शनिवार, 6 सितंबर 2025

मंकू बेंदरा अउ कपटी मंगर (छत्तीसगढ़ी कहानी)

मंकू बेंदरा अउ कपटी मंगर  (छत्तीसगढ़ी कहानी)

"खी खी खी... हूॅंप  हूॅंप..." अइसे अपन भाखा में मंकू बेंदरा के माँ हा मंकू बेंदरा ला किहिस कि - "चल बेटा उतर, चल-चल, हवा बहुत जोर से चलत हे। मौसम बिगड़त हे, कहूँ बने ठउर में जाबो!" 

फेर उतलइन मंकू बेंदरा हा पेड़ के अउ ठीलिंग में चढ़गे। हवा सनसनावत राहय। डंगाली एती ओती लहसत राहय। तेमा ओरम के मंकू हा झूले के मज़ा लेवत राहय। 

मंकू के माँ हा ओला धर के तीरे बर ऊपर डाहर चढ़े लगिस, तभे हवा अचानक जोर के आँधी बनगे। डारा रटाक ले टूट गे। आँधी में मंकू बेंदरा हा डारा सुद्धा नदिया डाहर फेंकागे। 

नदिया में मंगर हा मुँहूँ फारे ताकत राहय। ओहा बड़ दिन के जोंगत रिहिस कि, "एको दिन एको झन बेंदरा कहूँ गिर जतिस ते बढ़िया पार्टी मनातेंव!"

ओहा मने मन सोचय कि, "ये बेंदरा मन अतेक मीठ-मीठ जामुन खाथें त ऊॅंकर माॅंस में कतका सुवाद होही, अउ करेजा कतका सुहाही!" बेंदरा मन ला देख के ओकर लार टपक जाय। फेर अपन ये इच्छा ला मन में लुकाय ऊपरछवा ऊॅंकर हितवा-मितवा बने राहय। 

आज मंकू बेंदरा ला नदिया में गिरत देख के मंगर हा लपक गे। मंटू ला खाए बर अपन मुँहूँ ला जबर फार डरिस। लेकिन ऊपर ले गिरत-गिरत मंकू बेंदरा हा ओला देख डरिस। खतरा के अंदाजा होगे। पल भर में सोच डरिस कि कइसे बाँचे जाय। 

गिरत-गिरत मंकू बेंदरा हा मंगर के मुँहूँ में डारा ला ख़ब ले खोंस दिस। जामुन के डारा हा मंगर के टोटा के भीतरी के जावत ले अरझ गे। डारा के दूसर छोर ला कस के धरे मंकू बेंदरा हा मंगर के पीठ में गोड़ फाॅंस के‌ बइठ गे।‌ 

पीरा के मारे मंगर छटपटाय लगिस।‌‌ टोटा के भीतर के जात ले खुसेरे डारा ला उलगे के उदिम करय, फेर उलग नइ पाय। 

ओहा मंकू बेंदरा ला अपन पीठ ले गिराए के भारी उदिम करिस, फेर मंकू तो डारा ला कस के धरे राहय, अउ अपन दूनो पाँव ले घलो कस के फाॅंसे राहय। 

मंगर के‌ बड़ ताकत रिहिस। मंकू जानत रिहिस कि एक कनिक भी चूक होइस ते जीव नइ बाॅंचय। ओ पूरा सवचेत रिहिस। 

मंगर हा मंकू ला बुड़ोय बर गहिर पानी में उतरे लगिस। मंकू अकबकागे।‌ 

तभे मंकू‌ ला अपन माॅं के गोठ सुरता आगे कि, "मंगर मन हा पानी के भीतर में घलो बड़ बेरा ले साॅंस थाम के रहि जथें। लेकिन ऊॅंकर ऊपर जब अलहन बिपत आथे तब धुकधुकी में ओकर साँस तेज हो जथे। तब साँस लेबर ऊपर डाहर आए ला परथे!"

