही कहां,
हाथ अपना बढ़ा कर तो देखें जरा, नेक कामों की कोई कमी तो नहीं।

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-ललित मानिकपुरी, रायपुर

बुधवार, 12 नवंबर 2014

छत्तीसगढ़ी रेडियो वार्ता :


महिमा चम्मास के...

असाढ़, सावन, भादो अउ कुंवार चार महिना चम्मास के,  नवा सिरजन के दिन आय। खेत-खार म मिहनत के पछीना ओगराए के दिन आय, धरती के गरभ ले दुनिया के भूख मिटाए बर अन्न् उपजाए के दिन आय। 

लककावत गरमी के बाद असाढ़ के अगोरा कोन ल नई राहय। अकास म करिया बादर घुमर के आथे त कमिया के रुआं-रुआं म बिजली दउड़ जाथे। जइसन बदरा बरसथे तइसन गांव के जुवानी जोर मारे लगथे, अउ निकल परथे नगरिहा धर के नागर खेत बर।

 'अरा.. ररा..तता..तता" बइला मन ल हांकत-पुचकारत हरिया-हरिया खेत जोतके बीजहा डारथें, अउ सोनहा धान के दाना पावत तक दिन-रात पछीना ओगराथें। उहें बहिनी-माई मन घलो उखंर संगे-संग कछोरा भिर के लगे रइथें। उंखर मिहनत के फल आय कि एसो हमर छत्तीसगढ़ प्रदेश ल पूरा देस म सबले जादा धान उपजाए के खातिर 'कृषि कर्मण" पुरस्कार मिलिस। 

एक बार फेर जम्मो खेतिहर संगवारी मन धान के कटोरा ल लबालब करेबर कन्हिया कस के भिड़े हें। खेत-खार म धान के नान्हें पौध लहलहावत हे। रहियर लुगरा पहिर के धरती माई मुस्कावत हे। पुरवइया के झोंका माटी के महक बगरावत हे। अइसन मौसम में संगी तन-मन हरियावत हे। मनखे के मन मंजूर बनके झूमत हे। अउ मन में उमंग भरे बर तिहार मन घलो पूछी धरे आवत हें। फेर चम्मास के तिहार मन के बाते अलग हे।
 
      चाहे हरेली होय, नागपंचमी होय, कमरछठ होय, चाहे आठे या तीजा पोरा होय। ये तिहार मन के बहाना काम-बुता म थके हारे तन ल आराम तो मिलबे करथे, मन घलो चंगा हो जाथे। फेर तिहार मन के मूल भावना म सबके खुसियाली के ही बात हे। वइसे भी हमर तिहार मन के जर घलो खेत-खार म जामे हे। 

छत्तीसगढ़ के पहली तिहार आय हरेली। जउन ल सावन के अमावस के दिन मनाथन। तब खेत-खार अउ चारो कोती परकिति के हरियर रंगत बगरे रइथे। हरेली के दिन हरियाली के आनंद मनाथन अउ ये कामना करथन कि धरती के ये हरियर रंगत बने राहय। हमर पुरखा मन हरेली के तिहार बनाके हमला परकिति के साथ जुड़े रहे के अउ ओखर धियान रखे के संदेस दे हें। 

संगी हो आज परयावरन परदूसन के चिंता पूरा दुनिया ल सतावत हे। पूरा जीव जगत संकट म हे। ये संकट से कइसे उबरना हे, एखर संदेस हरेली तिहार के भाव म छिपे हे। काय? धरती के हरियर रंगत ल बचाए के, जंगल के रुख-राई ल बचाए के अउ नवा पौध लगाए के।

 हमर किरिसी परधान छत्तीसगढ़ बर हरेली तिहार के विसेस महत्तम हे। ये तिहार खेती के पहली चरन पूरा होय के संकेत आय। किसान मन बड़ परेम अउ उपकार भाव ले अपन बइला मन ल गहूं पिसान अउ नून के लोंदी खवाथें। अउ अपनो मन बनगोंदली अउ दसमूल के परसाद खाथें। जंगल के ये कांदा अउ जरी जइसे मिठाथे वइसने ओमा अउसधी गुन घलो भरे होथे। बीमारी मन ले बचाव के खातिर ये हमर पुरखा मन के सुघ्घर खोज आय गोंदली अउ दसमूल। 
 
      सावन तो साधना के महीनाच आय। खेतिहर मन खेती के साधना करथें त भगत, सन्यासी मन भगवान के। जइसे नदिया नरवा म पूरा आथे, तइसे लोगन के मन म घलो भक्ति के भाव उमड़े लगथे। 

