मिरगा के पिला मन ल बघवा दुलरावत हे,
जंगल म पक्का चुनई के मउसम आवत हे।
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कोकड़ा ह जेन दिन ले टिकट पाए हे,
तरिया भर मछरी मन ल चारा बँटवावत हे।
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जंगल के राजा करय सबके विकास,
हिरनी मन बर तरिया खनवावत हे।
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चाँटा-चाँटी मन तो ताला-बेली होगें,
लॉकडाउन म मुसवा मन मोटावत हें।
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दिन भर देस-दुनिया म का-का होइस,
अपन टीवी चैनल म चमगेदरी बतावत हे।
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नीर-छीर करे बर कंउआ मन भिड़े हें,
हंस मन तो मुकदमा म पेरावत हें।
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कछुआ, खरगोस तो इनाम रखे गे हें,
दउड़ म ए दरी अजगर अगुवावत हे।
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रचना :- ललित मानिकपुरी, स्वतंत्र पत्रकार, महासमुंद (छग)