ये बात के सुरता करत मंकू बेंदरा हा मंगर के टोटा में फॅंसे डारा ला हलाय लगिस। मंगर हा पीरा में बायबिकल होगे। साँस लेबर ऊपर डाहर आइस, तब मंकू घलो साँस ले पाइस।‌ 

बड़ बेरा ले ऊंकर दूनों के बीच लड़ई चलत रिहिस। दूनों लस्त पर गें। मंगर ला घलो जानब होइस कि मोरो जीव छूट सकत हे। अइसे में समझौता करना ठीक रही। ओहा मंकू के हाथ-पाँव जोड़े लगिस। किहिस- "मोला माफी दे भाई, मोला छोड़ दे।"

मंकू किहिस - "तब तैं मोला मोर ठउर तक अमरा दे।"

मंगर हा चुपचाप ओला ओकर ठउर में लान दिस। मंकू हा मंगर के मुँहूँ ले डारा ला सूर्रत चप ले कूद के पेड़ में चढ़ गे। 

पेड़ के ऊपर ले मंगर ला किहिस - "तोर मुँहूँ में डारा ला अपन जीव बचाय बर खोंसे रहेंव संगी, तोर जीव लेना मोर मकसद नइ रिहिस। हमन तो तोला मया करत रोज मीठ-मीठ जामुन खवावन। अउ तैं हमर संग कपट करे।"

मोर माँ तो मोला पहिली ले मोला चेताय रिहिस कि - "बेटा काकरो संग बैर मत करबे, फेर काकरो ऊपर आँखी मूँद के भरोसा घलो झन करबे। मोर माँ मोला यहू सिखाय रिहिस कि, बिपत के बेरा घबराबे झन, हिम्मत देखाबे। आज मोर माँ के सीख मोला बचा लिस।" 

अइसे काहत मंकू अपन माँ ला पोटार लिस। अब आँधी थम गे रिहिस। 

✍️ ललित मानिकपुरी, महासमुंद 


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बुधवार, 3 सितंबर 2025

(छत्तीसगढ़ी कहानी) "उड़-उड़"

 

(छत्तीसगढ़ी कहानी) "उड़-उड़"

"चींव-चींव...चींव-चींव..." अइसे आरो देवत माई चिरई हा अपन पिला चिरई ला रहि-रहि के बलावत राहय। "आ न बेटा आ! आ उड़! उड़-उड़!" 

फेर पिला चिरई हा पहाड़ के खोलखा ले टस-ले-मस नइ होय। उड़ियाय बर अपन गोड़ ला उसाले ला धरय, त डर के मारे काँप जाय, अउ फेर मुरझुरा के बइठ जाय। 

ओकर मन में भारी डर हमा गे रिहिस। सोचय कि, "मैं कहूँ उड़ियाहूँ, त‌ खाल्हे डाहर खाई में गिर जहूँ, अउ नदिया में बोहा जहूँ। 

इही सोच-सोच के ओ पिला चिरई हा उड़ियाबे नइ करे। खोलखा ले मुड़ी निकाल के खाल्हे डाहर देखे के तको ओकर हिम्मत नइ होय। 

भलुक ओकर छोटे भाई-बहिनी मन नदिया के ओ पार दूसर खॅंड़ में मस्त खावत खेलत राहॅंय। दाई-ददा मन घलो अपन काम बुता में लगे राहॅंय। 

काम बुता करत-करत माई चिरई हा ओ पहाड़ के खोलखा डाहर देखय अउ "आ बेटा आ" कहिके आरो लगावय। 

तीन दिन पहिली सिर्फ वो पिला चिरई के छोड़ चिरई मन के पूरा परिवार हा पहाड़ के खोलखा ला छोड़ के उड़ियावत नदिया के दूसर खॅंड़ में आ गे राहॅंय। काबर कि, अब पहाड़ के खोलखा के जरूरत नइ रहि गे रिहिस। माई चिरई हा सुरक्षित ठउर में अंडा दे बर पहाड़ के वो ऊॅंच खोलखा ला चुने रिहिस। उन्हें अपन खोंधरा बनाए रिहिस।

जब ओकर जम्मो पिला मन अंडा फोर के निकल गें, त ऊॅंकर भूख मेटाए बर नदिया ले मछरी, कीरा-मकोरा निते दाना-दुनका अपन चोंच में चाप के खोलखा में लेगय, अउ नान-नान चीथ टोर के ओमन ला खवावय। 

जब पिला मन बड़े होगें अउ ऊॅंकर पाॅंख जाम गे, तब ओमन ला उड़े बर अउ खुद ले चारा चुगे बर सिखोय खातिर माई चिरई हा प्लान बनाए रिहिस। 

प्लान के मुताबिक वो खोलखा ला छोड़ के सब्बो झन ला एक्के संग उड़ियाना रिहिस। अउ उड़ियावत- उड़ियावत नदिया के ओ पार जाना रिहिस। 