महादेव ल मनाए बर गांव-गांव ले कांवरिया निकल परथें। धर के कांवर म पानी, कोस-कोस रेंगत-रेंगत जाके महादेव म चढ़ाथें। सावनभर गली-गली बोलबम के नारा गूंजत रहिथे। 

सावनेच में परथे राखी के तिहार जउन ह भाई-बहिनी के मया के डोर ल अउ मजबूत करथे। फेर आथे आठे। गोकुल कन्हइया के अवतार के दिन। लइका-लइका मन घलो उपास रइथें। झुन्न्ा बांध के झूलत अउ कोठ म गोकुल कन्हइया के चित्र बनावत कतका बेर दिन पहा जथे पता नइ चलय। फेर मंदिर म रामायन-भजन अउ पंजरी के परसाद पाके घर म सुघ्घर कतरा के भोग लगाथें।
 
      सावनभर गांव-गांव म चलथे सावनाही रामायन। एती झिमिर-झिमिर पानी गिरत रइथे त ओती रामायन मंडली के भाई-बहिनी मन ढोलक, मजीरा बजावत भजन गावत रइथें। सुघर संगीत के संग भक्ति के धुन सुनके दिनभर के काम-बूता के थक-पीरा तो जइसे छू मंतर हो जाथे। 

फेर आगे तीजा-पोरा, जेखर सालभर अगोरा। धान के निंदई-कोड़ई ल करके लउहा-लउहा, बहिनी मन ल होय रइथे मइके जाय के उत्ता धुर्रा। इही तो मौका रइथे बछर म एक घव मइके जाय के। दाई, ददा, भाई-बहिनी के संगे-संग नानपन के सखी-सहेली संग मिलाप के। वइसे तो दाई-ददा के मुहाटी तो बेटी ल सदा अगोरत रइथे, फेर बेटी काय करय, ससुराल के मया अउ जुम्मेदारी म भुलाय रइथे। ये तीजा के तिहार आय जेन ह बेटी ल जिनगी भर मइके ले जोड़े रइथे। 

तीजा म सगा बनके आय बहिनी-बेटी ल बड़ परेम से लुगरा भेंट करे जाथे। उंखर लोग-लइका मन घलो नवा कपड़ा अउ खेलउना पाके गदगद हो जाथें। बाबू मन बर नदिया बइला अउ नोनी मन बर जाता-पोरा। बड़े मन ल देख के लइका मन सधाए रथें। महू चलातेंव नागर-बैला त महूं राधतेंव भात-साग। उंखर संउख ल पूरा करे बर अइसने खेलउना दिए जाथे। अब तो आगे संगी किसम-किसम के मसीनी खेलउना, पहिली तो कुम्हार के हाथ ले बने माटी के खेलउना मन ही लइका मन के मन ल मढ़ावैं।

     चम्मास के दू महीना बीत के अब आवत हे गनपति, गली-गली अउ घर-घर बिराजे बर। हमर नौजवान संगवारी मन पहिली ले एखर तियारी म भिड़ गे हें। कहूं करा पंडाल बनत हे, त कहूं करा मूरती। नौ-दस दिन ले गणेश भगवान के पूजा करबो अउ कार्यकरम के मजा घलो लेबो। 

गनेस उत्सव के दिन कोन ल बने नइ लागय, फेर कई ठन बात दुखी कर देथे। काखरो ले जबरिया चंदा वसूली बने बात नइ होय। कई जगा गनेस भगवान के मूरती ल अलकरहा सकल देके बइठार देथें। कहूं करा नेता बना देथें त कहूं करा फिल्मी हीरो। जइसे पाथें वइसने रूप देके जइसे भगवान ल मजाक बना देथें। एखर से सरधालु लोगन के भावना ल ठेस पहुंचथे। गनेस समिति वाला संगवारी मन ल ए बात के धियान रखना चाही। संगे संग यहू बात के धियान रखना चाही कि गनेस अस्थान म बने माहउल राहय। मनमाने आवाज में फिल्मी गाना बजाना, अउ सांसकिरितिक कार्यकरम के नाम ले फूहड़ कार्यकरम कराना कोनो बने बात नइ होय।
 
     चम्मास के भीतर सबसे खास तिहार परथे पितर पाख। अपन पुरखा मन ल सुरता करके पाख। उंखर परति आभार माने अउ उंखर तरपन करे के पाख। 

