"सुनो... सुनो ना... अरे इधर-उधर कहाँ देख रहे हो, सामने देखो, मैं बोल रहा हूँ रावण।"
इस आवाज से पुतला बनाने वाले आर्टिस्ट की हालत खराब हो गई। काँपते अधरों से बस तीन शब्द बोल पाया "रा...वण!"
"हाँ... रावण!" पुतला फिर बोला।
डर के मारे आर्टिस्ट ऊॅंचे मचान से गिरते-गिरते बचा।
पुतला बोला - "अरे डर क्यों रहे हो? तुमने ही तो बनाया है ना मुझे?"
आर्टिस्ट मन ही मन कहने लगा- "ये क्या हो रहा है? आज तक तो ऐसा नहीं हुआ।" वह रावण के पुतले को आश्चर्य से देखे जा रहा था।
इतने में पुतला फिर बोला- डरो नहीं, मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ।"
किसी तरह खुद को संभालते हुए आर्टिस्ट बोला - "कहिए सर, क्या कहना चाहते हैं?"
"मैं जानना चाहता हूँ कि तुम्हारी इच्छा क्या है?"
रावण के पुतले का ऐसा बोलना था कि आर्टिस्ट काँपने लगा। बोला- "सर मेरी आखिरी इच्छा क्यों पूछ रहे हैं? मैं मरना नहीं चाहता। मुझसे कोई गलती हुई है तो प्लीज़ माफ़ कर दीजिए।"
"अरे तुम्हारी आखिरी इच्छा नहीं पूछ रहा हूँ। मैं ये पूछ रहा कि तुम इतनी मेहनत से ये जो मेरा पुतला बना रहे हो, उसका करोगे क्या?"
रावण के पुतले और आर्टिस्ट के बीच संवाद जारी रहा।
"मैं कुछ नहीं करूंगा सर, कसम से मैं कुछ भी नहीं करूंगा।"
"तो फिर बना क्यों रहे हो?"
"वो तो समिति वालों ने आर्डर दिया है सर। दशहरा के दिन आपको जलाएंगे।"
"और तुझे क्या लगता है, मैं जल जाऊंगा?"
"सर आज तक तो ऐसा कभी नहीं हुआ है कि लोगों ने आपको जलाया और आप न जले हों।"
"अच्छा, और अगर न जलूॅं तो?"
"आपके अंदर बारूद-फटाखे तो पहले ही भरे होते हैं, केरोसिन डालकर जला डालेंगे।"
"हा हा हा हा..." अट्टहास करते हुए रावण के पुतले ने कहा - "ये, ये लोग मुझे जलाएंगे? "हा हा हा हा...हा हा हा हा..." रावण को जलाएंगे? नहीं...नहीं जलूंगा।"
आर्टिस्ट थरथरा रहा था। लेकिन प्राणों से ज्यादा फिक्र पैसे की हो रही थी। हिम्मत कर उसने कहा- "सर आप नहीं जलेंगे तो, ये लोग मेरी ऐसी-तैसी कर डालेंगे। पैसा भी नहीं देंगे। हजारों-लाखों रुपए लगते हैं सर रावण बनाने में, आई मिन आपका पुतला बनाने में। पुतला दहन के साथ ही आतिशबाजी भी होती है। सब गड़बड़ हो जाएगा। मेरे इतने दिनों की मेहनत और खर्च बर्बाद हो जाएगा। बाल-बच्चेदार आदमी हूँ सर, इस काम से जो पैसा मिलेगा, उसी से परिवार के लिए राशन पानी का इंतजाम करूंगा। आप नहीं जलेंगे तो बड़ी तकलीफ़ हो जाएगी।" इतना कहते-कहते आर्टिस्ट की आँखें डबडबा गईं।
"अरे यार तुम तो रोने लगे। मैं तो यूँ ही मज़ाक कर रहा था। दरअसल मैं तुम्हारी कला से बहुत खुश हूँ। तुमने बहुत परिश्रम से मेरा पुतला बनाया है। तुम जब मेरी मूँछों को बढ़िया ऐंठनदार बना रहे थे, तभी तुमसे मज़ाक करने का मन हुआ।"
यह कहते-कहते रावण के पुतले ने पूछा -"अच्छा ये बताओ तुम्हें कैसे पता कि मेरी मूँछें थीं?
आर्टिस्ट हड़बड़ा गया। हिचकते हुए बोला - "सर मैं क्या कहूँ, बस ऐसे ही आपकी मूँछें बनाते आ रहे हैं। आ..आप रावण हैं, तो आपकी मूँछें भी रही होंगी। ऐसे ही रौबदार।"
इतना सुनते ही रावण के पुतले ने फिर ठहाका लगाया। "हा हा हा हा...हा हा हा हा...।"
"तो सर आप जलेंगे ना?" आर्टिस्ट ने हाथ जोड़कर पूछा।
रावण के पुतले ने गंभीरता से कहा- "हाँ जलूंगा, क्योंकि मेरे जलने से तुम्हारे घर का चूल्हा जलता है।"
रचना- ✍️ ललित मानिकपुरी, बिरकोनी, महासमुंद (छ.ग.)
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