माई के इशारा पाके सब्बो झन एक्के संग उड़िन। खोलखा ले उड़े के बाद बाकी सब चिरई मन उड़ते गिन उड़ते गिन, बस इही पिला के मन में भय हमा गे अउ ओहा तुरते लहुट के खोलखा में फेर हमागे। 

तब ले ओ पिला चिरई हा पहाड़ के खोलखा में बइठे बस टुकुट-टुकुर देखत राहय। अकेल्ला लाॅंघन-भूखन परे राहय। ओला आस रिहिस कि मम्मी हा पहिली जइसे चारा लान के खवाही। फेर तीन दिन होय के बाद भी ओकर मम्मी ओकर बर चारा दाना नइ लानिस।

भूख में पेट सोप-सोप करत राहय। खोलखा में बाँचे-खुॅंचे जउन भी खाय के रिहिस, ओला ओ खा डरे रिहिस। भूख के मारे अपनेच अंडा के फोकला ला घलो खा डरिस। 

अब तो भूख सहे नइ जावत रिहिस। चक्कर आए लगिस। ओला अइसे लागे लगिस कि अब तो प्राण नइ बाँचय। 

जिंदगी बचाना हे अउ जीना हे, त ओला खोलखा ले बाहिर निकलना परही। फेर, ओकर मन में अभीच ले डर बैठे हे। भूख में शरीर घलो कमजोर होगे हे। अइसन में ओ कइसे उड़ियाही? खाई ला कइसे पार करही? नदिया ला कैसे पार करही? 

ये चिंता माई चिरई ला होवत रिहिस। ओहा अपन पिला ला बचाना चाहत रिहिस, फेर ओला जीये के लायक भी बनाना चाहत रिहिस। 

माई चिरई हा नदिया के खॅंड़ ले उड़ान भरिस। नदिया के पानी में गोता लगावत चोंच में मछरी चाप के निकलिस। अउ सनसन-सनसन उड़ियावत पहाड़ खोलखा डाहर निकल गे। 

अपन मम्मी ला आवत देख के खोलखा में बइठे पिला चिरई के मन हरिया गे। देखिस कि, मम्मी हा मोर खाए बर मछरी लानत हे, त ओकर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस। 

फेर देखथे कि, ओकर मम्मी खोलखा मेर आके अचानक रुक गे। चोंच में मछरी चपके हे, फेर खोलखा में आवत नइ हे। 

ओ हा तुहनू देखाय कस खोलखा तिर आइस, तभे पिला चिरई हा मछरी ला खाए बर अपन चोंच ला लमावत जइसे आगू डाहर सलगिस, माई चिरई हा तुरते पाछू घुॅंच गे। 

अब पिला चिरई हा खोलखा ले उलन के खाई में गिरे लगिस। गिरत-गिरत अपन मम्मी डाहर बचाही कहिके देखथे, त ओकर मम्मी हा ओला ओकर हाल में छोड़ के ऊपर डाहर उड़ागे। 

पिला चिरई ला लगिस कि अब तो वो बस मरने वाला हे। तभे ओला जनइस, ये एहसास होइस कि ओकर जम्मो पाँख मन फरिया गे हें। ओहा जोरदार साँस लिस, अपन छाती में हवा भरिस, अउ पंख मन ला फड़फड़ाना शुरू करिस। गिरत रिहिस ते हा हवा में थम गे। फेर ऊपर उठे लगिस। उड़े लगिस। 

तभे वो देखिस कि ओकर मम्मी, पापा, भाई, बहिनी सब्बो झन ओकर आजू बाजू उड़त राहॅंय।‌ ओमन ओकर हौसला बढ़ाये बर आए राहॅंय। 

ओमन ला देख के‌ ओ पिला चिरई घलो मगन होके उड़े लगिस। नदिया के पानी में खेले लगिस। पानी तरी बुड़ के टप ले मछरी बिन डरिस। 

भूख-प्यास मेटाए के बाद वो हा जमके उड़े लगिस, आसमान में गोता लगाए लगिस। वो हा अब जान डरिस कि वो पंछी आय। 

        ✍️ ललित मानिकपुरी 


(आयरिश उपन्यासकार - लायम ओ' फ़्लैहर्टी के कहानी "His First Flight" ले प्रेरित)


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