फेर आथे नवराती। जघा-जघा मां दुरगा के मूरती के अस्थापना करके नव दिन तक सेवा-पूजा करथंन। पूरा अंचल म मांदर अउ झांझ के झंकार के संगे-संग माता सेवा के पारंपरिक गीत गूंजे लगथे। इही बीच गांव-गांव म रामलीला घलो होथे। अउ दसराहा के दिन रावन के बध होथे। कतको जघा आतिसबाजी के संग रावन के पुतला दहन करे जाथे। बुराई के अंत होथे अउ अच्छाई के जीत होथे। संगी हो असल बात तो इही आय। बने करम करन अउ बने-बने राहन। जय जोहार।
                                                                                                          
-ललित दास मानिकपुरी
(आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित)

सोमवार, 10 नवंबर 2014

छत्तीसगढ़ी कहानी-

                                बाबाजी

                                                                                                                 

                           
                                                                                                
'दुलारी..., मैं नरियर ले के लानत हंव, तैं फूल-पान अउ आरती सजाके राख। अंगना-दुवारी म सुंदर चउंक पुर दे।"- मंगलू  अपन गोसइन ल कथे।

'मैं सब कर डारे हावंव हो, फिकर झन करौ। बस काखरो करा ले सौ ठन रुपया लान दौ। बाबा जी ल घर ले जुच्छा भेजबो का?" - दुलारी किहिस।

बिचार करत मंगलू कथे-'बने कथस वो, पहली ले जानत रइतेन बाबाजी आही कहिके त सुसाइटी ले चांउर ल नइ बिसाय रइतेन। साढ़े तीन कोरी रुपया रिहिस हे। फेर चांउर नइ लेतेन त खातेन का? कोठी म तो धुर्रा उड़त हे।"

'का जानन हो, अइसन दुकाल परही कहिके। ओतका पछीना ओगराएन, पैरा ल घलो नइ पाएन। गांव म तो सबो के इही हाल हे हो, काखर करा हाथ पसारहू? तेखर ले मोर बिछिया ल बेच देवव।"- दुलारी कहिस।

मंगलू कथे-'कइसे कथस वो, तोर देहें म ये बिछिया भर तो हे, यहू ल बेच देबे त तोर करा बांचहीच का?"

'तन के गाहना का काम के हो, जब बखत परे म काम नइ अइस। बाबाजी के किरपा होही त अवइया बछर म हमरो खेत ह सोन ओगरही। तब बिछिया का, सांटी घलो पहिरा देबे।"- दुलारी किहिस।

मंगलू ल दुलारी के गोठ भा गे, कथे-'तैं बने कथस वो, आज मउका मिले हे त दान-पुन कर लेथन। का धरे हे जिनगी के? ले हेर तोर बिछिया ल, मैं बेच के आवत हंव।"

मंगलू दुलारी के बिछिया ल बेच आइस। सौ रुपया मिलिस तेला दुलारी अंचरा म गठिया के धरिस। दुनों के खुसी के ठिकाना नइ हे। रहि-रहिके अपन भाग ल सहरावत हें कि आज बाबा जी के दरसन पाबो, ओखर चरन के धुर्रा ल माथ म लगाबो। सुंदर खीर रांध के दुलारी मने-मन मुसकावत हे, ये सोंच के कि रोज जेखर फोटू ल भोग लगाथंव, वो बाबाजी ल सिरतोन म खीर खवाहूं।

मंगलू मुहाटी म ठाढ़े देखत हे। झंडा लहरावत मोटर कार ल आवत देखिस त चहकगे। आगे... आगे... बाबाजी आगे, काहत दुलारी ल हांक पारिस। दुलारी घलो दउड़गे। दुनोंझन बीच गली  म हाथ जोरके खड़े होगें। हारन बजावत कार आघू म ठाहरिस। बाबा जी अउ ओखर मंडली जइसे उतरिस, मंगलू हा बाबा जी के चरन म घोलनगे। 'आवव... आवव... बाबाजी" काहत, परछी म लान के खटिया म बइठारिस। पिड़हा उपर फूलकांस के थारी मढ़ाके पांव पखारे बर दुनोझन बइठिन। बाबा जी अपन पांव ल थारी म मढ़इस, त ओखर सुंदर चिक्कन-चाक्कन पांव ल देखके दुनों के हिरदे गदगद होगे। ये तो साक्षात भगवान के पांव आय। ये सोंच के, 'धन्य होगेन प्रभू, हमन धन्य होगेन" काहत मंगलू अपन माथ ल बाबाजी के चरन म नवादिस। दुनों आंखी ले आंसू के धार फूट परिस। तरतर-तरतर बोहावत आंसू म बाबाजी के पांव भींजगे। दुलारी के आंखी घलो डबडबागे।

