"अमर प्रेम की अमिट निशानी"
एक नारी के अमर प्रेम की, है यह अमिट निशानी।
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की, सुनिए कथा पुरानी।।
छठी सदी की बात है सुनो, बरसों बरस पुरानी,
दक्षिण कोसल राज था अपना, श्रीपुर थी राजधानी।
सोमवंश का राज था यहाँ, हर्षगुप्त महाराजा,
मगध की राजकुमारी वासटा से उनका मन लागा।
मगधधीश सुर्यवर्मा की पुत्री, बन गईं कोसल रानी,
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
सावन बीता फागुन बीता, बीती बासंती कई,
वासटा देवी हर्षगुप्त में, प्रीति बस बढ़ती गई।
भाव भरे इस युगल हृदय का, राज बड़ा अनुपम था,
कला संस्कृति का विकास, जन-जीवन मधुरम था।
जन-जन के अंतस में दोनों की थी छवी सुहानी,
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
अनहोनी हो गई एक दिन, समय चक्र का खेल चला,
रानी जी का प्रियतम राजा, इस दुनिया को छोड़ चला।
माटी में माटी की काया, ब्रह्म में जीव समाया,
विरहन हुईं वासटा देवी, चिर वियोग था आया।
यादों में बस गये पिया जी, था आंखों में पानी,
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
कोई नहीं जाने सागर में, कितना पानी भरा हुआ।
विरहन मन की थाह नहीं वह भीतर कितना दहक रहा।
पिया पिया की जाप लगाती, पल पल रोती रानी,
पिय की याद अमर करने को, मन ही मन में ठानी।
महानदी के पावन तट पर पिया की रहे निशानी,
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
प्रेम से ही मिलते ईश्वर हैं, प्रेम ही भक्ति पूजा,
एक पिया, एकहि परमेश्वर और न कोई दूजा।
विरहि वासटा देवी ने कामना करी मंदिर की,
सांस सांस में पिया पुकारे, जाप करे हरि हर की।
मर्यादा थी राजवंश की, भीतर भक्त दिवानी,
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
मंदिर बनवाने की ईच्छा पुत्र को उसने बताई,
महाशिवगुप्त बालार्जुन ने तब योजना बनवाई।
महान शिल्पी कारीगर केदार को उसने बुलाया,
चित्रोत्पला गंगा के तट पर कार्य आरंभ कराया।
अविरल सृजन शिल्पियों ने की रचना रची सुहानी,
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।
अपने प्रिय की याद में रानी रह रह कर रोती थीं,
हृदय में धधकी विरह अगन की ज्वालाएं उठती थीं।
इसी विरह की आंच से जैसे माटी खूब तपीं थी,
इसी विरह की आग से तप हर ईंट अंगार बनी थीं।
इनकी अगन भी बुझा न पाया महानदी का पानी,
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
चिर वेदना का चित्रण करती नक्काशी अद्भुत हुई,
लाल लाल मिट्टी की ईंटें कलियां जैसे खिल गईं।
पति स्मृति अक्षुण्य बनाकर रानी तज गई जीवन,
किंतु उनके सांस बसे हैं इस मंदिर के कण-कण।
जग को अद्भुत कृति दे गई अद्भुत प्रेम दिवानी,
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
चलता गया समय का पहिया, बीत गईं कितनी ही सदियाँ,
सदी बारहवीं धरती डोली, महल विहार गिरे जस पतियाँ।
चौदहवीं पंद्रहवीं सदी में, बाढ़ों ने भी प्रलय मचाया,
प्रलयंकारी जलप्लावन ने, पूरा श्रीपुर नगर मिटाया।
फिर भी अडिग खड़ा रहा अविचल यह मंदिर वरदानी।
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
माटी की ईंटों को कोई प्रेम का जादू जोड़ रखा है,
भूकंपों और बाढ़ की ताकत को जैसे कोई मोड़ रखा है।
नहीं डिगा तूफानों में यह, आँधियों में भी खड़ा रहा,
पावन प्रेम प्रतीक के आगे हर आफत है हार चुका।
अमिट धरोहर है अपनी यह, विश्व विरासत मानी।
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
समय के माथे पर यह रचना, बिंदिया जैसी दमक रही,
है पंद्रह सौ साल पुरानी, पूनम चंदा सी चमक रही।
छत्तीसगढ़ की आन है यह, भारत भूमि की शान,
अनुपम प्रीति स्मृति को अब जाने सकल जहान।
ताज महल से भी है यह तो हजार बरस पुरानी,
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर की सुनिए कथा पुरानी।।
रचना - ललित मानिकपुरी
बिरकोनी, महासमुंद (छ.ग.)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)