मंगलवार, 13 जनवरी 2015

गीत..

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तेरे नाम की चुटकी बनालूं,
बजाऊं दिन-रात सजना...बजाऊं दिन-रात सजना।
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हर पल तेरा रूप निहारूं,
आंखें खोलूं या पलकें मूंदूं,
पुतरी में तुझको बसालूं,
नचाऊं दिन-रात सजना...नचाऊं दिन-रात सजना।
तेरे नाम की चुटकी बनालूं,
बजाऊं दिन-रात सजना...बजाऊं दिन-रात सजना।
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चूड़ियां तेरे नाम की पहनूं,
बिन्दिया... तेरे नाम की...,
तेरे नाम की माला बनालूं,
जपूं मैं दिन-रात सजना...जपूं मैं दिन-रात सजना।
तेरे नाम की चुटकी बनालूं,
बजाऊं दिन-रात सजना...बजाऊं दिन-रात सजना।
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तुम मालिक परमातम मेरे,
तुम मेरे अधिकारी...
तेरे प्रेम की जोग लगालूं,
पुकारूं दिन-रात 'सजना"...पुकारूं दिन-रात 'सजना"।
तेरे नाम की चुटकी बनालूं,
बजाऊं दिन-रात सजना...बजाऊं दिन-रात सजना।
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-ललित मानिकपुरी, रायपुर (छग)

इतना ही फसाना है...

आसमां ने यूं देखा तिरछी नजर से,
लाल हो गई धरती मारे शरम से।
नींद से जागी, थी ले रही अंगड़ाई,
आसमां ने रंग दी चूनर किरण से।
रंग गए पौधे और रंग गए ताल,
जैसे रंग गए गेसू, रंग गए गाल।
पहाड़ों पर धूप सरकने लगी ऐसे,
आसमां की नजरें गुजरती सीने से।
मुंह धोकर धरती ने भी यूं मारा छींटा,
नीले आकाश पर बादलों का टीका।
ओस से भीगी ये पतली डगर ऐसी,
सिंदूरी सफर की आस कोई जैसी।
इस मोहब्बत का इतना ही फसाना है,
यूं सामने रहना और जुदाई का तराना है।
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-ललित मानिकपुरी

सोमवार, 5 जनवरी 2015

आजा पिया...

चांद, सुरुज ना... भाए तारे...
आजा पिया घर में अंधियारे।
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मन मंदिर में जोत जलाऊं,
तुम्हरी लौ से लौ लगाऊं,
अंतस का तम हरले आकर,
उर भर दे... उजियारे...
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न फूलन की, न चंदन की,
महक न भाये ये बगियन की,

मन को तू महका दे आकर
प्रीत सुधा... बरसादे...
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राह तकूं बस तोरे प्रियतम,
नाम रटूं बस तोरे प्रियतम,
सांसों की डोरी टूटत है
अब तो तू अपनाले....

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(अपने ईष्ट को समर्पित)

 - ललित मानिकपुरी 

चलो यूं कर लें...

नए हैं दिन, नया साल, चलो यूं कर लें,
नए कदम, नई चाल, चलो यूं कर लें।
दिलों में रोप दें एक पौध,चलो चाहत की

मन हो जाएं बाग-बाग, चलो यूं कर लें।

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तुम बनो चांद, चांदनी बिखेर दो अपनी,
मैं बनूं रात, मोहब्बत निसार दूं अपनी,
बना लें सेज सुनहरी, चलो सितारों की
नए सपने, नए हों ख्वाब,चलो यूं कर लें।

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तुम्हे हो दर्द, तड़फकर जरा सा मैं देखूं,
तुम्हारी आह में मैं, अपनी कसक को देखूं,
हक एक-दूजे से मांगें, चलो देने का
मैं तुझे प्यार दूं, तुम चाह, चलो यूं कर लें।

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-ललित मानिकपुरी

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

चिड़िया का जवाब....

जंगल में भयानक आग लग गई थी और जंगल के राजा शेर सहित सभी जानवर वहां से भाग रहे थे। तभी शेर ने एक छोटी-सी चिड़िया को जंगल की ओर जाते देखा। शेर ने उससे पूछा कि तुम क्या कर रही हो। चिड़िया ने जवाब दिया कि मैं आग बुझाने जा रही हूं। शेर हंस पड़ा। उसने कहा कि तुम्हारी चोंच में जो महज दो बूंद पानी है, उससे तुम जंगल की इतनी बड़ी आग को कैसे बुझाओगी? उस चिड़िया ने जवाब दिया, कम से कम मैं अपने हिस्से का फर्ज तो निभा ही सकती हूं।
एक अकेला व्यक्ति क्या कर सकता है? इसका जवाब देते हुए ऑस्लो में शांति का नोबल पुरस्कार ग्रहण करने के बाद बाल अधिकारों के चितेरे श्री कैलाश सत्यार्थी ने लाखों लोगों की अंतरात्मा को झंकृत करे देने वाले अपने उद्बोधन में यह कहानी सुनाई, जो उन्होंने बचपन में सुनी थी। बंधुआ बच्चों की मुक्ति के लिए जीवन समर्पित करने वाले श्री कैलाश सत्यार्थी को बच्चों का मुक्तिदाता कहा जाता है, उन्होंने पिछले 30 सालों में 80 हजार बच्चों को मुक्ति दिलाई है। शांति के नोबल के वे बिलकुल सही हकदार थे, जो उन्हें मिला। हमें गर्व उन पर है।