तभे मंडलीवाला कथे-'जल्दी करो भई, बाबाजी को गउंटिया के घर भी जाना है।"

हड़बड़ाके दुनोंझन पांव पखारिन, आरती उतारिन, फूल-पान चढ़ाइन अउ नरियर के संग एक सौ एक रुपया भेंट करिन।

'मंगलू बाबाजी को बस इतना ही दान करोगे?"- मंडली वाला फेर किहिस।

'हमन गरीबहा तान साधू महराज, का दे सकथंन। जउन रिहिस हे तेला बाबाजी के चरन म अरपन करदेन।"- मंगलू अपन दसा ल बताइस।

 मंडली वाला फेर टंच मारिस-'अरे कैसे बनेगा मंगलू, बाबाजी तुम्हारे घर बार-बार आएंगे क्या?"

मंगलू अउ दुलारी एक-दूसर ल देखिन। दुलारी ह अंगना म बंधाय गाय डाहर इसारा करिस। त मंगलू ह बाबाजी ल फेर अरजी करिस -'मोर करा ए गाय भर हे बाबाजी, गाभिन हे, येला मैं आपमन ल देवत हंव।"

'अरे गाय ल बाबाजी कार म बइठार के लेगही का? गाय ल देवत हस तेखर ले गाय के कीम्मत दे दे।"-मंडली वाला फेर गुर्रइस।

मंगलू सोंच म परगे। दुलारी चांउर के चुम डी डाहर इसारा करिस। मंगलू समझगे, कथे-'बस ये चाउंर हे गुरुददा।"

त गुरुददा मुसकावत कथे- 'ठीक हे मंगलू, मोला स्वीकार हे। फेर ये चांउर ल लेगे बर घलो जघा नइहे, येला बेचके तैं पइसा लान देबे। मैं चलत हंव, देरी होवत हे।"

अतका कहिके बाबाजी खड़े होगे। मंगलू फेर हाथ जोरके बिनती करिस-'बाबाजी, दुलारी आपमन बर भोग बनाए हे, किरपा करके थोरिक पा लेतेव।"

बाबाजी कुछु कतिस तेखर पहलीच मंडली वाला के मुंहू फेर चलगे -'बाबाजी किसी के घर पानी भी नहीं पीते, तुम्हारे घर खाएंगे कैसे?

अतका सुनिस त दुलारी हाथ म धरे खीर के कटोरी ल अपन अंचरा म ढांकलिस। बाबाजी मंडली के संग निकलगे। पाछू-पाछू मंगलू चांउर ल बेचे बर निकलगे। बेच के सिध्धा गंउटिया घर गिस। मुहाटी म ठाढ़े गउंटिया के दरोगा ह ओला उहिच करा रोक दिस। कथे-'अरे ठाहर, कहां जाथस? भीतरी म महराजमन गंउटिया संग भोजन करत हें। तहूं सूंघ ले हलुवा, पूड़ी इंहा ले ममहावत हे। अउ दरसन करे बर होही त पाछू आबे। खा के उठहीं त सबो झन बिसराम करहीं।"

'मैं तो बाबाजी ल दक्छिना देबर आए हंव दरोगा भइया।" - मंगलू ह बताइस।

'अरे त मोला दे दे ना, मैं दे देहूं। अउ कहूं भीतरी जाहूं कहिबे त मैं नइ जावन दंव। गंउटिया मोला गारी दीही।"- दरोगा किहिस।

मंगलू ह पइसा ल दरोगा ल देके अपन घर लहुटगे। घर आके देखथे, दुलारी परछी म खड़े, कोठ म लगे फोटू ल निहारत राहय, आंखी डबडबाए राहय। मंगलू ह घलो वो फोटू ल देखिस, जेमा माता सवरीन ह भगवान राम ल सुंदर परेम से बोईर खवावत राहय।

     - ललित मानिकपुरी




गुरुवार, 6 नवंबर 2014

'चीटी की रोटी"

                                                    
                                                          कहानी- ललित दास मानिकपुरी

'मम्मी, बड़ी जोर की भूख लगी है, रोटी बना दो ना।"  विक्की ने स्कूल से लौटकर घर में पांव धरते ही अपनी मां से कहा।
'हां बनाती हूं रे, पहले हाथ-मुंह तो धो ले।"  यह कहते हुए मम्मी ने झटपट आटा का डिब्बा निकाला और उसे गूंधने के लिए बर्तन में डाल ही रही थी कि बिजली चली गई। घनघोर घटाओं के बीच बिजली जोर की चमकी थी। मम्मी की आंखें एकाएक छप्पर की ओर उठ गईं, जहां से बारिश शुरू होते ही पानी की कई धाराएं सीधे कमरे में गिरती हैं। सोने की तो दूर, बैठने तक की जगह नहीं बचती। सारी रात जागते हुए आंखों-आंखों में काटनी पड़ती है। बिजली की कड़क के साथ मम्मी के माथे पर चिंता की अनगिनत लकीरें उभर आईं। बारिश के साथ आने वाली परेशानियों का ख्याल करते-करते आंटा गूंधती रही। आंखें खुली थीं, लेकिन मन में तस्वीरें कुछ और चल रही थीं। मन ही मन बुदबुदानी लगी - आज फिर होमवर्क नहीं कर पाएंगे बच्चे, पिंटू तो पहले से ही बीमार है। कहीं इनकी भी तबीयत न बिगड़ जाए।  छानी में तिरपाल ढंकने के लिए कहां से लाऊं पैसे? घर में फूटी कौड़ी नहीं। 21 दिन हो गए जनाब को घर नहीं आए। दुनिया में अकेले यही एक ट्रक ड्राइवर हैं। उन्हें क्या है, घर तो मैं संभालती हूं। 
तभी खुशबूू भी स्कूल से आ गई। उसने भी कहा- मम्मी मैं भी रोटी खाऊंगी। मम्मी ने देखा कि  आंटा कम था, सो उसने सुबह का बचा हुआ भात और नमक डालकर सान दिया।  चूल्हा जलाया और मोटा-सा पो दिया तवे पर। कुछ ही देर में रोटी पक गई। विक्की तो तैयार बैठा था। पेट में उसके चूहे कूद रहे थे। रोटी की महक से वह और बेचैन हुआ जा रहा था। उससे रहा न गया। उधर मम्मी दीया जला रही थी और इधर विक्की ने तवे से गरमागरम रोटी सरकाकर थाली में ले ली और अचार का टुकड़ा लेकर शुरू हो गया।  वाह... मजा आ गया, पहला कौर चबाते हुए उसने यही कहा।  फिर कुछ न बोला, बस खाता ही गया। तब तक दूसरी रोटी भी पक गई। उसका आधा भी उसे और मिल गया और आधा हिस्सा छोटी बहन खुशबू को। तीसरी रोटी तैयार होते ही मम्मी ने पिंटू को उठाया। 'बेटा, चल उठ, रोटी खाले, फिर दवाई खाना, आज भात डाल के बनाई हूं रोटी, तुझे पसंद है ना।" ऐसा कहते हुए मम्मी ने उसके सामने थाली रख दी। पिंटू का माथा ठनका, उसने रोटी को गौर से देखा, फिर बोला- ' मम्मी, रोटी में कौन सा भात डाली हो? कहीं थाली में रखा वही भात तो नहीं, जिसे बुखार के कारण मैं सुबह नहीं खा पाया था? मम्मी ने कहा- 'हां, वही।"
'अरे उसमें तो चीटी थी, मैंने दोपहर को खाने के लिए देखा तो बहुत सारी चीटियां थीं। मैंने झट ढंक दिया था।"- पिंटू बोला। 
इतना सुनते ही खुशबू दीये के पास अपनी थाली ले गई। उसने देखा कि रोटी के ऊपरी हिस्से में ही ढेरों चींटियां दिखाई दे रही हैं। वह चिल्लाई 'मम्मी..., देखो न रोटी में कितनी चींटियां हैं।"  मम्मी भी देखते ही बोल पड़ी-'अरे बाप रे।"  अब सबने पिंटू की रोटी देखी, उसमें भी चींटियों की भरमार थी।
'अब मैं क्या खाऊं मम्मी?"- खुशबू बोली। इतने में मम्मी ने कहा - 'अब क्या बनाऊं बेटा कुछ नहीं है, चाय बना देती हूं, पी लेना।"
इतना सुनते ही विक्की ने कहा- थैंक्स, भगवान जी। अच्छा हुआ मैंने पहले ही रोटी खा ली। नहीं तो चाय पी के सोना पड़ता। आज चींटी की रोटी खाई है, वाह, बिलकुल नया डिश। हा..हा..हा..। यह सुनकर सभी हंस पड़े।
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